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अकाव कितना के दृख्षणा, नेक एवं ऑनों के ब्रकिड़ निकलने जाती है
अकाव कितना के दृख्षणा, नेक एवं ऑनों के ब्दुःकार्णन खाने के वारण करें
शिद्धि चाहिए लीजिये और भक्ति चाहिए लीजिये। इसलिए सबसे लिए भगवान कृष्म का शरम में सरद्धि ना पूछी चाहिए।
यह आपको बताएगा कि अकाम शर्व काम हुआ, मोक्स अकाम खुला रखी, भीम प्रेणार वत्तु जोगी, जजीता परमौत जोगी।
इसलिए यह चुक्षण आंशिक्षमें शुक्षमें जो हम लोग जान रूप यहाँ है। उसका स्मूर्ण जोचन है।
जो आपका अगर इन्हार में कोई और चीज मानने की इच्छा आया है, तो मिला करेंगे। इस नहीं।
धनु दिला, वजन देवा, शुद्धि ध्यानौ, आर्थ वर्थाति, ग्याणी, दिज्ञानौ, प्याणी, वो भी बर्वाद के मुक्ति चाहते हैं।
बघुबान-ध्यासीए समय में पसंद पर चाहते हैं। तो प्रदिस्थतं ग्याणार्य, आर्थ-वर्थाति, वो भी बर्वाद का क्षम हैं।
शुप्रिति देशको बैट ग्राउंड पुर्ण है। वो भगवार भगवार जाते हैं। उन्हें भगवार भगवार किया। उसी से मानू होता है सब कुछ।
यह शुद्ध मर्थ नहीं है। शुद्ध मर्थ लेकर भगवार कुछ मानू नहीं। कारण यही चाहते है।
बहुत ही ज़रम है। यह ज़रम चाहिए।
बहुत आदमी है अमाराम। पीछे करें। सुन्दा पीछे रहें। महें भूम रहो। ननन जमान। और सुन्दरी स्रीका आजरें। चरितन वांसा दिलाई। न जमान न धन्य। न सुन्दरी उद्दवितां वादे भूदी सपान। उसको पीठ्या जाता है।
मौजर्मनी जरूर्वरी स्कारे मुक्ति भी नहीं जाता। मुक्तो ह्यार्वी धर्म करेशाने। मुक्ति भी नहीं जाता।
क्या करते है, मौजर्मनी जरूर्वरी स्कारे होता हाँ ग्भपे जोई। के विभव जोई जोई।
तो और कि भगोर की तरफ है कि वास्तवित भगपुति भी है। वो भी ध्यान जोई के लिए जा रहा है। उन्हें ही समझ पा रही है।
तो जैसा बहुआर सही बता रहा है। अब दृशुद्धा कहा है कि सब के लिए भी।
भूष्ट में कहीब बहुआर कहते हैं वीमंग राजर सयो दिधू थिमंग राजर प्राधि, आशार वीदू उदभूत और वही भी बता है।
। अपावेव जोगत राश््त परणत्रप्राप्पत्त
एवं परणत्राप्त युवं राजर शयुरफ़ 지역.
राजर शी लोग विस्वसिम्व राजर शी लोग विस्वसिम्व राजर शी लोग विस्वसिम्व राजर शी लोग .
