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श्री राधिकास्तव  |
श्रील रूप गोस्वामी |
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(टेक) राधे! जय जय माधव दयिते।
गोकुल-तरुणी मण्डल-मोहिते॥ |
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दामोदर-रतिवर्धन-वेशे।
हरिनिष्कुट-वृन्दाविपिनेशे॥1॥ |
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वृषभानुदधि - नवशशिलेखे।
ललिता सखीगण रमित विशाखे॥2॥ |
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करुणां कुरु मयि करुणा भरिते।
सनक सनातन-वर्णित चरिते॥3॥ |
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शब्दार्थ |
(टेक) हे राधे! हे माधव की प्रिया! गोकुल की सब तरूणियों द्वारा वंदित देवी, आपकी जय हो! |
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(1) आप भगवान् दामोदर के प्रेम को बढ़ाने वाले वेश धारण करती हैं। भगवान् श्री हरि को सुख देने वाले वृन्दावन की आप महारानी हैं। |
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(2) महाराज वृषभानु रूपी सागर से उदित आप नव चन्द्र-स्वरूपा हैं। आप ललिता की सखी हैं, एवं सौहार्द-कारूण्य-कृष्णानुकूल्य आदि अद्भुत गुणों से आप विशाखा को अपने वशीभूत करती हैं। |
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(3) आपका दिवय चरित्र सनक-सनातन जैसे महान संतो द्वारा वर्णित होता है। हे राधे, मुझ पर करूणा करो। |
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥ हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥ |
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