वैष्णव भजन  »  जय जय श्रीकृष्णचैतन्य नित्यानन्द
 
 
श्रील नरोत्तमदास ठाकुर       
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जय जय श्रीकृष्णचैतन्य नित्यानन्द।
जयाद्वैतचन्द्र जय गौरभक्तवृन्द॥1॥
 
 
कृपा करि’ सबे मेलि’ करह करुणा।
अधम पतितजने ना करिह घृणा॥2॥
 
 
ए तिन संसार-माझे तुया पद सार।
भाविया देखिनु मने-गति नाहि आर॥3॥
 
 
से पद पाबार आशे खेद उठे मने।
वयाकुल हृदय सदा करिय क्रन्दने॥4॥
 
 
कि रूपे पाइब किछु ना पाइ सन्धान।
प्रभु लोकनाथ-पद नाहिक स्मरण॥5॥
 
 
तुमि त’ दयाल प्रभु! चाह एकबार।
नरोत्तम-हृदयेर घुचाओ अन्धकार॥6॥
 
 
(1) श्रीचैतन्यमहाप्रभु की जय हो, श्री नित्यानन्दप्रभु की जय हो। श्री अद्वैतआचार्य की जय हो और श्रीगौरचंद्र के समस्त भक्तों की जय हो।
 
 
(2) कृपा करके सब मिलकर मुझपर करुणा कीजिए। मुझ जैसे अधम-पतित जीव से घृणा मत कीजिए।
 
 
(3) मैं इस निष्कर्ष पर पहुँचा हूँ कि तीनों लोकों में आपके चरणकमलों के अतिरिक्त और कोई आश्रय स्थान नहीं है।
 
 
(4) उन श्रीचरणों की प्राप्ति के लिए मेरा मन अति दुःखी होता है और वयाकुल होकर मेरा हृदय भर जाता है। अतः मैं सदैव रोता रहता हूँ।
 
 
(5) उन श्रीचरणों को कैसे प्राप्त करूँ इसका भी ज्ञान मुझे नहीं है और न ही मेरे गुरुदेव श्रील लोकनाथ गोस्वामी के चरणकमलों का मैं स्मरण कर पाता हूँ।
 
 
(6) हे प्रभु! आप सर्वाधिक दयालु हैं। अतः अपनी कृपादृष्टि से एकबार मेरी ओर देखिये एवं इस नरोत्तम के हृदय का अज्ञान-अंधकार दूर कीजिए।
 
 
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥ हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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