श्रील प्रभुपाद के हिंदी में प्रवचन  »  701229LE-SURAT--Hindi
 
 
 
हरि कथा
सूरत, 29-दिसंबर-1970
 
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ओ मग्डान तिमिरान लश्या ज्यानान्यन सलातया चक्सो मिलितां जेना तक्मैं सीवुरवेनवा
स्रीचैतन्ना मनो भिष्यं सापितं जेना हूतले तैंग धूपकदामयं ददाती सापदां पिकां
कि नमदे हम श्री गुरु स्री जित पगतम नम श्री गुरुढ वैश्ववांक्षत स्री रूपण शार्ग्रजातम शारण रघुनापा नितंतं सजीव अ
आद्दैतं शावधूतं फरिरना सहितं कृष्णा चैतन्य देवं
स्री राधा कृष्ण पादां सहगन ललिता स्री विशाखां नितां
ये कृष्णा करणाशंधो दीनवंधो जबत्पते
गोपेश गोपिकाखां तराधाखां तनावस्तुते
तत्तकांचन गौरांगी राधे विलनावने स्थरि दृखवानू तृत्यदेवी
प्रणमाम्यों हरिस्प्रयेष्णा हरे.. कृष्णा
हरे..कृष्णा..्कृष्णा..्कृष्णा.. सब्सक्राइब
सेश्या anything कृष्णा तथि डापे यूगरा की चारलया रहे मारी
अनादि, रादि, गोविंदर, सर्वकार्णकार्ण, इश्वार, भगवान, बहुत से, बरे-बरे, रिशार्ट, कॉलर, दार्शनेश,
सारा दुनिया में विचार करना है जो भगवान क्या चीज है। भगवान है की नहीं।
और अनेक प्रतार बगवत के इंतन मनुष्य समाज में चाल हो। परन्तु आत्म में कहते हैं कि
अथातित एवे वपदांभयद्दयं प्रशागलेशानु गृहित एवही जानातित अत्तम्भ।
भगवत तत्त उसी को मानू होता है, जिसको वपार भगवान की कृपा।
साधारण व्यक्ति भगवान को समझ नहीं पाए,
क्योंकि यह भौतित जीवन है इधर भगबान को भूल जाना है एक मात्र का भौतित जीवन का अर्थ होता है भगबान को भूल जा
एक वैश्णाप कवी शास्त्र शिद्धांत है कि कृष्णा भुलिया जीव भोगबान्शा करे पाशते मायातारे जापटिया धोरे
जब मनस्या भगबान को भूल जाता है कृष्णा भूलिया
और
कृष्णा
भूलिया का अस सोता है
कि दुनिया को मैं भोग करूँ
जो कर्मी लोग है
उनका एक विचार है
जो
जहां तक सम्मर होई
मैं दुनिया को असी तरह से
भोग करूँगा
कि विचार चल रहा है
कृष्णा भुलिया जीव भोगबान्शा करो
ये तो
भोग तो नहीं कर सकता है परन्तु सोचता है जो मैं भोग करूँ किसी का नाम है माया वो तो बात से भी भोग नहीं करते हो भोगा हो जाता है याने एक भोग का लक्ष करके जो काम करते हैं उसके लिए काम करते करते करते परिशान हो जाता है ये भोगा हो जाता है उसको आओ
परन्तु वो समझता है मैं भोग कर रहा हूँ किसी का नाम है माया भोगता तो भगवान है जैसे भगवाद गीता में बताया है
भोगता रम जग्गत वसाम सर्वलूक महित्तम सुरीदम सर्वभूताना ज्ञात्या माम शांति विष्चति
यह कर्मी लोग समझता है जो मैं भोगता हूं मैं दुनिया को भोग करूंगा और बड़े-बड़े लीजर लोग यह जनसधान को
मित्र बनता है मिनिस्टर बनने के लिए तो बात भी एक मात्र मित्र जो है वह भगवान कृष्ण सुरीदम सर्वभूताना
जो
है यह जो मित्र है यह अपना जहां जानपचान है उसके मित्र है तो लोग ए थे कि तब का मित्रों अधिक हो सकता
है रखता मित्र होता होता है तो जानवा को प्रतिश्चण है तब का मित्र नहीं होता को होता जैसा
