वैष्णव भजन  »  यदि गौर ना होइतो
 
 
শ্রীল বাসুদেব ঘোষ       
भाषा: हिन्दी | English | தமிழ் | ಕನ್ನಡ | മലയാളം | తెలుగు | ગુજરાતી | বাংলা | ଓଡ଼ିଆ | ਗੁਰਮੁਖੀ |
 
 
যদি গৌর না হোইতো, তবে কি হোইতো,
কেমোনে ধরিতাং দে।
রাধার্‌ মহিমা, প্রেমরস-সীমা
জগতে জানাত কে॥1॥
 
 
মধুর বৃন্দা, বিপিন-মাধুরী,
প্রবেশ চাতুরী সার।
ব্রজ-যুবতি, ভাবের ভকতি,
সকতি হোইত কার॥2॥
 
 
গাও গাও পুনঃ, গৌরাঙ্গের গুণ,
সরল করিযা মন।
এ ভব-সাগরে, এমন দযাল,
না দেখিযে এক-জন॥3॥
 
 
(আমি) গৌরাঙ্গ বোলিযা, না গেনু গলিযা,
কেমোনে ধরিনু দে।
বাসুর হিযা, পাষাণ দিযা,
কেমোনে গডিযাছে॥4॥
 
 
 
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥ हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2025 vedamrit. All Rights Reserved.