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गुरुदेव! कृपाबिन्दु दिया  |
श्रील भक्तिविनोद ठाकुर |
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गुरुदेव!
कृपाबिन्दु दिया, कर’ एइ दासे,
तृणापेक्षा अति हीन।
सकल-सहने, बल दिया कर,
निज-माने स्पृहा-हीन॥1॥ |
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सकले-सम्मान, करिते शकति,
देह, नाथ! यथायथ।
तबे त’ गाइब, हरिनाम सुखे,
अपराध ह’बे हत॥2॥ |
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कबे हेन कृपा, लभिया ए-जन,
कृतार्थ हइबे, नाथ!
शक्ति-बुद्धि हीन, आमि अति दीन,
कर’ मोरे आत्मसाथ॥3॥ |
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योग्यता-विचारे, किछु नाहि पाइ,
तोमार करुणा-सार।
करुणा न हइले, काँदिया काँदिया,
प्राण ना राखिब आर॥4॥ |
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शब्दार्थ |
(1) हे गुरुदेव! कृपया आप इस दास पर अनुकम्पा करें तथा इस प्रकार इसें अपने आपको सड़क पर पड़े हुए तिनके से भी अधिक हीन समझने की योग्यता प्रदान करें। कृपया मुझे सबकुछ सहने की शक्ति प्रदान करें तथा मुझे भौतिक इच्छाओं से मुक्त बनाएँ। |
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(2) कृपया मुझे शक्ति प्रदान करें कि मैं सबको सम्मान दे सकूँ। इस प्रकार मैं आनन्दपूर्वक भगवान् हरि के पवित्र नाम का जप कर सकूँगा तथा मेरे अपराध शून्य हो जाएँगे। |
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(3) कब मेरा जीवन आपकी कृपा प्राप्त करके सफल हो पाएगा? मैं शक्ति एवं बुद्धि से हीन हूँ। मैं एक पतितात्मा हूँ, अतएव कृपया मुझे अपना दास स्वीकार करें। |
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(4) यदि आप मुझमें कोई भी योग्यता ढूँढ़ने का प्रयास करेंगे तो आपको कुछ भी योग्यता नहीं मिलेगी। आपकी कृपा ही मेरी एकमात्र संपत्ति है। यदि आपने मुझ पर करुणा नहीं की तो मैं रोते-रोते अपने जीवन का अंत कर दूँगा। |
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥ हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥ |
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