दिन मैं अपना फी का मिश्त्र है पूत्र का मिश्त्र है या और दो चार का मक्षर आग्नी का मिश्त्र है कि
आपका मित्र नहीं हो सकता यह संभाल है हैं कि आपका मित्र तो भगबाद कृष्णा borros
श्रीदाम् सर्वभूतानाम् यह जब समझ में आएगा जो हमारा जो मित्र है असल मित्र जहाँ वह बगवाद है
कि जिसको यह बात समझ में आया है उसी को शांति मिल चक्ति दूसरे को नहीं है बगवाद खुद कहते हैं ना श्रीदाम्
सर्वभूतानाम् ज्ञाक्यामाम् शांति मिश्चित है कि इसलिए हमारा बड़े-बड़े जो महाजर है जैसा प्रलाद महाराज धुरुबो महाराज
और बड़े बड़े भक्त साव हो गए हैं, वो दुनिया को मित्र नहीं माना था, अपना पिताजी को भी नहीं मित्र माना, जैसा परलाजी, वो भगवान को मित्र माना, सब विचार, गोपीलो, भगवान को पति माने,
ऐसा देखिए, बड़े बड़े भक्त है, उसका सर्थ, जैसा ओर्जोन, ओर्जोन कृष्ण को भी मित्र माने,
इस प्रकार, महाजन लोग का जो रस्ता है, उसको हम लोग अनुसरण करेंगे, महाजना जेन अतस्यपन्छा,
तो हमको भगवान को मिल सकता है, भगवान की खिपा मिल सकता है,
और भगवान की खिपा भीना भगवान को कोई समन नहीं पाएगा, ये सिद्धाम है,
अथाति ते देव पदामु जद्वयं प्रशाद लेशान गृहित एवही जानाति तत्दंब। जो भगवान की खिपा लाभ किया हुआ है, वो भगवत तत्व ज्ञान लाभ कर सकता है।
और भगवत तत्व ग्यार लाभ होने से आपको क्या होगा, क्या लाभ होगा, यह भी भगवान खुद बता रहा है।
जानम कर्म में दिव्बं जो जानाति तत्व में जो व्यक्ति हमारा जन्म कर्म क्या है, ताक्ति खंसता है, उसको क्या लाभ होता है।
तत्ता देहं पुनर जन्मन नहीं थी, मामे थी, कौन थे, यह कौन थे अर्ज्यों, जो हमारा जर्म कैसे होता है, कर्म कैसे होता है, इसको अच्छी तरह से ताक्षित जो सवस्ता है, इंट्रोट, उसको यह लाव होता है,
कि ये शरीर छोड़ ताके पुनर जन्मन है थी, इसको फिर भौति जन्मन ने जन्मन नहीं होता है, पुनर जन्मन नहीं थी, फिर क्या होता है, उसके इदर जन्मन नहीं होता है, तो खिलायो लय हो जाता है क्या, नहीं, मामे थी, हमारा क्षा लेता है,
और भगवान का पास जाने से क्या लाभ होता है कोई लाभ होता है मामुपेक्त कोंति आप दुखालय मसाच्छतम नापनुबन्ति महात्मान संसिद्धिन परमाण था
यदि विचार ब्रह्वत जीता में है जदी आप लोग ब्रगवत जीता ठीक-ठीक पढ़ेगे और �ueni tath Incredible जो बैग भाग बगवत जीता का
प्रचिकार का ठिक्पनी का सब भूल जाए तो भगवत तत्तः आपको ज्ञान हो और भगवत तत्तः ज्ञान होने से आपको जन्म जन्म
आपको थे एक जन्मद छोड़ते और एक जन्म लेना और एक जन्म लेनासिंह प्रकार जाएगे कि आप भ्रवन कर रहे है
आदमी इस फैंस को विज्ञान को कोई जानते ही नहीं भूल गया ना तो इसका लिए कोई स्कूल है कॉलेज है जीव तत्ता क्या चीज है किस्मकार ये कुट्टा होता है किस्मकार देवता होता है किस्मकार मनुष्य होता है फंकी होता है खीरा होता है केव ये सभी तो जीव
है और प्रितः प्रिताः उसको धुख सोख भोग है इस विषय में कोई स्कूल नहीं है कॉलेज नहीं है इनिवर्सिट नहीं है परन्तु हम लोग समझते हैं हम लोग बहुत आगे बढ़या है एडवांसमेंट आफ मेटीरियल साइंज व्हाट इस मेटीरियल साइंज आ �
