श्रील प्रभुपाद के हिंदी में प्रवचन  »  751115LE-BOMBAY--Hindi.MP3
 
 
 
हरि कथा
बॉम्बे, 15-नवंबर-1975
 
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ये भारत भुमी है परोपकार के लिए, दुश्रों को लूटने के लिए नहीं है, ये चैतन माम का मिशन है, और और जात जितने जात है, भारत बस का बाहर, उसका खाली प्लैन होता है दुश्रों को किस तरह से लूटा जाता है, ये भारत भुमी का वो प्लैन नहीं है, भार
सम्झाना चाहिए, जो अपना जीवन को सफल करना चाहिए, उसको जीवन सफल करने के लिए तो भागवान काम बता रहा है, और भागवान का भक्तु लोग भी बता रहा है, तो उसको सुना जाय, उसमापि काम किया जाय, अपना जीवन सफल हुआ, फिर जाके वो वी बात,
करो परो पका पृतिविते आछे जतो नगरादी ग्राम सर्वत्त प्रचार होईवे महुलमा
तो कहने का बात तो बहुत है बाकि आप लोग से निविधन है
ये जो भारतिय कृष्टि है ये सब लोग ले रहे हैं
ऐसी बात नहीं है जो हम लोग हवा में भकते हैं
Actually they are accepting इसलिए ये जो कृष्टा Consciousness
कृष्टा Consciousness का अर्थ ही है जो भगवान कृष्टा जो बताता है
वो message जो है उसको लीजिए उसको आशितरते समझिए
आज दुनिया में प्रचार कीजिए देखिए ये भारत का जो glory कितना बढ़ती है
ये आपने विश्वनि विदाना है Thank you very much
जाये स्विंदो पार
दुबारा जदी आपकी इच्छा है आये गए
क्योंकि जदी मुक्ति का अर्थ होता है अभी बताया ने
मुक्ति हिट्टा अन्नथा रूपं सरूपे न अपने
वस्थिति इसका नाम है मुक्ति
सरूप आपका सरूप क्या है
आपका सरूप है
जिवेर सरूप है निक्तकृष्णा
भगवान का दाश
जदी आप भगवान का दाश नहीं रहने को चाहते है
फिर मुक्ति से लड़के इद रहने पड़ेगा
माया का दाश होने पड़ेगा, दाश सब रहेंगे, दाश गिरी छुटेगा नहीं, बाकि अब जो रिवेल करेंगे, जो हम भगवान का दाश नहीं होंगे, तो माया का दाश होईगी, ये बात है।
देख दो फाँ, भगवान में मिल जाने के बाद में गिर वापस नहीं आएंगे।
ये शास्तर करेंगे, है, जिन्नेर बिन्दाख विमुक्त मानिन, वो भगवान ब्रह्मज्योति से मिलने से वो समस्ता हावा मुक्त हो गिया, विमुक्त मानिन, तैयस्त भावात अभुशुद्ध बुद्ध है, क्योंकि भगवान का रूप का उसका अनुभव नहीं है, इ
ये स्थान शादना करके वो जो ब्रह्मज्योति से मिलता है फिर उधर से गिर जाता है, उधर से गिर जाता है, और भगवान का पास जाने से भगवान का साथ रहना, खाना, पीना, चलना, फिनना, उसको फ़िर
उसको फिर आने को नहीं पड़ता। जदगत्याना निवत्तनते तद्धाम परमम्म। और ये धान से उसको आने पड़ता है फिर।
क्योंकि निर्विशेष ब्रह्म जोति में आनंद तो मिलता नहीं। जैसा आकास में। आकास में वो एरोप्लेन में ले करके जाएगे।
बहुत उंचे ब्रह्म जोति में जाने से केवल उसको सत्षिदा, सत्क उसको उपलब्धी हुआ और आनंद नहीं हुआ। वो आनंद के लिए फिर यही भौतिक आनंद में आने पड़ेगा।
इसलिए बड़े-बड़े सेन्नाशी लोग, जो कि ब्रह्म सत्य जगन मिठ्या, जगत को छोड़ देता है, कुछ दिन बाद फिर यह जगत का काम में हस्पिताल खोलने के लिए और, और और कुछ काम को नहीं, पॉलिटिक्स में जाइन करने के लिए आते हैं। क्योंकि उ�
उदर ब्रह्म का अख़ो जानने नहीं मिला। इसलिए आपको भगवाद धाम में जाना चाहिए। जगत आना निवर्त्यन से तो धाम परमुख। उदर जाना चाहिए। तब मुक्ति पूर्ण उदर जाना चाहिए।
