वैष्णव भजन  »  श्री राधिकाष्टकम्‌ (3)
 
 
श्रील कृष्णदास कविराज गोस्वामी       
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कुंकुमाक्त-काञ्चनाब्ज-गर्वहारि-गौरभा
पीतनाञ्चिताब्ज-गन्धकीर्ति-निन्दि-सौरभा
बल्लवेश-सूनु-सर्व-वाञ्छितार्थ-साधिका
मह्यमात्म-पादपद्म-दास्यदास्तु राधिका॥1॥
 
 
कौरुविन्द-कान्ति-निन्दि-चित्र-पट्ट-शाटिका
कृष्ण-मत्तभृङ्ग-केलि-फुल्ल-पुष्प-वाटिका
कृष्ण-नित्य-सङ्गमार्थपद्मबन्धु-राधिका
मह्यमात्म-पादपद्म-दास्यदास्तु राधिका॥2॥
 
 
सौकुमार्य-सृष्ट-पल्लवालि-कीर्ति-निग्रहा
चन्द्र -चन्दनोत्पलेन्दु-सेव्य-शीत-विग्रहा
स्वाभिमर्श-बल्लवीश-काम-ताप-बाधिका
मह्यमात्म-पादपद्म-दास्यदास्तु राधिका॥3॥
 
 
विश्ववन्द्य-यौवताभिवन्दितापि या रमा
रूप-नव्य-यौवनादि-सम्पदा न यत्समा
शील-हार्द-लीलया च सा यतोऽस्ति नाधिका
मह्यमात्म-पादपद्म-दास्यदास्तु राधिका॥4॥
 
 
रास-लास्य गीत-नर्म-सत्कलालि-पण्डिता
प्रेम-रम्य-रूप वेश-सद्गुणालि-मण्डिता
विश्व-नव्य-गोप-योषिदालितोऽपि याधिका
मह्यमात्म-पादपद्म-दास्यदास्तु राधिका॥5॥
 
 
नित्य-नव्य-रूप-केलि-कृष्णभाव-सम्पदा
कृष्णराग-बन्ध-गोप-यौवतेषु-कम्पदा
कृष्ण-रूप-वेश-केलि-लग्-सत्समाधिका
मह्यमात्म-पादपद्म-दास्यदास्तु राधिका॥6॥
 
 
स्वेद-कम्प-कण्टकाश्रु-गद्गदादि-सञ्चिता
मर्ष-हर्ष-वामतादि-भाव-भुषणाञ्चिता
कृष्ण-नेत्र-तोषि-रत्न-मण्डनालि-दाधिका
मह्यमात्म-पादपद्म-दास्यदास्तु राधिका॥7॥
 
 
या क्षणार्ध-कृष्ण-विप्रयोग-सन्ततोदिता-
नेक-दैन्य-चापलादि-भाववृन्द-मोदिता
यत्नलब्ध-कृष्णसङ्ग-निर्गताखिलाधिका
मह्यमात्म-पादपद्म-दास्यदास्तु राधिका॥8॥
 
 
अष्टकेन यस्त्वनेन नौति कृष्णवल्लभां
दर्शनेऽपि शैलजादि-योषिदालि-दुर्लभाम्
कृष्णसङ्ग-नन्दितात्म-दास्य-सीधु-भाजनं
तं करोति नन्दितालि-सञ्चयाशु सा जनम्॥9॥
 
 
(1) उनका वैभवपूर्ण स्वर्ण रंग, लाल कुंकुम चूर्ण की आभा से मण्डित सुनहरे कमल पुष्प के गर्व को चुरा लेता है। उनकी मधुर सुगन्ध, केसरिया चूर्ण छिड़के हुए कमल पुष्प की महक के यश की हँसी उड़ाता है। वे ग्वालों के राजा के पुत्र की समस्त आकांक्षाओं को परिपूर्ण करने में पूर्णतः योग्य हैं। श्रीराधिका अपने स्वयं के चरण-कमलों की सेवा मुझे प्रदान करें।
 
 
(2) उनका विस्मयकारी एवं रंगीन सिल्क के वस्त्र, मूँगे के वैभव को भी लज्जित कर देता है। वे पूर्णतः खिले हुए पुष्पों की बगिचा हैं जहाँ उन्मत्त कृष्ण नाम का भँवरा श्रृंगार रस से पूर्ण लीलाएँ करता हैं। वे अपने प्रेमी कृष्ण का निरन्तर संग पाने के उद्देश्य से प्रतिदिन सूर्य देव की आराधना करती हैं। श्रीराधिका अपने स्वयं के चरण-कमलों की सेवा मुझे प्रदान करें।
 
