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गोरा गदाधरेर आरती  |
श्रील भक्तिविनोद ठाकुर |
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भाले गोरागदाधरेरारति नेहारि
नदीयापूरबभावे जाउ बोलिहारि॥1॥ |
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कल्पतरुतले रत्नसिंहासनोपरि
सबु सखीबेष्टित किशोरकिशोरी॥2॥ |
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पुरटजडित कोत मणिगजमति
झमकिऽझमकिऽलभे प्रतिअङ्गज्योतिः॥3॥ |
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नील नीरद लागिऽविद्युत्माला
दुंहु अङ्ग मिलिऽशोभा भुवनउजाला॥4॥ |
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शङ्ख बाजे, घन्टा बाजे, बाजे करताल॥5॥ |
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मधुर मृदङ्ग बाजे परम रसाल
विशाखादि सखीवृन्द दुंहु गुन गाओ?ए
प्रियनर्मसखीगण चामर धुलाओ?ए॥6॥ |
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अनङ्ग मञ्जरी चुयाचन्दन देओ?ए
मालतीर माला रूप मञ्जरी लागाओ?ए॥7॥ |
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पञ्चप्रदीपे धोरिऽकर्पूरबाति
ललितासुन्दरी कोरे जुगलआरति॥8॥ |
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देवीलक्ष्मीश्रुतिगण धरणी लोटाओ?ए
गोपीजनअधिकार रओ?अत गाओ?ए॥9॥ |
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भकतिविनोद रोहिऽसुरभीकि कुञ्जे
आरतिदरशने प्रेमसुख भुञ्जे॥10॥ |
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शब्दार्थ |
(1) बडे़ सौभाग्य से श्रीगौर-गदाधर की आरती के दशर्न कर रहा हूँ, मैं नदिया के पूर्व भाव (श्री श्री राधा-कृष्ण वृन्दावन लीला में) को बलिहारी जाता हूँ। |
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(2) कल्पवृक्ष के नीचे, रत्न सिंहासन के ऊपर किशोर-किशोरी समस्त सखियों सहित विराजमान हैं। |
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(3) जिनके अंगों में स्वर्ण, मणि, गजमुक्ता आदि से युक्त आभूषण समूह सुशोभित हो रहे हैं तथा जिनकी अंगकान्ति अतिशय दिव्य ज्योति सम्पन्ना है। |
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(4) नीले बादलों में विद्युत की माला के समान दोनों के अंग मिलकर अपूर्व सुन्दर शोभा का विस्तार करके जगत को देदीप्यमान कर रहे हैं। |
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(5) शंख, घंटा, करताल और मधुर-मधुर मृदंग आदि वाद्य बज रहे हैं। |
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(6) विशाखा आदि सखियाँ दोनों के गुण गा रही हैं और प्रिय नर्म सखियाँ चामर ढुला रही हैं। |
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(7) अनंग मंजरी उनके श्रीअंगो में चुआ चन्दन दे रही हैं। श्रीरूप मंजरी मालती की माला पहना रही हैं। |
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(8) जब पंचप्रदीप में कर्पूर की बत्ती लगाकर श्रीललिता सखी युगल आरती करने लगी... |
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(9) तब देवियाँ, लक्ष्मियाँ, श्रुतियाँ धरती पर लोट-पोट खाने लगीं, गोपियों के जैसे अधिकार को रो-रोकर माँगने लगी। |
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(10) श्रीभक्तिविनोद ठाकुर सुरभी कुंज में रहकर इस आरती का दर्शन करके प्रेम-सुख का अनुभव करते हैं। |
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥ हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥ |
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