बहिंकुट में जाने के बाद किर नहीं आता है। बहिंकुट में जाये, बुर्णावन में जाये, तो फिर उसको आने नहीं पड़े।
तपस्या का अर्थ होता है ब्रह्म चर्ज। तपसा भृं मचर्ट जेनन। यह जो तपस्या है... ब्रह्म चर्ज से ही शुरू होती है।
ब्रह्मचारी से ही शुरू होती है। अगर ब्रह्मचद्य ना करें, वो स्टेरी नहीं रह सकेगा। कोई भी तपस्या कीजिए, ज्ञान, जोग, ध्यान, उसमें ब्रह्मचद्य चाहिए। ये नहीं है जो अंडेस्ट्रिक्टर सेंस ग्रेटिफिकेशन में करेंगे और बड
इस शास्त्र में लिखा है, तपस्या का अर्थ होता है ब्रह्मचारी से शुरू होती है तपस्या। जग्गत दान और तपक्रिया नता ज्यम। भगवान कहते हैं जग्गत दान और तपस्या इसको छोड़ना नहीं है।
हम सन्नाश लिया है और यह नहीं है जो यह भी छोड़ दें घरदोर तो छोड़ देया ठीक है मैंकि तपस्या भी छोड़ दे और दान भी छोड़ दे तपत जग्गत दान जग्ग भी छोड़ दे यह नहीं यह छोड़ने का नहीं है जग्गत दान तपक्रिया पावनानि म
जल्दी बढ़ती है, इसलिए ब्रह्मित्यों का जोड़ा होती है।
आपको घर में यह सभी मकान है, ताकि यह पखाना में नहीं जाना चाहिए।
मकान पखाना भी है, तो उदर नहीं जाना चाहिए।
जहाँ देवता के मूर्ति हैं, उदर जाना चाहिए।
आपको समझ में आया है, सभी हमारा मकान है, तो पखाना में हम रहेंगे।
यह कोई विचार आई गया है।
जाना पड़ता है, भग जाना पड़ता है, जल्दी।
और आपका आई ऐसी मत्री आया है, जो पखाना में ही रहेंगे।
तो रहिए, खोम राना करें।
आप लोग आई हैं ना, आपके लिए इतना मड़ा भरी बाती है।
आजी मकान बना हैं, आप रहिए, रहिए, आप आते नहीं करें।
इतना ज़गडा करके जो हरे कृष्णों लैंड हम लोग बना रहे हैं
क्योंकि हमारा राणे के जगा नहीं है क्योंकि आप लोग के लिए बना रहे हैं आप लोग क्यों आते हैं
जजजद आचलती श्रेष्ठा तत्तदेव अईतरे जना सजद प्रमानं कृते लोकस्तद अनुवर्तते
तो आपनों क्योंकि श्रेष्ठ व्यक्ति है बंबई का आपनों को आईए देखिए रहिए
इतना किताब हम लिखे हैं उसको सब पढ़िये समझिये तभी तो काम चले जाए
आप लोग दूर में रहेंगे तो कैसे चले जाए काम
कि मिला रहेंगे उस ओर हॊट या कंस्ट्रैट्रेट आउर दिये.
एनएवम और विशे कंस्टैन लीस त्रॉगल हुआ था थात्मेंट और फॉरसजम प्रांगोत ज्वारेक्ष है अलवा prank
अटाश्मेंट एंड डिटाश्मेंट परंग दृष्टार निवर्तते
अन्लेस यू गेट ए बेटर थिंग यू कैननाट गिव आप यूर अटाश्मेंट फर दी इंफीरिय थिंग
देरफोर यू हैब टू इंक्रीज यूर डिवोशन टू कृष्णा
जब आप बाशु देवे भगवती भक्ति जोग प्रयोजत जनयती आशु बईराज्यम
जनयती आशु बईराज्यम बेरी सोन यू बी डिटाश्ट विद इस मेचिरियल वर्ण
भक्ति परशानु भव विरक्ति अन्यत्रश्या
विविड एग्जाम्पूल इद योर्सल यू आर एमेरिकन योर फादर इज ए ग्रेट इन्डॉस्ट्रियलिस्ट
हाउ यू आप बिने अबू टू गिव अब एवरीथिंग एंड जॉइन कृष्ण कॉंशस्नेस मुव्मेंट
प्रसास लैडते, पर्स प्रकार की लक्ष्ण कैसे इम्पता रहते होंगे,
काम भागकर काम भरत रहे हैं कई जब जान पर खराँच रहे हो, श्रका में जा रही है, सोत कियें के लिएימां डिरिए दिर्श है।
the more you become attached to कृष्ण, the more you become detached. That is the test.
Just like if you are hungry, the more you eat, the hunger is finished.
Similarly, we have got this tendency for enjoying this material world.