 
(3) उनकी आकर्षक यौवनपूर्ण नाजुकता, नवीन ताजी अकुंरित पत्तियों के यश को नकार देती है। उनका तरो जाता रूप, शीतल चन्द्रमा, चंदन को लेप, कमल पुष्पों और कपूर द्वारा सेवा करवाने के योग्य है। जब वे गोपियों के स्वामी का स्पर्श करती हैं, वे उनकी कामवासना पूर्ण आकांक्षाओं की प्रज्ज्वलित गर्मी को दूर कर देती हैं। श्रीराधिका अपने स्वयं के चरण कमलों की सेवा मुझे प्रदान करें।
 
 
(4) यद्यपि भाग्य की देवी लक्ष्मी देवी को अन्य यौवनपूर्ण देवियाँ बहुत पसंद व प्रेम करती हैं, जो स्वयं पूरे ब्रह्माण्ड में, जिनकी महिमा का गुणगान किया जाता है, फिर भी वे सौंदर्य, प्रशंसा के योग्य यौवन, अन्य दिवय स्त्री विषयक ऐश्वर्यों के संबंध में श्रीराधिका के कहीं आस-पास भी नहीं हैं। भौतिक या आध्यात्मिक जगत में, स्वाभाविक प्रेमपूर्ण क्रीड़ाओं या लीलाओं को वयक्त करने में, राधिका से श्रेष्ठ कोई नहीं है। राधिका अपने स्वयं के चरण कमलों की सेवा मुझे प्रदान करें।
 
 
(5) वे बहुत सी दिवय कलाओं में बहुत निपुण हैं जैसे रास नृत्य करना, गाना और वयंग्य करना। वे कई दिवय गुणों से अलकृंत हैं जैसे प्रेमपूर्ण स्वभाव, अनुपम अद्वितीय सौंदर्य, और आश्चर्यजनक वस्त्र एवं आभूषण। संपूर्ण ब्रह्माण्ड द्वारा प्रशंसित व्रज की ग्वाल बालाओं में भी, वे हर प्रकार से श्रेष्ठ हैं। श्री राधिका अपने स्वयं के चरण कमलों की सेवा मुझे प्रदान करें।
 
 
(6) उनके पास कृष्ण के प्रति नित्य प्रेम, नित्य लीलाओं एवं नित्य यौवनपूर्ण सौंदर्य जैसे ऐश्वर्य हैं। उनके, कृष्ण के प्रति प्रेमपूर्ण परम आनन्द के भाव गोपियों को चिंतित व उद्विग्न कर देते हैं, गोपियाँ भी कृष्ण से प्रेम करती हैं। वे सदा श्रीकृष्ण के सुन्दर रूप आभूषण, वस्त्र एवं लीलाओं पर ध्यान मग्न होने से आसक्त रहती हैं। श्रीराधिका अपने स्वयं के चरण कमलों की सेवा प्रदान करें।
 
 
(7) उन्हें आठ, प्रेमपूर्ण परम आनन्दित भाव के लक्षणों (सात्त्विक भाव के) की कृपा प्राप्त है जैसे कंपकंपी, पसीना आना, रोयें खेड़े होना, अश्रु बहना, आवाज का अवरुद्ध होना इत्यादि। वे विभिन्न प्रेमानन्द भावात्मक आभूषणों से अलंकृत हैं जैसे अधीरता, हर्ष, विपर्ययता (या विपरीतता) इत्यादि। वे सुन्दर आभूषणों (रत्न-जवाहरातों) से सुसज्जित हैं जो कृष्ण के नेत्रों को पूर्ण प्रसन्नता देते हैं। श्रीराधिका अपने स्वयं के चरण कमलों की सेवा मुझे प्रदान करें।
 
 
(8) जब वे कृष्ण से आधे क्षण के लिए भी दूर हो जाती हैं, तब वे दयनीय कष्टों, अधीरता एवं विरह भाव के अन्य बहुत सारे लक्षणों से आक्रांत या पीड़ित हो जाती हैं। जब कुछ प्रयास के पश्चात्‌, वे पुनः कृष्ण का संग प्राप्त करती हैं, तब उनका सारा क्रोध तुरंत नष्ट हो जाता है। श्रीराधिका अपने स्वयं के चरण कमलों की सेवा मुझे प्रदान करें।
 
 
(9) पार्वती जी एवं अन्य उन्नत श्रेष्ठ देवियों के लिए, श्रीमती राधारानी की एक झलक पाना भी अत्यन्त कठिन है। राधारानी जो भगवान्‌ कृष्ण को अत्यन्त प्रिय हैं। परन्तु यदि इन आठ श्लोकों को गाकर, कोई, उनकी महिमा का गुणगान करता है, तब वे, जो कृष्ण के निरन्तर संग से प्रसन्न होती हैं, उस वयक्ति को अपनी निजी सेवा का मधुर अमृत रस प्रदान करेंगी, जिससे फिर वह वयक्ति उनके सदृश प्रसन्न सखियों की सभा में प्रवेश कर सकता है।
 
 
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