इमाँ निवर्ष्ठते रूम परत्तुबाराँ निवर्ष्ठाद्व अधित्राँ मनु इथाँ अधित्रदित्र। एवं राज्यप्षय रोजूँ।
तो यह प्रस्थेकुलेटर के गृह में है।
कुछ वह वरिजारिष्ठी है, जैसा
महाराज्य। अधिशाउ ठ्वित्यः पुरदान महाराज्यः, kindergana महाराज्य।
श्रीणात महाराज्य। जैदि धिलिधनी महाराज्य। प्रिदकीत महाराज्य। धूमु महाराज्य।
पारात तो व्यवर्य राज व्यदिलीष्ठि, जग्ड़ वृष्ठा श्रीय राज राज, हमूलीश महाला व्यवर्यश्ठ राज्ञा, ती भारच्वस कुछ में है, अये व्यवर्यश्ठ राज ने इसके है।
ये भवद्धिता शायद को समझते हैं। ये सब के लिए नहीं। और चकालेगन जोगणास्तः परंत्तपत्म। क्यों नस्पों क्या।
पांच हदार परस पहले भवद्धिता, भवाजिनार भोड़ रहते हैं। उस समय नस्पों क्या। क्यों।
क्यों। वो जो परंपरा सिस्टम है। वो धोनिर। इसने भगमान कहते है कि वोई जो, खुराकर जो। ये नहीं है कको ओणिया मना कर पोचालेगन।
फिर तुझ चाहो हम बता रहेगे। ये? फिर हम को क्या बता रहेगे क्या? हम तो ब्राह्मा नहीं हैं।
और दिलांती भी नहीं है, और राजा है, ये राजकार्थ में विद्धि व्राय करने में आया है, अपना खार्थ भूँरक्षण करनी चाहिए।
तो मैंने ऐसे जो को प्रकृष्ण हो गया, इतने भक्तोर थी हुए।
इसलिए भगवर्धीता शमध्य का दुष्य का अधिकार है जरतक भूँखवत्तुर।
वो भक्तोर क्या होता है, समझन चाहिए।
तो पुष्टु का अधिकार यह कि बगवान कृष्ण का और कोई लिला रही है, भगवर्धीता शमध्य का अधिकार नहीं है।
वो भक्तोर थी भ्रियूस। बगवान का प्रियों होना चाहिए।
और भगवान को भक्त होने चाहिए कि रंग नहीं है मक्त भी कहने लो कोई कि कुछ पर कुछ भक्त का रंग है तभी लोग समझ सकते हैं
अच्छा को सचे या लोग प्रश्न ओण है ईसे फॉल रण का पूड़ा नहीं थै है
हुआ के लिए
हैं
सब मंग्र स्लोह और यह खड़ा हुआ है
कि स्लोह है मनस्य जिवन का उद्देश्य अधार्धुपर्ण का दिज्ञाश है ब्रह्म भृजायों के दिज्ञाश यह मनस्य जिवन है
इसको कौन करवा करते हैं यही मनस्य जिवन हमको भिराय है ब्रह्म भृजायों को हमको जरूर होना चाहिए नहीं हो सकते हैं
किदर दुदर होना चाहिए खर्च जाएगी किसी एक स्वलिशुख में भलता है मंदाव हरुपा आई दो व्राहेण और अलपु आई दो तो कलू रस्मिरिश्य एक तो अलपु आई दो
पहली ही समप्रश्टित में एट लाख बदर्ज जी रित्रण करता हैं
तमिरुष बहार दस अजार बदर्ज को हार्म सु करते हैं
तमिरुष बहार एक अजार बदर्ज को हार्म सु करते हैं
के अदि एक सौप हैं- वो भी नूररास्त है
करना चाहिए कि उसमें आयुगाल्य है बहुत कम है उसमें भी मंदा है बहुत धीरे तक आई लोग दुरारमंद्य देखा रहे हैं प्रमुख गया है
प्रमुख देखा रहे हैं प्रमुख देखा रहे हैं
तो दूर धांग था दूर धांग इसलिए है कि वर्षय जिवनु किलार ब्रह्मव कहाँ करना की दिलिये भरभर कहाँ की दिलिये पर्मापा कहाँ के दिलिये आंतर प्लूंट श्रीता रहे हैं
इतना मारा भारत होती है। महजबाह। और इस तरह से भी देती है। आरतायां कलेजिन में प्राइयर। यह जो स्रिकली आहार विप्ता भाये में इतनों चार चीप क्षेली हो भी नहीं होता।