जाता है जो मुर्खों सब हम लोग जितने अगर बढ़ते हैं जन्म से सब मुर्ख है जन्म ना जाये तो सुद्र सुद्र का अर्थ होता है मुर्ख जान नहीं है तो तो अब पराभवस्तावदावोद जाता है जितने
है कि दुनिया में सब जन्म लेते हैं सब अवोद है उसका जन्म से मुर्ख है अवओद जाता है जावलिन जीज्ञास अत्मत अपचम
कि न striking मिलता है जदी आत्मत अत्पत्व जीज्ञास नहीं है तो कुंछ जो कुछ काम कर रहा है बिजनेस परलबिट कर रहा है
बन रहा है और जो कुछ हो रहा है वह सबस्क्राइब पर आप हो वह हर जा रहा है कि इस बिन रिपीटेड इज नॉट कांटर इज
कि आप यह सायंस दुनिया में समझते हैं वह समझते हैं जो हम कोई तरह से एक रवे प्रेसिडेंट बन जाए तो हम हमारा
आवश्य हल हो जाए देखिए बड़े भारी जाप इंग्नाइट स्ट्रीक्स अब अमेरिका उसका प्रेसिडेंट मिस्टर कैनेडी
बहुत रुपया पासा खर्च करके आप लोग जानते हैं यह लोग सब जो प्रेसिडेंट मिनिस्टर बनते हैं कितना भूज
करते हैं कितना रुपया खर्च करते हैं इस सब करके बहुत बड़ा आदमी है धनिया आदमी सब खर्च करके यह प्रेसिडेंट
बना प्रदंद तो एक सेकंड में उसका सब ख़तम एक आदमी देखा हमारा इधर गांधी जी को कभी मार दिया उसको भी बंदुक
हमारी आप लोग सब जानते हैं तो प्रकृति का नियम यहीं से है तो हम लोग बहुत कुछ कोशिश कर रहे हैं इधर में
भोगता भरने की बड़ा होने की बात यूज दैवी जैसा गुणमाई ममाया दुरुत्य प्रकृति के ऐसी नियम है सब एक सेकंड में
फ़तम कर दीजिए कि एक सेकंड ज्यादा है इसको हम लोग नहीं समझते और एक सेकंड के शरीर जब फ़तम हो गया उसका
बार आपको प्रसिदेंट और बिल्ला शिल्ला कुछ नहीं चलेगा उसका बात तो फिर प्रकृति का नियम से आपको और एक शरीर
में निकेश्चा अगर आप उत्ता का ऐसा काम किया है तो उत्ता का शरीर लेने पड़ेगा और यदि देवता ऐसा काम किया है
तो देवता का शरीर ले तो Russian यह पर क्षेति का नियम है कर्मना देव नितरेन है इससाम को समझना चाहिए और यह
यह विज्ञान जो है यह विज्ञान भगवत गीता में अच्छी तरह से बताया हुआ है समझाया हुआ है वहीं दुर्भाद्व है यह गीता
व्यक्षान करने वाले हैं यह सब अलग-अलग मनमाफित व्यक्षान करते हैं और आदमी को समझ दिया कि विपद गांव कर देगा
कि इसलिए यह जो कृष्ण कांशेसनेस मूवमेंट है कृष्ण भक्ति रशभा वितामति इसका एक मात्रू उद्देश है जो भगवत
गीता ऐज इसी इसको प्रचार करना है भगवत गीता में कृष्ण भगवान मत्ता नान्नत अस्ति मत्ता पड़तरं नान्नत अस्ति किन
भजन धरण या भगवान कहते हैं जो मुझसे बढ़कर के और कोई कप्त है वहीं शास्य शिद्धानता है इसलिए कृष्ण
जाए बट्टाई तरह जाए यह सब शास्य का सिद्धानता है कृष्ण तु भगवान सरम ए भगवान जो है वह कृष्ण उनका आप वहीं
मुख्य भगवान है वह कृष्णा कृष्णस्तु भगवान और कृष्णा ऐसे नहीं है कि केवल आपका भारती की लिए है यह हिंदु के
लिए है ने कि अश्ला शोत गोना जो कि कार्त तो है फद्धनी झूकोमत्य और संबंति मूंख मोर स्थाशारा