The more we become attached to कृष्ण, then we forget this material world.
This is attachment and detachment.
You cannot remain simply detached.
That is then आरज्यकिच्छेन परंपदं ततो
Then you will again fall down.
There must be some positive attachment.
That positive attachment is कृष्ण.
Then you will be able to be detached with this material.
Otherwise it is not possible.
मामे बजप्रपद्धन्ते मायामे ताँ थरं
Two things.
If you want to get out of this māyā,
then you have to surrender to कृष्ण and become more attached to her by devotional service.
आदो सद्या ततो शादो संगत
The processes are there.
ततो भजनक्रिया अतो अनर्थनि वित्तिश्या ततो निष्ठा ततो रुची तताशक्ति ततो भावः
शादो कानाम अयंप्रेम्न प्रादुर्भावे भवेत प्रमो
So the summary is that if you increase your attachment for कृष्ण,
just like अर्जुन, अर्जुन had already attachment for कृष्ण,
but when he listened Bhagavad-gītā from कृष्ण, he understood what is कृष्ण.
Then, in the beginning, he was not listening to the order of कृष्ण that you must fight,
but when he understood that कृष्ण is my Kृष्ण,
friend, कृष्ण is my life and so, then he said, करिश्चे बज़नम्तव,
yes, I shall do that, I shall keep, never mind. This is attachment detachment.
First of all, he had attachment to the family, and when he understood that my real attachment is कृष्ण,
whatever he is saying, I shall do it. This is attachment detachment.
आपको बहुत अर्थस्ा हो की जार के भारता हैं.
भी आपको अध करते हैं।
Our Hindu sages from times immemorial have enjoined more prasārdhas, dharma, अर्थ, काम, मक्षण.
How do you..
To become Kṛṣṇa conscious, you have to transcend even the dharma, अर्थ, काम, मक्षण.
Therefore, in the Srimad-Bhāgavatam,
meaning it is said धर्म प्रोज्जित कईतव अप्त्रः परमनिन्म स्वराणां वास्तव वस्तु बेद्दम अप्त्रः
तो we have to, Siddharth Swami, he is giving his comment in this connection, अत्र मुख्यवांचा अभी निरस्तम्
you have to go beyond मुख्यवांचा, then there will be attachment for Kṛṣṇa
सत्तंग परम धीमई, so this is ordinary things, धर्म अर्थ काम मुख्षण, and कृष्ण भक्ति
is beyond मुख्षण, so you have to go beyond that, how you can go, that is by कृष्ण भक्ति
बान्चव्या विचारिनि भक्ति जोगे न जासेवते, सगुनान समतित्तयेतान ब्रह्म भूयाय कल्पते,
ब्रह्म भूत प्रसन्नात्मा न सोचते इनकांखे, so this is the way, बान्चव्या विचारिनि, if one takes to कृष्ण कौर्थस्मे
seriously, सगुनान समतित्तयेतान ब्रह्म भूयाय कल्पते, he very easily transcends the influence of the three modes of material nature,
and immediately he becomes identified with his Brahma realization, that is wonderful.
आम्कृति का ब्रह्म को बजक कोर केवग छोटे की समयल.
ना लेटस चांट हरे कृष्ण
 
 
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥ हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
 
 
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