श्रील प्रभुपाद के हिंदी में प्रवचन  »  760408SP-VRNDAVAN_Hindi.MP3
 
 
 
उपदेश
वृंदावन, 08-अप्रैल-1976
 
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जो खतिब दी देश में बताया कि जिसको देख करके कृष्ण नाम उदय होता है, वो फ़रवश्ण है।
तो एक दब्बे माई लैंडन से अप्रिका में जा रहा है।
और रात बारा उठे, तो प्लेन एथेंस में सुतराब।
तो पर्टी-फाइन मिनिस्ट वह रोखना था।
इसलिए हम लोग छोड़कर एक विष्ण जा रहे गया।
तो जैसा हम लोगों को देखा, अपनी चाराधी हम लोग है।
प्रदर्श कहीं एक नए जवान है विष्ण।
वह रात बारा गधे और एथेंस यहाँ बोल।
यही तो, आज जैसा कहाते हैं, हम लोग सारा दुनिया में हरी कुछना पीपूर बोलते हैं बड़ी चीपूर।
हम तो देखने से ही सब हरी कुछना बोलते हैं।
हम नहीं भारत आगे जाते हैं।
और कभी-कभी कालेल में सब कार्टून निकलता है।
एक कार्टून निकलना था, तो एक बुढ़िया, उनका हस्पनी को जीत से बोल रही है।
चांद, चांद, चांद, चांद।
और अपना बढ़िया इस अंग्लिस आई जाता है।
वो बुढ़ा जो कहते, वो कहते काँठ, काँठ, काँठ।
बढ़िया को कहती है, चांद, चांद, चांद।
और वो कहती है कांठ, कांठ।
तो यह जगर चीज़ी गई है और जासल पालती होने अगर।
तो आप लोगों को धन्यवाद जो यह प्रदेशी भक्त लोग इधर बहुत खर्च कर जाए हैं कि एक एक टिकट लगता है कम स्कम दशा जार रुकिया
कि यह चार तुसं साल जाए हैं हजारों करोर गॉवरन्मेंट की धुंदा नहीं है और इसमें गॉवर्मेंट का कोई विकसी आणि है जब आते हैं तभी इधर
भग जो कि खेला रिहाता है चारी शेयर चार है बहुत बहुत है बहुते भक्ति आप � ludzi होता है
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कि ग्रियम सत्तुन भर्वी ब्राह्तम विश्वत्तम मकुतोब है, ग्रियम है हमारा भर में, अगर कोई दुश्मर भी आता है, उसको भी खाती करता चाहिए ऐसी तरह से, कि वो भुल जाये जि इसका दुश्मर है, ये हमारी विति मतलब है, और विद्धामन में आये, और �
इनके अकेलमा भी नियुक्त क उत्मान जो क्षम को दोधन करें।
इस तरह इतना याम व्यक्षिय निकृता है कि आप लोगों इसज़ वरिच्ठित्य करो उत्पाँच की रहे, ये बृश्णव जातीबृत्थि, नागकीबृत्थि भूने से हो जाता है।
यह राज्य की बुद्धियाँ हो छोड़ता है कि कई आपको से मिलता है। होते हैं। वृष्ण विज्ञादु। अच्छे शिवादु भुरुष्णु नहमति। वृष्ण विज्ञादु।
यह जो भगवान की मुद्धि रश्वन करने के आते हैं हजारों महाले से। सब लोग जानते हैं कि पत्थर जॉबना हुआ है। तो पत्थर जैसे बाता है। इतना खच करके इद्र आख या कोई पोछे अली खोर मुद्धर से विश्ण का मुद्धि बनाया विया है।
अरे देखो भी पत्थर देखने क्यों है? इतना खर्च करते हैं? यह ऐसी देखो भी नहीं होनी चाहिए, कि वृष्ण वे जाति नहीं होती है।
क्योंकि वह आपको खुद करते हैं, जयी भज़े सही गोरो और भक्तर ही इंच्छा कृष्ण भज़न देना दी, जाति गुला दी।
कृष्ण भज़न में कोई जाति गुल का विचार नहीं आती है।
और स्वयं भुर्वार करते हैं, वाली भी पात्र गुण प्रमाण शृक्तिया जीविशु पाप जुण। पाप जुण ही करते हैं।
तो जो पराजिती जाने वाला है, यह मिलक्षा है जमाने के लिए।
तो आपको इतना ही निवितन है कि बातावना जिस तरह से सुद्ध हो गया है। बच्चों में जाति गुल थी, नारति गुल थी। आदमी सब छोड़ दें। और यह सब आयें आपको पार सेखने के लिए। इसको सिखाईए। इसको बढ़ाईए। इतना ही आपको से नि�
 
 
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥ हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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