छुदासिलाद जोनि में जितने मूप genome सबके माय प्रता हैं इसलिए भगवान भोगता कि सबके पुतावराम
जो सब्हवान गृष्णा केबल भारत हौंत के यैर् नहीं है यह हिंदू पर नहीं है यह विचार नहीं है यह विचार यह
अवैडिकल लोग है लोक समझे तंजह हुआ है इसलिए वजह भारती को दुधन तेया यह हिंदू � خॉटल
छोटे हम लगी कि हां हिंदुधार्मा मुसलमान धर्म पृष्ट्रधान खृष्चान धर्म यह तक सब अगर अलाग है परन्नों भगवान का करते
हैं जो ओष्टर व धर्मान परिप्तर्य मामेकन सरधार्म यह कृष्ण धर्मा कृष्णाईद और पुष्ण तौर शहर
कि यह जो यह सब के लिए सारा दुनिया है हां इसलिए सारा दुनिया घ्रण भी कर रहा है कि आप लोग को उचित है कि यहां
पर देश में भगवा है कृष्ण चंद्रा आप उदय हुए हैं आधित भाव है तो इसलिए आपका विशेष्ट्र का आपका गुजराट आप कृष्ण तो गुजराट इसलिए
कि आप लोग करते हैं उसका मतुरा में तो उनका माथुलाला है उदर जन्म हुआ था तो उनको पित्राला है कि गुजराट
है तो यह तो हमारा शाह भाविष्च एक अपना आधान प्रदान का विचार है कृष्ण सब के लिए है तो आप लोग को विशेष्ट्र
परोधे में वाजिस अभावात कृष्ण संदर का जादव कहा जाता जय दुबं कि कृष्ण कोई बंस का है नहीं परेन तो कृष्ण
कृपा करके जहां आवभिदौब होते हैं उनके भी कोई दुर्वता है उनका नाम है कि जी कृष्ण का जादव कहा जाता
जैसे उदारण सरू चंदन्य है वो मालाय देश में पैरे होता है इसलिए चंदन्य का मालाय जा चंदन्य कहा जाता है
इस प्रतार भगवान कृष्ण चंद्रा बिर्णावन में लिला थिया था और आपका द्वार्का में राज्य थिया था
तो भगवान सब के लिए है परंतु विशेष होता है ये बिर्णावन मक्षुदार दार्पा श्योकीद भगवान सेंग लिला के
इसलिए सब के उचित है जिससे भगवान से गफीर संपर्त है जई कृष्ण भक्ती रशभा विताम होते
हैं सारा दुनिया में किस तरह से प्रचार हो है उसके लिए कोई शिक्ता जरूर कीजिए यह आपका अभिकार है और इसमें
भगवान कृष्ण अत्यांतर संतूर्ष होगा भगवान भगोत जीता में बताया है लचत अस्माद्मन सेशिक और स्थित में
इसलिए प्रत्यां जो भगवान के नाम दोनों प्रचार करते हैं दुनिया में उससे बढ़कर चिफ्ट दुनिया में आज
कृष्ण का कोई है ऐसा मोबाज तो भगवानत के दिवापन क्लिए होने चाहते यह होना चाहिए यह जीवन का साफल्य है देखिए
भी लो वह कोई ब्राह्मां का कन्या नहीं थे गांव गांव के और ग्वाला ग्वाला ग्वाली नहीं थे और मुर्ख भी थे
विदाम तो नहीं पड़ी और सुर्थ नहीं परन्तु कृष्ण का कृष्ण का आपन जन बन जिया इसलिए उनका नाम इतना है उनका
भूरों इतना है और उनका जी उपाथना है। जीबटन महापुरों कहते हैं आराद्ध भगवान भृजय सतनयों
तद्भ्हाम बृनिदावनâm और भगवानव जैसा आराद्ध बस्तु है। इसी
कारण के धाम जो बिंदावन है और उपाथना जो है गोपी लोग जैसे उपाथना किया था है उससे बड़कार कोई उपाथना है
देखिए गोपी लोग क्या क्या था भगवान को केवल भगवान को ही जानते हैं और उनका कुछ काम है नहीं भगवान
गोचारण के लिए बिंदावन को बाहर चल जाए और गोपी लोग सोच रहे हैं जो भगवान का चरण कमल कितना सुन्दर कितना नरम और जिसको हम अपना वक्षत साल में धारन करने भी मालुम होता था कठीन है
