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श्री सम्बन्धाधिदेव प्रणाम  |
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जयतां सूरतौ पङ्गोर्मम मन्दमतेर्गती।
मत्सर्वस्वपदाम्भोजौ राधामदनमोहनौ॥ |
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शब्दार्थ |
श्रीराधा-मदनमोहन, जो सदैव दिवय आनंदमय लीलाओं में मग्न रहते है, उनकी जय हो। क्योंकि वे परमदयालू हैं, मेरे जैसे पंगु, मन्दमयी एवं अज्ञानी के रक्षक हैं। उनके दोनों चरणकमल मेरा सर्वस्व है, मैं उन्हें सादर प्रणाम करता हूँ। |
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥ हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥ |
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