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राधा कृष्ण बोल बोल बोलो रे सबाइ  |
श्रील भक्तिविनोद ठाकुर |
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राधा कृष्ण बोल बोल बोलो रे सबाइ
(एइ) शिक्षा दिया, सब नदिया
फिरछे नेचे’ गौर – निताइ
(मिछे) मायारवशे, जाच्छ भेसे,
खाच्छ हाबुडुबु, भाइ॥1॥ |
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(जीव) कृष्णदास, ए विश्वास,
कर्’ ले त’ आर दुःख नाइ
(कृष्ण) बल् बे जबे, पुलके ह’बे
झ’र्बे आँखि, बलि ताइ॥2॥ |
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(राधा) कृष्ण बोलो, सङ्ग चलो,
एइमात्र भिक्षा चाइ
(जाय) सकल विपद भक्तिविनोद
बोले, जखन ओ – नाम गाइ॥3॥ |
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शब्दार्थ |
(1) श्रीचैतन्य महाप्रभु तथा श्रीनित्यानन्द प्रभु नवद्वीप में नृत्य करते हुए भ्रमण कर रहे हैं तथा जीवों को शिक्षा दे रहे हैं - अरे भाइयो! सभी लोग मिलकर 'राधाकृ्ष्ण' का नाम लो। तुम लोग व्यर्थ ही माया के वशीभूत होकर संसार के स्रोतों में (जन्म मरण के स्रोतों में) बहते हुए कभी पानी में डूब रहे हो तो कभी एक क्षण के लिए ऊपर आ रहे हो अर्थात् कभी तो अत्यन्त दुःख भोग रहे हो तो कभी एक क्षण के लिए सुख आ जाने पर आनन्दित हो जाते हो। इस प्रकार अनादि काल से तुम्हारी यह दुर्दशा हो रही है। |
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(2) परन्तु यदि मात्र एकबार भी तुम्हें यह ज्ञान हो जाए कि 'मैं कृष्ण का दास हूँ' तो फिर तुम्हें ये दुःख-कष्ट नहीं मिलेंगे तथा जब 'कृष्ण' नाम उच्चारण करोगे तो तुम्हारा शरीर पुलकित हो जाएगा तथा आँखों से अश्रुधारा प्रवाहित होने लगेगी। |
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(3) श्रीभक्तिविनोद ठाकुर कहते हैं - अरे भाई! मैं आप लोगों से यही भिक्षा माँगता हूँ कि तुम कृष्ण बोलो, क्योंकि जब कोई व्यक्ति कृष्णनाम का गान करता है तो उसी क्षण समस्त प्रकार की विपदाएँ दूर हो जाती है। |
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥ हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥ |
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