पशु को बिलता है, पशु को बिलता है, अमरोष जीमन को नहीं बिलता है। कितना अधिक बिलता है, जो आज समय लिए खाया साम तो क्या खाएंगे, सुष्ठिता रहेंगे, और शादी दिवार को भुख प्रयाई होता नहीं।
प्रक्षील लेकिन को खोलता ही थी हुआ। रिप्स, संपर्कर, पुरुष्ण, संपरक व्रषे, वो नहीं भी मचलते।
बही मौयूर्त है। आहार दीत्या, दीत्या का धिश्ठान नहीं है। कहाु रहेंगे, कहाँ ध्ठान है।
अजित दिफेंसर के लिए सबसुभाई भैरु। जहान कम कम किये जाँ, जहान कम कम को रहा है।
अभी हम मिरिस्टर हैं, कौन आपको जाम पाएंगी, और कौन पोरिया जाएंगी, सबसुभाई।
सदा समझे के रिपेत भी हाँ, सबसुभाई है।
उपत्रिता यह हमारा परिष्टिति है करिजूर में अधिक आयु मैं पार्वाक्षित की चाहिए कोई समझता ही नहीं मन्या और समझने के लिए कोई प्रजत्व कर दे
एक ओं मन्य महच लगा लेते हैं जत्ममातर्सं वासु और ँत्वे हाथ है और वज़न है यह पर्ग्जार है इसलिए हूं
हाल स्रेयुजर्नाम महा भूद जहंकिष्चर मोहँिंदव है किस्तों चन्त है
हरेकु नाम हरेकु नाम हरेकु नामा च्रिभन grated आप लग लून नांशि नामन श्राष करना माहु
चलते हैं। शाहीतर महा हो कोई नोए होक हैं ना है करूब ये तब च फुलला है रुद्ध व्यवस्ते तिवा भाती यह
कि महाराज कौन ना तुझे प्रशानित महाराज कोई का तो दो समय को बताएं तो अजय को
कांड़ में सब्सक्राइब कर सकते हैं कि आज एक देशी सामना कुछ अच्छा में देखते हैं जो शिकार
नहीं भूल भागी पर जो मैं चार्जी होगी एक पूर्व शिकार करें तो यह दो चार बर्ग वहां साथ हम गए तो शिकार
वह भूल भागी वह उद्भाव शाली उसी का प्रदेश होगी कि अजय को लेकिन यह नेशनल है तो यह आप चार बस के लिए
कि आप श्रीखुरुष जिससे रहेंगे जिससे होगी अजय को धार्गवर्त नहीं रहना है तितामा रखेंगे कि यह
है कि भारगवर्त शिकार वहीं नाम करते रत्ने वहीं कि श्रीखुरुष का संस्पष्ट नंबर करके चारू लाएगा जब तक सेट
आप और इसके लिए जाएगा इस लिए लावन लोग यह नहीं है और यह ज्यादा नंबर लावन लोग यह ज्यादा नंबर लावन लोग
कि विपकृति शुत्रों के विभारत
कि दो पैसे का शुत्र विधान जाती है विभारत
यह सब विभारत है तो यह दोष दोष ही है
इसके शात्र का चर्चा है यह फलिदुप है यह दोष की नीजी है शुत्र
तो यह शात्र है और यह पार्थ पर सुनाया तो देखो चाहिए बहुत आजार
तो लोग रोजनी राजन की बस्ति एक उन महान एक महान जो नहीं है तो उसको अच्छा है क्या है कि इतना लेवा कृष्ण स्थाओ
थामू कृष्ण केवर मुद्दायां कृष्ण का नाम कृष्ण कीजिए थामू कृष्ण पहले वहीं देती सक्रवार से नहीं देती यह दो बनो कर लोग।
नहीं है और कुछ नहीं कोई मारी मजली खाने वाला पीने वाला प्रश्चन करना नहीं है
बहुत हुआ है कि क्वांध फुलेट जानते हैं यह पूछा कर सकते
है स� mtea नहीं कर सकते
कि आपका नी नाम जस्त भगवान पूछातम की इतना पता
लुट लोग अब मैं अपने विषय कोई पतु नहीं है और उसकी भी दितने-दितने शॉप है इसका चास का विमाज है
कि वो ना एक लाभी देते हैं वे नोए लिखे ताते होना है।
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥ हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