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ഹരി ഹേ ദയാല മോര  |
അജ്ഞാതകൃത |
भाषा: हिन्दी | English | தமிழ் | ಕನ್ನಡ | മലയാളം | తెలుగు | ગુજરાતી | বাংলা | ଓଡ଼ିଆ | ਗੁਰਮੁਖੀ | |
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ഹരി ഹേ ദയാല മോര ജയ രാധാ-നാഥ।
ബാരോ ബാരോ ഏഇ-ബാരോ ലഹ നിജ-സാഥ॥1॥ |
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ബഹു യോനീ ഭ്രമി’ നാഥ! ലോഇനു ശരണ।
നിജ-ഗുണേ കൃപാ കര’ അധമ-താരണ॥2॥ |
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ജഗത-കാരണ തുമി ജഗത-ജീവന।
തോമാ ഛാड़ാ കേഽനാഹി ഹേ രാധാ-രമണ॥3॥ |
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ഭുവന-മങ്ഗല തുമി ഭുവനേര പതി।
തുമി ഉപേക്ഷിലേ നാഥ, കി ഹോഇബേ ഗതി॥4॥ |
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ഭാവിയാ ദേഖിനു ഏഇ ജഗത-മാഝാരേ।
തോമാ ബിനാ കേഹ നാഹി ഏ ദാസേ ഉദ്ധാരേ॥5॥ |
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥ हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥ |
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