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श्री राधिकाष्टकम् (2)  |
श्रील रघुनाथ दास गोस्वामी |
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रसवलित-मृगाक्षी-मौलिमाणिक्यलक्ष्मीः
प्रमुदित - मुरवैरि - प्रेमवापी - मराली ।
व्रजवर - वृषभानोः पुण्यगीर्वाणवल्ली
स्नपयति निजदास्ये राधिका मां कदा नु॥1॥ |
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स्फुरदरुण दुकूल - द्योतितोद्यन्नितम्ब-
स्थलमभि - वरकाञ्चि - लास्यमुल्लासयन्ती ।
कुचकलस - विलास-स्फीत - मुक्तासर - श्रीः
स्नपयति निजदास्ये राधिका मां कदा नु॥2॥ |
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सरसिजवर - गर्भाखर्व - कान्तिः समुद्यत् -
तरुणिम - घनसाराश्लिष्ट कैशोर सधुः ।
दर - विकसित - हास्य - स्यन्दि - बिम्बाधराग्रा
स्नपयति निजदास्ये राधिका मां कदा नु ॥3॥ |
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अति-चटुलतरं तं काननान्तर्मिलन्तं
व्रजनृपति कुमारं वीक्ष्य शङ्काकुलाक्षी ।
मधुर-मृदु- वचोभिः संस्तुता नेत्रभङ्गया
स्नपयति निजदास्ये राधिका मां कदा नु॥4॥ |
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व्रजकुल- महिलानां प्राणभूताखिलानां
पशुप-पति- गृहिण्याः कृष्णवत् प्रेमपात्रम् ।
सुललित - ललितान्तः स्नेह-फुल्लान्तरात्मा
स्नपयति निजदास्ये राधिका मां कदा नु॥5॥ |
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निरवधि सविशाखा शाखियूथ - प्रसूनैः
स्वजमिह रचयन्ती वैजयन्तीं वनान्ते ।
अघ - विजय - वरोरः प्रेयसी श्रेयसी सा
स्नपयति निजदास्ये राधिका मां कदा नु ॥6॥ |
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प्रकटित-निजवासं स्निग्ध वेणु -प्रणादै-
द्रुतगति हरिमारात् प्राप्य कुजे स्मिताक्षी ।
श्रवण- कुहर - कण्डूं तन्वती नम्रवक्त्रा
स्नपयति निजदास्ये राधिका मां कदा नु॥7॥ |
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अमल - कमल - राजि - स्पर्शि - वात - प्रशीते
निजसरसि निदाघे सायमुल्लासिनीयम् ।
परिजन-गण- युक्ता क्रीडयन्ती बकारि
स्नपयति निजदास्ये राधिका मां कदा नु॥8॥ |
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पठति विमलचेता मृष्टराधाष्टकं यः
परिहृत - निखिलाशा - सन्ततिः कातरः सन् ।
पशुप - पति पति - कुमारः काममामोदितस्तं
निजजन - गणमध्ये गणमध्ये राधिकायास्तनोति॥9॥ |
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शब्दार्थ |
(1) वे श्रीमती राधिका, मुझको अपनी सेवामें कब स्नान करायेंगी अर्थात् निमग्न करेंगी ? जो रसिकस्त्रियोंके मुकुटस्थ मणियोंकी शोभास्वरूपा हैं एवं जो हर्षित हुए श्रीकृष्णके प्रेमरूप- सरोवरकी हंसीस्वरूपा हैं तथा जो व्रजमें सर्वश्रेष्ठ श्रीवृषभानु गोपराजके पुण्यकी कल्पलतास्वरूपा हैं॥1॥
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(2) वे श्रीमती राधिका, मुझको अपनी सेवामें कब स्नान करायेंगी अर्थात् निमग्न करेंगी ? जो देदीप्यमान रक्तवर्णके रेशमी वस्त्रसे सुशोभित अपने नितंबस्थलपर, श्रेष्ठ करधनीसे नृत्यको प्रकाशित करती हुईं, अपने कुचरूप-कलसोंके ऊपर शोभायमान स्थूल मुक्ताहारको शोभासे युक्त हैं ॥2॥
