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आमार बलिते प्रभु  |
श्रील भक्तिविनोद ठाकुर |
भाषा: हिन्दी | English | தமிழ் | ಕನ್ನಡ | മലയാളം | తెలుగు | ગુજરાતી | বাংলা | ଓଡ଼ିଆ | ਗੁਰਮੁਖੀ | |
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‘आमार’ बलिते प्रभु! आर किछु नाइ।
तुमि-इ आमार माता पिता-बन्धु-भाइ॥1॥ |
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बन्धु, दारा, सुत, सुता-तव दासी दास।
सेइ त’ सम्बन्धे सबे आमार प्रयास॥2॥ |
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धन, जन, गृह, दार ‘तोमार’ बलिया।
रक्षा करि आमि मात्र सेवक हइया॥3॥ |
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तोमार कार्येर तरे उपार्जिब धन।
तोमार संसारे-वयय करिब वहन॥4॥ |
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भाल-मन्द नाहि जानि, सेवामात्र करि।
तोमार संसारे आमि विषयप्रहरी॥5॥ |
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तोमार इच्छाय मोर इन्द्रिय-चालना।
श्रवण-दर्शन घ्राण, भोजन-वासना॥6॥ |
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निज-सुख लागि’ किछु नाहि करि आर।
भकतिविनोद बले, तव सुख-सार॥7॥ |
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शब्दार्थ |
(1) हे प्रभु! इस संसार में ऐसा कुछ भी नहीं है जो मेरा हो। निश्चित रूप से आप ही माता-पिता, सुहृद मित्र एवं मेरे भाई हैं। |
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(2) मेरे समस्त मित्र, पत्नी, पुत्र तथा पुत्रियाँ सभी आपके दास तथा दासियाँ हैं। इसी सम्बन्ध के अनुसार मेरा उनसे संबंध है। |
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(3) क्योंकि मेरी संपत्ति, अनुचर, घरेलू साज-सामान तथा पत्नी सब आपके हैं। मैं आपका दास होने के नाते मात्र उनका निर्वाह कर रहा हूँ। |
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(4) मैं इसलिए धनोपार्जन करूँगा कि वह आपकी सेवा में लगे। मैं वयय इसलिए करूँगा कि आपकी गृहस्थी का निर्वाह हो सके। |
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(5) मुझे ज्ञात नहीं कि अच्छा क्या है तथा बुरा क्या है। मैं मात्र आपकी सेवा में वयस्त हूँ। वास्तव में मैं आपके घर का पहरेदार हूँ। |
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(6) आपकी इच्छानुसार मैं अपनी इन्द्रियों को विभिन्न कार्यकलापों यथा सुनने, देखने, सूँघने तथा खाने में प्रयुक्त करता हूँ। इस प्रकार से मैंने अपने-आपको आपकी इच्छाओं की पूर्ति में लगाया है। |
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(7) मैं अब अपने निजी सुख हेतु प्रयास नहीं करता। श्रील भक्तिविनोद ठाकुर कहते हैं कि मेरा सुख भगवान् की प्रसन्नता में ही है। |
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥ हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥ |
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