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आमार निताई मिले ना  |
अज्ञातकृत |
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आमार निताई मिले ना भोलामन
गौर मिले ना
सारा गाये माखिले तिलक
गौर मिले ना॥1॥ |
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भितर बहिर् ठिकना ह’ले
गौर प्रेम कि कथाए मिले
(ओ तोर) ठिक ना ह’ले उपासना
तिल देइ ना तोर से सोना
सार गाये...॥2॥ |
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मन परिस्कर कर आगे
गौर भजन अनुरागे
अनुरागे तिलक केते
गौर भजन ह’ल ना (हाय भोलामन)॥3॥ |
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जे जोन मुक्तगोष्टी आदर करे
आमार दयाल निताई ताहाँर घरे
(ओ तोर) तरे भक्ति भारे दकले परे
उत्तर सदा सफल ह’बे॥4॥ |
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शब्दार्थ |
(1) हे चंचल मन! मेरा सम्पूर्ण शरीर पवित्र तिलक से सुशोभित करनेमात्र से भी श्रीनित्यानन्द प्रभु और श्रीगौरांग महाप्रभु का दर्शन नही हो रहा है। |
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(2) यदि मनुष्य अंतरिक एवं बाहरीरूप से शुद्ध हुए बिना गौरांग महाप्रभु का प्रेम प्राप्त का होना कठिन है। पुजा के समय यदि मन शुद्ध नहीं होगा तो उनके दर्शन प्राप्ती सुवर्ण अवसर खो देगा। |
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(3) दृढ़ प्रेम से श्रीचैतन्य महाप्रभु की पुजा करने से पहले मन को शुद्ध होना होगा। लेकिन हे चंचल मन, यदि तुम्हारी भक्ति केवल शरीर को तिलक से सुशोभित करने तक ही सीमीत होगी तो तुम श्रीचैतन्य महाप्रभु की उपासना (पुजा) वास्तविक रूप से नही कर रहे हो। |
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(4) जो वयक्ति वास्तव में शाश्वत भक्तिमय सेवा की स्तुती करता है, उसी के घर में हमारे दयालू श्रीनित्यानंद प्रभु निवास करते है। उनकी कृपा के लिए जोर से आर्तनाद करने से हि मनुष्य की भक्तिभावना बढ़ती है और भक्तिमय साधना भी सफल हो जाती है। |
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥ हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥ |
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