वैष्णव भजन  »  पूर्ण मंगलाचरण (पुष्पांजलि आदि के दौरान)
 
 
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ॐ अज्ञान तिमिरान्धस्य ज्ञानाञ्जन शलाकया।
चक्षुरुन्मीलितं येन तस्मै श्रीगुरवे नमः॥
 
 
श्री चैतन्यमनोऽभीष्टं स्थापितं येन भूतले।
स्वयं रूपः कदा मह्यं ददाति स्वपदान्तिकम्॥
 
 
वन्देऽहं श्रीगुरोः श्रीयुतपद-कमलं श्रीगुरुन्‌ वैष्णवांश्च
श्रीरूपं साग्रजातं सहगण-रघुनाथान्वितं तं सजीवम्।
साद्वैतं सावधूतं परिजन सहितं कृष्ण-चैतन्य-देवम्‌
श्रीराधा-कृष्ण-पादान्‌ सहगण-ललिता-श्रीविशाखान्विताश्च॥
 
 
नम ॐ विष्णु-पादाय कृष्ण-प्रेष्ठाय भूतले।
श्रीमते भक्तिवेदान्त-स्वामिन्‌ इति नामिने॥1॥
 
 
नमस्ते सारस्वते देवे गौर-वाणी प्रचारिणे।
निर्विशेष-शून्यवादी-पाश्चात्य-देश-तारिणे॥2॥
 
 
नमः ॐ विष्णुपादाय कृष्ण-प्रेष्ठाय भूतले।
श्रीमते भक्तिसिद्धान्त-सरस्वती इति-नामिने॥1॥
 
 
श्रीवार्षभानवी-देवी-दयिताय कृपाब्धये।
कृष्ण-सम्बन्ध-विज्ञान-दायिने प्रभवे नमः॥2॥
 
 
माधुर्य्योज्ज्वल-प्रेमाढय-श्रीरूपानुग-भक्तिद।
श्रीगौर-करूणा-शक्ति-विग्रहाय नमोऽस्तुते॥3॥
 
 
नमस्ते गौर-वाणी-श्रीमूर्तये-दीन-तारिणे।
रूपानुग-विरूद्धाऽपसिद्धान्त-ध्वान्त-हारिणे॥4॥
 
 
नमो गौरकिशोराय साक्षाद्वैराग्य मूर्तये।
विप्रलम्भ-रसाम्भोधे पादाम्बुजाय ते नमः॥
 
 
नमो भक्तिविनोदाय सच्चिदानन्द-नामिने।
गौर-शक्ति-स्वरूपाय रूपानुग-वराय ते॥
 
 
गौराविर्भाव-भूमेस्त्वं निर्देष्टा सज्जन-प्रियः।
वैष्णव-सार्वभौमः श्रीजगन्नाथाय ते नमः॥
 
 
वाञ्छा-कल्पतरुभ्यश्च कृपा-सिन्धुभ्य एव च।
पतितानां पावनेभ्यो वैष्णवेभ्यो नमो नमः॥
 
 
नमो महावदान्याय कृष्ण-प्रेम-प्रदाय ते।
कृष्णाय कृष्ण-चैतन्य-नाम्ने गौरत्विषे नमः॥
 
 
पञ्चतत्त्वात्मकं कृष्णं भक्तरूपस्वरूपकम्।
भक्तावतारं भक्ताख्यं नमामि भक्तशक्तिकम्॥
 
 
हे कृष्ण करुणासिन्धो दीनबन्धो जगत्पते।
गोपेश गोपिकाकान्त राधाकान्त नमोऽस्तु ते॥
 
 
जयतां सूरतौ पङ्गोर्मम मन्दमतेर्गती।
मत्सर्वस्वपदाम्भोजौ राधामदनमोहनौ॥
 
 
दिवयद्‌वृन्दारण्य कल्पद्रुमाधः।
श्रीमद्‌रत्नागार सिंहासनस्थौ।
श्रीमद्‌राधा श्रीलगोविन्ददेवौ
प्रेष्ठालीभिः सेवयमानौ स्मरामि॥
 
 
श्रीमान्‌ रासरसारंभी वंशीवटतटस्थितः।
कर्षन वेणुस्वनैर्गोपीर्गोपीनाथः श्रियेऽस्तु नः॥
 
 
तप्तकाञ्चनगौराङ्गी राधेवृन्दावनेश्वरी।
वृषभानुसुते देवी प्रणमामी हरिप्रिये॥
 
 
श्रीकृष्ण चैतन्य प्रभु नित्यानन्द।
श्रीअद्वैत गदाधर श्रीवासादि-गौरभक्तवृन्द॥
 
 
हरे कृष्ण हरे कृष्ण, कृष्ण कृष्ण हरे हरे।
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
 
 
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