वैष्णव भजन  »  ओहे! वैष्णव ठाकुर दयार सागर
 
 
ଶ୍ରୀଲ ଭକ୍ତିଵିନୋଦ ଠାକୁର       
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ଓହେ!
ଵୈଷ୍ଣଵ ଠାକୁର, ଦଯାର ସାଗର,
ଏ-ଦାସେ କରୁଣା କରି’।
ଦିଯା ପଦଛାଯା, ଶୋଧ ହେ ଆମାଯ,
ତୋମାର ଚରଣ ଧରି॥1॥
 
 
ଛଯ ଵେଗ ଦମି’, ଛଯ ଦୋଷ ଶୋଧି’,
ଛଯ ଗୁଣ ଦେହ ଦାସେ।
ଛଯ ସତ୍ସଂଗ, ଦେହ’ ହେ ଆମାଯ,
ବସେଛି ସଂଗେର ଆଶେ॥2॥
 
 
ଏକାକୀ ଆମାର, ନାହି ପାଯ ବଲ,
ହରି-ନାମ ସଂକୀର୍ତନେ।
ତୁମି କୃପା କରି, ଶ୍ରଦ୍ଧା-ବିନ୍ଦୁ ଦିଯା,
ଦେହ’ କୃଷ୍ଣ-ନାମ-ଧନେ॥3॥
 
 
କୃଷ୍ଣ ସେ ତୋମାର କୃଷ୍ଣ ଦିତେ ପାର,
ତୋମାର ଶକତି ଆଛେ।
ଆମି ତ’ କାଂଗାଲ, ‘କୃଷ୍ଣ’ ‘କୃଷ୍ଣ’ ବଲି’,
ଧାଇ ତଵ ପାଛେ ପାଛେ॥4॥
 
 
 
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥ हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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