ये चरण जो है भगवान का वो जंगल में घूम रहे हैं और नहीं जानी इसका चरण में कितना पथ है कहा कर लग रहा है और भगवान जो तकलीब जरूर हो रहा है ये सोच सोच करके गोपी लोग घर में रोचे इसका जाना है भगवत गुत कृष्ण कौन साथ है कृष्�
वोही सर ते बड़ा जोग है भगवत जीता में ऐसे बताया जोगी नामकी सरसा मदगत अंतरात्म नाम अ सत्यावाण भजते जोमाँ समय जुखतत होमन जितने
जोगिया है बड़े जोगिये वह सार्व जोगिया से एक बड़ा जोगी कौन है जो कि सब शमय अंतनात्मा में कृष्ण का चिंतन
सब जैसे गोपी लुख तक यह सबसे बड़े जोगी है यह सास्त्र का विचार है और इस वकान भगवत चिंतन में ज़िए आप
समाधिक हो जाएंगे, सब समाधिक, ये नहीं आया जो गोपी लोग जा करके आशान ध्यान धारना प्राणाम करके भगवान जोप करके, साभाविक तर से केवल कि कृष्ण चिंतन, जीवन ऐसे बना लीजिये, साभाविक तर से कृष्ण चिंतन होगा,
साभाविक तर से केवल कि कृष्ण चिंतन होगा,
कि वह कहीं भी रहेगा कृष्ण सुन सके हैं तो यह है कृष्ण सुनता और कृष्ण भावना मिलता अब कृष्ण
स्नाख हैं इन दुनिया में प्रकार को रहा है और उसका फल भी हुई है देखिए सारा दुनिया में कृष्ण
कृष्ण करने को शुरू कर दिया सब समय हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम हरे हमारा यह
प्रतिष्ठान जो है अब बग्गु भाई आप लोग कुछ सुनाया यह प्रत्यक मंदिर में कम से कम 25 से 50 कहीं कहीं और
ज्यादा ऐसी भत्ता है जो आपको सामने मौजूद है कि और इनका सबरे चार बजे से शुरू करते हैं आप लोग जानते
हैं श्री रात में हम लोग इधर है हम लोगों काम काज्यक्रम शुरू हो जाती है सबरे चार बजे में और रात दाप 10 बदे
और कभी कभी ज्यादारी यही कृष्ण कांफेस्ट नहीं है और कुछ काम ही नहीं है। यह आप लोग देख रहे हैं। रोजाला दो चार जैना में ऐसा मिटिंग हो रहा है। सबरे आवार आरती, धुफर में आरती, साम को आरती। हम लोग को फूर्सत ही नहीं है। फिर जा
जब रहे हैं, पांच लाख व्यक्ति गॉड़ इथर, बहुत काम हमारा पड़ता है। आदमी भी बहुत है, काम भी बहुत है। कृष्ण कांफेस्ट नहीं की जा रहा है। तो सबको जो भगबान जो अन्लिमिटेड है, इसका भक्तरी अन्लिमिटेड हो सकता है। आप लो
यहाँ दुलन है। किसली है। हमारी निवधन है। जो आप लो प्राण से, अर्थ से, बुद्धी से, बचन से, यह कृष्ण कांफेस्ट ने इस मौविमेन को चाली चीजिए। दुनिया का सुख होगा, आपका सुख होगा, भगबान भी सुखी होगा। भगबान भी ज�
कर वैशित से प्रचार करने में उर्जोगी है। तो भगबान जरूर। भगबान तो खुद कहते ही है। नत तस्मात मनुष्य सुख कश्चित में प्रियति। भगबान का प्रिय हनाई मनुष्य जीवन का एक मात्र उद्देश्व है। और यह सरल उपाय। कृष्ण भक्
अली प्रेसिडियो में कोई लड़ी है तो सब्सक्राइब करते हैं
 
 
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥ हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
 
 
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