वैष्णव भजन  »  आमि त’ दुर्जन
 
 
श्रील भक्तिविनोद ठाकुर       
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आमि त’ दुर्जन अति सदा दुराचर
कोटि कोटि जन्मे मोर नाहिको उद्धार॥1॥
 
 
ए हेन दयालु केबा ए जगते आछे
एमत पामरे उद्धारिया लबे काछे?॥2॥
 
 
शुनियाछि, श्रीचैतन्य पतितपावन
अनंत – पातकी जने करिला मोचन॥3॥
 
 
एमत दयार सिंधु कृपा वितरिया
कबे उद्धारिबे मोरे श्रीचरण दिया?॥4॥
 
 
एइबार बुझा जा’बे करुणा तोमार
जदि ए पामर – जने करिबे उद्धार॥5॥
 
 
कर्म नाइ, ज्ञान नाइ, कृष्णभक्ति नाइ
तबे बल’ किरुपे ओ श्रीचरण पाइ॥6॥
 
 
भरसा आमार मात्र करुणा तोमार
अहैतुकी से करुणा वेदेर विचार॥7॥
 
 
तुमि त’ पवित्र पद, आमि दुराशय
केमने तोमार पदे पाइब आश्रय?॥8॥
 
 
काँदिय काँदिय बले ए पतित छार
पतितपावन नाम प्रसिद्ध तोमार॥9॥
 
 
(1) मैं सर्वाधिक पापी तथा अत्यन्त दुराचारी हूँ। कोटि-कोटि जन्मों में भी मेरा उद्धार संभव नहीं है।
 
 
(2) इस संसार में आपसे अधिक दयालु और कौन है? कृपया इस पापी का उद्धार कीजिए तथा अपने चरण कमलों के निकट स्थान दीजिए।
 
 
(3) मैंने सुना है कि श्री चैतन्य महाप्रभु पतितात्माओं के उद्धारक हैं। उन्होंने असंख्य पापियों का उद्धार किया है।
 
 
(4) वे दया के सागर हैं। कब वे मुझपर कृपा करेंगे तथा अपने चरणकमलों की सेवा देकर मेरा उद्धार करेंगे।
 
 
(5) पतितात्माओं के प्रति आपकी करुणा का प्रदर्शन मुझ जैसे पापी का उद्धार करके ही हो सकता है।
 
 
(6) मैंने न तो पुण्य कार्य किए हैं तथा मेरे पास आध्यात्मिक ज्ञान का सर्वथा अभाव है, न ही मेरे पास कृष्ण-भक्ति है। अतएव, कृपया मुझे बताएँ कि किस प्रकार से मैं आपके चरणकमलों का आश्रय ग्रहण करूँ।
 
 
(7) मेरा एकमात्र भरोसा आपकी करुणा है। यह वेदों का निर्णय है कि आपकी कृपा अहैतुकी है।
 
 
(8) आप परम पवित्र हैं, तथा मैं सर्वाधिक दुष्ट व्यक्ति हूँ। किस विधि से मुझे आपके चरणकमलों का आश्रय प्राप्त होगा।
 
 
(9) यह तुच्छ पतित जीव बारम्बार रोते. रोते उद्धार की आशा कर रहा है क्योंकि आप तो पतितात्माओं के उद्धारक के रूप में विख्यात हैं।
 
 
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥ हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
 
 
 
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