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श्री गोद्रुम चन्द्र भजन उपदेश  |
श्रील भक्तिविनोद ठाकुर |
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यदि ते हरिपादसरोजसुधा
रसपानपरं हृदयं सततम्
परिहृत्य गृहं कलिभावमयं
भज गोद्रुमकाननकुञ्जविधुम्॥1॥ |
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धनयौवनजीवनराज्यसुखं
न हि नित्यमनुक्षणनाशपरम्
त्यज ग्राम्यकथासकलं विफलं
भज गोद्रुमकाननकुञ्जविधुम्॥2॥ |
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रमणीजनसङ्गसुखं च सखे
चरमे भयदं पुरुषार्थहरम्
हरिनामसुधारसमत्तमतिर्
भज गोद्रुमकाननकुञ्जविधुम्॥3॥ |
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जडकाव्यरसो न हि काव्यरसः
कलिपावनगौररसो हि रसः
अलमन्यकथाद्यनुशीलनया
भज गोद्रुमकाननकुञ्जविधुम्॥4॥ |
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वृषभानुसुतान्वितवामतनुं
यमुनातटनागरनन्दसुतम्
मुरलीकलगीतविनोदपरं
भज गोद्रुमकाननकुञ्जविधुम्॥5॥ |
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हरिकीर्तनमध्यगतं स्वजनैः
परिवेष्टितजाम्बुनदाभहरिम्
निजगौडजनैककृपाजलधिं
भज गोद्रुमकाननकुञ्जविधुम्॥6॥ |
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गिरिराजसुतापरिवीतगृहं
नवखण्डपतिं यतिचित्तहरम्
सुरसङ्घनुतं प्रियया सहितं
भज गोद्रुमकाननकुञ्जविधुम्॥7॥ |
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कलिकुक्कुरमुद्गरभावधरं
हरिनाममहौषधदानपरम्
पतितार्तदयार्द्रसुमूर्तिधरं
भज गोद्रुमकाननकुञ्जविधुम्॥8॥ |
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रिपुबान्धवभेदविहीनदया
यदभीक्ष्नमुदेति मुखाब्जततौ
तमकृष्णमिह व्रजराजसुतं
भज गोद्रुमकाननकुञ्जविधुम्॥9॥ |
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इह चोपनिषत्परिगीतविभुर्
द्विजराजसुतः पुरटाभहरिः
निजधामनि खेलति बन्धुयुतो
भज गोद्रुमकाननकुञ्जविधुम्॥10॥ |
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अवतारवरं परिपूर्णकलं
परतत्त्वमिहात्मविलासमयम्
व्रजधामरसाम्बुधिगुप्तरसं
भज गोद्रुमकाननकुञ्जविधुम्॥11॥ |
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श्रुतिवर्णधनादि न यस्य कृपा
जनने बलवद्भजनेन विना
तमहैतुकभावपथा हि सखे
भज गोद्रुमकाननकुञ्जविधुम्॥12॥ |
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अपि नक्रगतौ ह्रदमध्यगतं
कममोचयदार्तजनं तमजम्
अविचिन्त्यबलं शिवकल्पतरुं
भज गोद्रुमकाननकुञ्जविधुम्॥13॥ |
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सुरभीन्द्रतपःपरितुष्टमना
वरवर्णधरो हरिराविरभूत्
तमजस्रसुखं मुनिधैर्यहरं
भज गोद्रुमकाननकुञ्जविधुम्॥14॥ |
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अभिलाषचयं तदभेदधियम्
अशुभं च शुभं त्यज सर्वमिदम्
अनुकूलतया प्रियसेवनया
भज गोद्रुमकाननकुञ्जविधुम्॥15॥ |
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हरिसेवकसेवनधर्मपरो
हरिनामरसामृतपानरतः
नतिदैन्यदयापरमानयुतो
भज गोद्रुमकाननकुञ्जविधुम्॥16॥ |
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वद यादव माधव कृष्ण हरे
वद राम जनार्दन केशव हे
वृषभानुसुताप्रियनाथ सदा
भज गोद्रुमकाननकुञ्जविधुम्॥17॥ |
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वद यामुनतीरवनाद्रिपते
वद गोकुलकाननपुञ्जरवे
वद रासरसायन गौरहरे
भज गोद्रुमकाननकुञ्जविधुम्॥18॥ |
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चल गौरवनं नवखण्डमयं
पठ गौरहरेश्चरितानि मुदा
लुठ गौरपदाङ्कितगाङ्गतटं
भज गोद्रुमकाननकुञ्जविधुम्॥19॥ |
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स्मर गौरगदाधरकेलिकलां
भव गौरगदाधरपक्षचरः
शृणु गौरगदाधरचारुकथां
भज गोद्रुमकाननकुञ्जविधुम्॥20॥ |
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शब्दार्थ |
अर्थ / अनुवाद केवल अंग्रेजी में उपलब्ध है। |
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥ हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥ |
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