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दयाल निताइ चैतन्य बोले  |
श्रील भक्तिविनोद ठाकुर |
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दयाल निताइ चैतन्य बोले नाच रे आमार मन।
नाच रे आमार मन, नाच रे आमार मन॥1॥ |
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(एमन दयाल तो नाइ हे मार खेये प्रेम देय)
(ओरे) अपराध दुरे-जाबे, पाबे प्रेम-धन
(ओ-नामे अपराध-विचार तो नाहि हे)
(तखल) कृष्ण-नामे रुचि हबे घुचिबे बन्धन॥2॥ |
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(कृष्ण-नामे अनुराग तो हबे हे)
तखन-अनायासे सफल हबे जीवेर जीवन
(कृष्ण रति विना जीवन तो मिछे हे)
शेषे-वृन्दावने राधा-श्यामेर पाबे दर्शन
(गौर-कृपा हले हे)॥3॥ |
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शब्दार्थ |
(1) मेरे प्रिय मन! अत्यन्त दयालु भगवान्, चैतन्य महाप्रभु व नित्यानंद प्रभु के नामों का उच्चारण करते हुए, कृपया नृत्य करो। मेरे प्रिय मन! कृपा करके नाचो, कृपया नृत्य करो। |
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(2) उन दोनों के समान और कोई इतना दयालु नहीं है, इतनी मार खाने के बावजूद भी, उन्होंने भगवत्प्रेम प्रदान किया। हे मेरे मन! उनके नामों का जप-उच्चारण करने से आपके सभी अपराध नष्ट हो जाऐंगें और आप प्रेम-धन प्राप्त करोगे। वास्तव में तो, उनके पवित्र नामों का जप करते समय, अपराधों पर विचार नहीं किया जाता। इस नाम जप द्वारा, आप कृष्ण के नाम का उच्चारण करने का स्वाद विकसित कर लोगे। नाम में रुचि उत्पन्न हो जाएगी तथा भौतिक अस्तित्व से तुम्हारा बंधन नष्ट हो जाएगा। |
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(3) हे मरे मन! आप कृष्ण के नाम के प्रति अनुराग या आसक्ति निश्चित रूप से विकसित कर लोगे। उस समय, आपका जीवन बहुत सरलतापूर्वक सफल हो जाएगा। कृष्ण के प्रति आसक्ति के बिना, यह मनुष्य जीवन वयर्थ है। यदि आप भगवान् गौरांग की कृपा प्राप्त करते हैं तो अंत में, आपको शीघ्र ही, वृन्दावन धाम में, श्रीश्री राधा-कृष्ण के दर्शन प्राप्त हो जाऐगें। |
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥ हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥ |
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