वैष्णव भजन  »  धन मोर नित्यानन्द
 
 
শ্রীল নরোত্তমদাস ঠাকুর       
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ধন মোর নিত্যানন্দ, পতি মোর গৌরচন্দ্র,
প্রাণ মোর যুগলকিশোর।
অদ্বৈত-আচার্য বল, গদাধর মোর কুল,
নরহরি বিলসই মোর॥1॥
 
 
বৈষ্ণবের পদধূলি, তাহে মোর স্নানকেলি,
তর্পণ মোর বৈষ্ণবের নাম।
বিচার করিযা মনে, ভক্তিরসে আস্বাদনে,
মধ্যস্থ শ্রীভাগবত-পুরাণ॥2॥
 
 
বৈষ্ণবের উচ্ছিষ্ট, তাহে মোর মন নিষ্ঠ,
বৈষ্ণবের নামেতে উল্লাস।
বৃন্দাবনে চবুতরা, তাহে মোর মন ঘেরা,
কহে দীন নরোত্তমদাস॥3॥
 
 
 
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥ हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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