वैष्णव भजन  »  अक्रोध परमानंद
 
 
శ్రీల లోచనదాస ఠాకుర       
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అక్రోధ పరమానంద నిత్యానంద-రాయ।
అభిమాన-శున్య నితాఈ నగరే బేड़ాయ॥1॥
 
 
అధమపతిత జీవేర ద్వారే ద్వారే గియా।
హరినామ మహామంత్ర దిచ్ఛేన బిలాఇయా॥2॥
 
 
జారే దేఖే తా’రే కహే దన్తే తృణ ధరి।
ఆమారే కినియా లఇ, బోలో గౌరహరి॥3॥
 
 
ఏత బలి, నిత్యానంద భూమే గड़ి, జాయ।
సోనార పర్వత జేన ధూలాతే లోటాయ॥4॥
 
 
హేన అవతారే జార రతి నా జన్మిల।
లోచన బలే సేఈ పాపీ ఏలో ఆర గేలో॥5॥
 
 
 
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥ हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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