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আর কেন মাযাজালে  |
শ্রীল ভক্তিবিনোদ ঠাকুর |
भाषा: हिन्दी | English | தமிழ் | ಕನ್ನಡ | മലയാളം | తెలుగు | ગુજરાતી | বাংলা | ଓଡ଼ିଆ | ਗੁਰਮੁਖੀ | |
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আর কেন মাযাজালে পড়িতেছ জীব-মীন।
নাহি জান বদ্ধ হযে রবে তুমি চীর-দিন॥1॥ |
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অতি তুচ্ছ ভোগ-আশে, বন্ধি হযে মাযা-পাশে।
রহিলে বিকৃত-ভাবে দণ্ডে যথা পরাধিন॥2॥ |
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এখনও ভকতি-বলে, কৃষ্ণ-প্রেম-সিন্ধু-জলে।
ক্রিডা করি অনাযাসে থাক তুমি কৃষ্ণাধিন॥3॥ |
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥ हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥ |
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