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श्रील प्रभुपाद प्रणति  |
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नम ॐ विष्णु-पादाय कृष्ण-प्रेष्ठाय भूतले।
श्रीमते भक्तिवेदान्त-स्वामिन् इति नामिने॥1॥ |
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नमस्ते सारस्वते देवे गौर-वाणी प्रचारिणे।
निर्विशेष-शून्यवादी-पाश्चात्य-देश-तारिणे॥2॥ |
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शब्दार्थ |
(1) मैं कृष्णकृपाश्रीमूर्ति श्री श्रीमद् ए.सी. भक्तिवेदान्त स्वामी प्रभुपाद को सादर प्रणाम करता हूँ जो भगवान् श्रीकृष्ण के चरण कमलों का पूर्ण आश्रय लेने के कारण इस पृथ्वी पर भगवान् श्रीकृष्ण को अत्यन्त प्रिय हैं। |
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(2) हे गुरुदेव! सरस्वती गोस्वामी के दास! आपको मेरा सादर विनम्र प्रणाम है। आप कृपा करके श्रीचैतन्य महाप्रभु के सन्देश का प्रचार कर रहे हैं तथा निराकारवाद एवं शुन्यवाद से वयाप्त पाश्चात्य देशों का उद्धार कर रहे हैं। |
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥ हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥ |
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