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श्रील भक्तिसिद्धान्त सरस्वती प्रणति  |
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नमः ॐ विष्णुपादाय कृष्ण-प्रेष्ठाय भूतले।
श्रीमते भक्तिसिद्धान्त-सरस्वती इति-नामिने॥1॥ |
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श्रीवार्षभानवी-देवी-दयिताय कृपाब्धये।
कृष्ण-सम्बन्ध-विज्ञान-दायिने प्रभवे नमः॥2॥ |
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माधुर्य्योज्ज्वल-प्रेमाढय-श्रीरूपानुग-भक्तिद।
श्रीगौर-करूणा-शक्ति-विग्रहाय नमोऽस्तुते॥3॥ |
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नमस्ते गौर-वाणी-श्रीमूर्तये-दीन-तारिणे।
रूपानुग-विरूद्धाऽपसिद्धान्त-ध्वान्त-हारिणे॥4॥ |
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शब्दार्थ |
(1) मैं ॐ विष्णुपाद श्रीमद्भक्तिसिद्धान्त सरस्वती गोस्वामी प्रभुपाद को सादर प्रणाम करता हूँ जो भगवान् श्रीकृष्ण के चरण कमलों का पूर्ण आश्रय लेने के कारण इस पृथ्वी पर भगवान् श्रीकृष्ण को अत्यन्त प्रिय हैं। |
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(2) श्रीवार्षभावनीदेवी दयित दास (श्रील भक्तिसिद्धान्त सरस्वती के दीक्षा का नाम) के चरण कमलों पर मेरा प्रणाम हैं। वे श्रीमती राधारानी के विशेष कृपापात्र हैं तथा कृपावश सभी जीवों को श्री कृष्णा सम्बन्धी विज्ञान प्रदान करते हैं |
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(3) जो माधुर्य के द्वारा उज्ज्वलीकृत, प्रेमपूर्ण, श्रीरूपानुग-भक्ति-दानकारी तथा श्रीगौरांग-महाप्रभु की करूणा-शक्ति के विग्रह-स्वरूप हैं, उन सरस्वती ठाकुर को मैं पुनः नमस्कार करता हूँ। |
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(4) जो गौर-वाणी के मूर्तिमान स्वरूप हैं, दीनों को तारने वाले हैं, तथा श्रील रूप गोस्वामी द्वारा प्रणीत भक्तिमय सेवा के सिद्धांतों से विरूद्ध कोई कथन सहन नही करते। |
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥ हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥ |
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