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भुलिया तोमारे  |
श्रील भक्तिविनोद ठाकुर |
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भुलिया तोमारे, संसारे आसिया,
पेये नाना-विध वयथा।
तोमार चरणे आसियाछि आमि,
बलिब दुःखेर कथा॥1॥ |
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जननी-जठरे छिलाम यखन,
विषम बन्धन-पाशे।
एक बार प्रभु! देखा दिया मोरे,
वंचिले ए-दीन दासे॥2॥ |
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तखन भाविनु जनम पाइया,
करिब भजन तव।
जनम हइल पड़ि’ माया-जाले,
ना हइल ज्ञान-लव॥3॥ |
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आदरेर छेले, स्वजनेर कोले,
हासिया काटानु काल।
जनक-जननी-स्नेहेते भुलिया,
संसार लागिल भाल॥4॥ |
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क्रमे दिन दिन, बालक हइया,
खेलिनु बालक-सह।
आर किछु दिने, ज्ञान उपजिल,
पाठ पढ़ि अह-रहः॥5॥ |
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विद्यार गौरवे, भ्रमि’ देशे देशे,
धन उपार्जन करि’।
स्व-जन-पालन, करि एक-मने,
भुलिनु तोमारे हरि!॥6॥ |
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वार्द्धक्ये एखन, भकतिविनोद,
काँदिया कातर अति।
ना भजिया तोरे, दिन वृथा गेल,
एखन कि हबे गति?॥7॥ |
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शब्दार्थ |
(1) हे नाथ! आपके चरण कमलों को भूलने के कारण मुझे इस भौतिक संसार में आना पड़ा। तब से अब तक, मैं विभिन्न भौतिक कष्टों को झेल रहा हूँ। अब क्योंकि मैंने आपके चरणकमलों की शरण ग्रहण कर ली है, मैं अब आपके समक्ष अपनी वयथा-कथा का वर्णन करूँगा। |
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(2) जब मैं अपनी माता के गर्भ में था, तो मेरे कर्मो के फलस्वरूप आपने मुझे दर्शन दिए। परन्तु, उसके पश्चात् मैं आपकी कृपा से वंचित रह गया। |
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(3) उस समय, मैंने सोचा था कि जब मैं गर्भ से बाहर आ जाऊँगा तब मैं आपकी आराधना करूँगा। परन्तु, जन्म के पश्चात् मैं आपको भूल गया क्योंकि मैं माया के जाल में फँस गया। वास्तव में, मेरे पास वास्तविक ज्ञान लेश मात्र भी नहीं है। |
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(4) मैं एक लाडला पुत्र बन गया तथा अपने रिश्तेदारों के मध्य अपना समय वयतीत करता हुआ आनन्दित रहने लगा। इस प्रकार, मैं अपने माता-पिता के वात्सल्य में पूर्णतया डूब गया तथा मैं इस भौतिक संसार को पसंद करने लगा। |
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(5) इस प्रकार, धीरे-धीरे, दिन-प्रतिदिन मैं बड़ा हो गया और अन्य किशोरों के साथ खेलने लगा। कुछ समय पश्चात्, जब मैं कुछ और अधिक परिपक्व हुआ तो मैं अपनी पढ़ाई-लिखाई पर ध्यान देने लगा। |
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(6) हे भगवान् हरि! अपनी शिक्षा के अहंकारवश मैं एक स्थान से दूसरे स्थान में धनोपार्जन करता हुआ भ्रमण करने लगा। मैं अपने पारिवारिक सदस्यों का अत्यन्त सावधानीपूर्वक पालन-पोषण करने लगा। इस प्रकार, मैं आपको पूर्णतया भूल गया। |
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(7) श्रील भक्तिविनोद ठाकुर पश्चात्ताप करते हैं, “मैं वृद्ध हो गया हूँ तथा विभिन्न प्रकार के कष्टों से ग्रस्त हूँ। हे भगवान्, मैंने अपना जीवन आपके चरणकमलों की आराधना किये बिना ही गवाँ दिया। अब मेरी क्या गति होगी?” |
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥ हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥ |
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