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(3) वे श्रीमती राधिका, मुझको अपनी सेवामें कब स्नान करायेंगी अर्थात् निमग्न करेंगी ? जो श्रेष्ठकमलकी कर्णिकाके समान विशाल कान्तिसे युक्त हैं एवं जिनका किशोरावस्थारूप- अमृत, प्रगट होनेवाली युवावस्थारूप - कर्पूरसे मिश्रित है तथा जिनके बिंबाधरका अग्रभाग किंचित् विकसित हास्यरसका विस्तार करता रहता है॥3॥
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(4) वे श्रीमती राधिका, मुझको अपनी सेवामें कब स्नान करायेंगी अर्थात् निमग्न करेंगी ? जिनके दोनों नेत्र, वनमें मिलते हुए अतिशय चंचल, ब्रजराजकुमार श्रीकृष्णको देखकर, शङ्कासे व्याकुल हो जाते हैं एवं जो मधुर तथा कोमल - वचनोंके द्वारा और नेत्रोंके संकेतके द्वारा, परिचित हो जाती हैं॥4॥
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(5) वे श्रीमती राधिका, मुझको अपनी सेवामें कब स्नान करायेंगी अर्थात् निमग्न करेंगी ? जो समस्त ब्रजाङ्गनाओंकी प्राणस्वरूपा हैं एवं जो गोपराजपत्नी - श्रीयशोदाकी श्रीकृष्णके समान स्नेहभाजन हैं तथा जिनकी अन्तरात्मा, ललिता - सखीके सुमनोहर आन्तरिक स्नेहसे, फूली नहीं समाती हैं॥5॥
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(6) वे श्रीमती राधिका, मुझको अपनी सेवामें कब स्नान करायेंगी अर्थात् निमग्न करेंगी ? जो श्रीवृन्दावनमें सदैव साथ रहनेवाली, विशाखा - सखीके सहित; अनेक वृक्षोंके पुष्पों द्वारा, वैजयन्तीमालाको बनाती हुई विद्यमान रहती हैं, अतएव अघविजयी - श्रीकृष्णके श्रेष्ठ वक्षःस्थलकी अतिशय प्यारी हैं एवं परम मङ्गलमयी हैं॥6॥
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(7) वे श्रीमती राधिका, मुझको अपनी सेवामें कब स्नान करायेंगी अर्थात् निमग्न करेंगी ? जिनके नेत्र, स्निग्ध बंशीकी ध्वनियोंके द्वारा, निकुञ्जमें अपनी स्थितिको प्रकाशित करनेवाले, श्रीकृष्णको शीघ्र गतिसे प्राप्तकर, किंचित् विकसित हो जाते हैं एवं किसी बहानेसे, अपने कर्णछिद्रको खुजाती हुईं, अपने मुखको नीचा कर लेती हैं । ।7॥
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(8) वे श्रीमती राधिका, मुझको अपनी सेवामें कब स्नान करायेंगी अर्थात् निमग्न करेंगी ? जो ग्रीष्मऋतुमें सायंकालके समय, उल्लाससे युक्त होकर तथा ललिता आदि अपने सेवकवर्गसे सम्मिलित होकर, निर्मल कमलश्रेणीको स्पर्श करनेवाली वायुके कारण, अतिशय शीतल, राधाकुण्ड - नामक अपने सरोवरमें, श्रीकृष्णको क्रीड़ा कराती रहती हैं ।8॥
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(9) निर्मल चित्तवाला जो व्यक्ति, अन्य समस्त आशाओंकी श्रेणीको छोड़कर, कातर होकर, इस विशुद्ध “राधिकाष्टक" का पाठ करता है, उस व्यक्तिको गोपराजकुमार श्रीकृष्ण, यथेष्ट प्रसन्न होकर, श्रीमती राधिकाके अपने परिकरवर्गमें सम्मिलित कर लेते हैं। इस अष्टकमें "मालिनी” नामक छन्द है॥9॥ |
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥ हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥ |
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