वैष्णव भजन  »  एक-दिन शांतीपुरे
 
 
श्रील भक्तिविनोद ठाकुर       
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भाई-रे!
एक-दिन शांतीपुरे, प्रभु अद्वैतेर घरे,
दुइ प्रभु भोजन बसिल
शाक करि आस्वादन, प्रभु बले भक्त-गण,
एइ शाक कृष्ण आस्वादिल॥1॥
 
 
हेन शाक-आस्वादने, कृष्ण-प्रेम ऐसे मने,
सेइ प्रेमे कर आस्वादन,
जड़-बुद्धि परिहरी प्रसाद भोजन करि,
हरि हरि बल सर्व जन॥2॥
 
 
(1) हे भाइयों! एक दिन शांतिपुर में, दोनों प्रभु, श्रीचैतन्य महाप्रभु और नित्यानंद प्रभु, अद्वैत प्रभु के घर मे दोपहर भोजन के लिए बैठे थे। आश्चर्यजनक साग का आस्वादन करने के पश्चात्‌-चैतन्य महाप्रभु ने कहा, “मेरे प्रिय भक्तों, यह साग इतना स्वादिष्ट है, भगवान्‌ कृष्ण ने अवश्य ही इसको चखा है। ”
 
 
(2) “इस जैसे उत्तम साग का आस्वादन करके, वयक्ति अपने हृदय में कृष्ण के प्रति प्रेम में तुम्हें जी भर कर इस प्रसाद का आस्वादन करना चाहिए। समस्त भौतिक धारणाओं को त्याग दो और भगवान द्वारा खाए गए भोजन के अवशिष्ट का सम्मान करो, कृष्ण-प्रसाद ग्रहण करते हुए, तुम सभी लोग, कृपया भगवान्‌ ‘हरि’ के नाम का उच्चारण करो। ”
 
 
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥ हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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