वैष्णव भजन  »  प्रपञ्चे पडिया, अगति हइय
 
 
ଶ୍ରୀଲ ଭକ୍ତିଵିନୋଦ ଠାକୁର       
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ହରି ହେ!
ପ୍ରପଞ୍ଚେ ପଡିଯା, ଅଗତି ହଇଯା,
ନା ଦେଖି ଉପାଯ ଆର
ଅଗତିର ଗତି, ଚରଣେ ଶରଣ,
ତୋମାଯ କରିନୁ ସାର॥1॥
 
 
କରମ ଗେଯାନ, କିଛୁ ନାହି ମୋର,
ସାଧନ ଭଜନ ନାଇ
ତୁମି କୃପାମଯ, ଆମି ତ’ କାଂଗାଲ,
ଅହୈତୁକୀ କୃପା ଚାଇ॥2॥
 
 
ଵାକ୍ଯ – ମନୋ – ଵେଗ, କ୍ରୋଧ – ଜିହ୍ଵା – ଵେଗ,
ଉଦର – ଉପସ୍ଥ – ଵେଗ
ମିଲିଯା ଏ ସବ, ସଂସାରେ ଭାସାଯେ,
ଦିତେଛେ ପରମୋଦ୍ଵେଗ॥3॥
 
 
ଅନେକ ଯତନେ, ସେ ସବ ଦମନେ,
ଛାଡିଯାଛି ଆଶା ଆମି
ଅନାଥେର ନାଥ! ଡାକି ତଵ ନାମ,
ଏଖନ ଭରସା ତୁମି॥4॥
 
 
 
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥ हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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