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श्री हरिवासरे हरिकीर्तन विधान  |
श्रील वृन्दावन दास ठाकुर |
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श्री हरिवासरे हरिकीर्तन विधान
नृत्य आरम्भिला प्रभु जगतेर प्राण॥1॥ |
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पुण्यवंत श्रीवास – अङ्गने शुभारंभ
उठिल कीर्तन ध्वनि गोपाल गोविन्द॥2॥ |
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मृदङ्गमन्दिरा बाजे शंख करताल
संकीर्तन संगे सब हइल मिशाल॥3॥ |
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ब्रह्माण्डे भेदिल ध्वनि पूरिया आकाश
चौदिकेर अमङ्गल सर्व जाय नाश॥4॥ |
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उषःकाल हैते नृत्य करे विश्वम्भर
यूथ यूथ हैल जत गयन सुन्दर॥5॥ |
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श्रीवासपण्डित लैया एक सम्प्रदाय
मुकुन्द लैया आर जनकत गाय॥6॥ |
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लैया गोविन्द घोष आर कतजन
गौरचन्द्रनृत्ये सबे करेन कीर्तन॥7॥ |
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धरिया बुलेन नित्यानन्द महाबली
अलक्षिते अद्वैत लयेन पदधूलि॥8॥ |
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गदाधरआदि जत सजलनयने
आनन्दे विह्वल हैल प्रभुर कीर्तने॥9॥ |
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जखन उद्दन्द नाचे प्रभु विश्वम्भर
पृथिवि कम्पित हय, सबे पाय डर॥10॥ |
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कखन वा मधुर नाचये विश्वम्भर
जेन देखि नन्देर नन्दन नटवर॥11॥ |
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अपरूप कृष्णावेश, अपरूप नृत्य
आनन्दे नयन भरिऽदेखे सब भृत्य॥12॥ |
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निजानन्दे नाचे महाप्रभु विश्वम्भर
चरणेर ताल शुनि अति मनोहर॥13॥ |
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भाववेसे माला नाहि रहये गलाय
छिण्डिया पडये गिया भकतेर पाय॥14॥ |
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चतुर्दिके श्रीहरि मङ्गल संकीर्तन
मध्ये नाचे जगन्नाथ मिश्रेर नन्दन॥15॥ |
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जार नामानन्दे शिव वसन ना जाने
जार यशे, नाचे शिव, से नाचे आपने॥16॥ |
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जार नामे वाल्मिकि हइल तपोधन
जार नामे अजामिल पाइल मोचन॥17॥ |
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जार नाम श्रवणे संसार बंध घुचे
हेन प्रभु अवतरि कलियुगे नाचे॥18॥ |
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जार नाम लइय शुक नारद बेडाय
सहस्र वदन प्रभु जार गुण गाय॥19॥ |
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सर्व महा प्रायश्चित्त ये प्रभुर नाम
से प्रभु नाचये, देखे जत भाग्यवान्॥20॥ |
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प्रभुर आनन्द देखिऽभागवतगण
अन्योन्ये गला धरिऽकरये क्रन्दन॥21॥ |
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सबार अङ्गेते शोभे श्री चन्दनमाला
आनन्दे गायेन कृष्णारसे हैऽभोला॥22॥ |
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जतेक वैष्णवसब कीर्तनआवेशे
ना जाने आपन देह, अन्य जन किसे॥23॥ |
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जय कृष्णा मुरारी मुकुन्दवनमाली
अहर्निश गाय सबे हैऽकुतूहली॥24॥ |
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अहर्निश भक्तसङ्गे नाचे विश्वम्भर
श्रान्ति नाहि कार, सबे सत्त्वकलेवर॥25॥ |
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एइमत नाचे महाप्रभु विश्वम्भर
निशि अवशेष मात्र से एक प्रहर॥26॥ |
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एइमत आनन्द हय नवद्वीपपुरे
प्रेमरसे वैकुण्ठेर नायक विहरे॥27॥ |
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ए सकल पुण्य कथा जे करे श्रवण
भक्तसङ्गे गौरचन्द्रे रहु ताऽर मन॥28॥ |
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श्रीकृष्णा चैतन्य नित्यानन्द चाँद जान
वृन्दावन दास तछु पदयुगे गान॥29॥ |
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शब्दार्थ |
पूर्ण अर्थ/अनुवाद अंग्रेजी में उपलब्ध है। |
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(1) हरिवासर तिथि को अर्थात एकादशी तिथि को श्रीहरि-संकीर्तन का ही विधान है, इसीलिए जगत के प्रभु श्रीगौरहरि ने पुण्यवन्त श्रीवास के आंगन में नृत्य आरंभ किया। |
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(2) जब श्रीवास आंगन में नृत्य हुआ तो ' गोपाल-गोविंद' ध्वनि दसों-दिशाओं में मुखरित हो उठी। |
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(3) संकीर्तन में मृदंग बज रहे हैं, मंदिरा (छोटे-छोटे करताल) बज रहे हैं तो शंख व क़रतालों की भी ध्वनियाँ हो रही हैं। |
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(4) जब कीर्तन आरंभ हुआ तो उस संकीर्तन में सभी आकर सम्मिलित हो गए तथा संकीर्तन ध्वनि से सारा आकाश गूंज उठा। लगता था ध्वनि, ब्रह्मांड भेद कर जा रही हो। संकीर्तन से चारों दिशाओं में अमंगल समूल नष्ट हो रहा था। |
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(13) अपने ही आनंद में महाप्रभु विश्वम्भर नाच रहे हैं, जिनके चरणों कि ताल सुनने में अति मनमोहर लग रही हैं। |
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(14) भावावेश में उनके गले में माला नहीं टिक रही थी, वे टूट-टूट कर भक्तों के बीच में गिर रही थी। |
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(15) चारों ओर जो श्रीहरि का मंगलमय संकीर्तन हो रहा था उसमें अनेकों भक्तों के बीच श्री जगन्नाथ मिश्र नंदन श्रीगौरहरि नृत्य कर रहे हैं। |
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(16) जिनके नाम आनंद में नृत्य करते हुए शिवजी महाराज को अपने वस्त्रों का होश नहीं रहता, वे स्वयं गौरहरि जी की ही अपने नाम के आनंद में नृत्य कर रहे हैं। |
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(17) जिनके नाम के प्रभाव से वाल्मिकी जी महातपस्वी बन गए, जिनके नाम से अजामिल का उद्धार हो गया। |
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(18) जिनका नाम श्रवण करने से संसार-बंधन खत्म हो जाता है - वहीं प्रभु इस कलयुग में अवतरित होकर नृत्य कर रहे हैं। |
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(19) जिनका नाम गाते हुए शुकदेव जी व नारद जी भ्रमण करते रहते हैं। सहस्त्र मुख से महाप्रभु जिनका गुणगान गाते रहते हैं। |
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(22) सभी के अंगों पर चंदन व मालाएं सुशोभित हो रही हैं तथा सभी परमानंद में निमग़न होकर गा रहे हैं। |
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(29) श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु तथा श्री नित्यानंद प्रभु ही जिनके जीवन प्राण हैं, वही वृंदावन दास ठाकुर जी अपने दोनों प्रभुओं के युगल-चरणों के सान्निध्य में उनकी लीलाएं गाण करते हैं। |
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥ हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥ |
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