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जाते हैं तो दुनिया में ऐसी कोई शक्ति है नहीं कि हमारा घोवत भक्ति करने में बाधा रहा सकता है।
अहितति अपर्ति होता है। जयात्मा संप्रसीद होती है।
उस प्रकार जदी सुद्ध भक्ति किसी का पास होती होती है तो आत्मा सुपर्शन नहीं होता है।
हिचले बघवार कहता है। जय ज्ञानम तेहं सभी ज्ञानम।
मैं तुमको जो ज्ञान का मिशायां बोल दागा।
ये नित्विशेष ब्रंबंग ज्ञान नहीं है।
कि भगव ज्ञान…निपीछे फ्रमव ज्ञान को है, वो तो मुक्ति के लिए है।
और यह जो ज्ञान भगवान बताता है, यह मुक्त के लिए है। जो मुक्त हो है।
इसलिए कहां rupees धे हम सभि ज्ञान है। विज्ञान साहित है।
यह ने सभी ज्ञान कर दूता है कि इंदियां को भी जब देते हैं, क्रियात्म, खाली ज्ञान नहीं, केवल ज्ञान होने से अहं बुर्माश की ज्ञान है,
कि मैं ये कोई भौतिक बस्तु नहीं है, मैं ये शरीर नहीं हूँ, मैं ब्रह्म बस्तु है, ब्रह्म भूत प्रसवनाम है, ये ब्रह्म ज्ञान होने से वो जरूर आत्मान को प्रसन्न हो जाता है,
क्योंकि जितना झंजट है, ये भौतिक ज्ञान है, जब तक हम लोगों भौतिक शरीर ग्रहन करेंगे, तक तक हमको सबसमाएं फूल अब एंजाइटी है,
वो बगवान या पुल्लाद महाराज बताया है, तत्सादु मन्ने असुल वर्चों,
देहि न, सदा समुद्विज्ञ धियं, जब तक भौतिक शरीर आएगा, हमको सबसुमाएं समुद्विज्ञ, फूल अब एंजाइटी रहने पड़ेगा,
तो ग्यान भुविका में आने से यह जो एंजाइटी है, उद्विग्णता, यह नष्ट हो गया, फिर उद्विग्णता नष्ट हो गया,
तो यदि आगे हम नहीं बढ़ेंगे, जैसे एक आदमी बुखार में तकलीब उठा रहा है, उसको बुखार छुड़ गया हो,
बाकि केवल बुखार छुड़ जाना उसका सष्ट सरीर नहीं है, वो जब विष्टारा से उठ करके चलेगा, फिरेगा, अच्छी तरह से खाएंगे और सुखानु भव करेंगे, तब उसको कहा जाएगा सुष्ट हो गया,
केवल बुखार छुड़ जाना यह उद्देशन नहीं है, इसी प्रकार, यदि केवल हम ज्ञान लाभ किया, अहं ब्रह्मास नहीं, मैं ब्रह्म बस्तु है, मैं भूतिक सरीर नहीं है,
यह सवीस्वेड उवुस्त ग्यान नहीं है, इस लिए भूमार कहते है कि बौनाम जन्म यारमात्र, ग्यानु वान मामु प्रपृत्त है।
ग्यान को लाभ किया है, इस प्रकार वक्ति अनेक जन्म जन्मात्र का पेर बौनाम जन् माम अ ग्यान माम प्रपृत्त
ति भगवान का चरण में सरनानत होगा, ये असल ज्यान है, केवल ज्यान से प्रशंदता पोज़ती है, परन्तु जब तक भगवान का चरण में प्रपत्ति नहीं होगा, तब तक ज्यान की समाप्ति नहीं होगा, ये शास्त्र विद्धा है, इसलिए भगवान दिता में कहते
भगती भगती बढ़ाओ, जो ज्यान राब करके प्रशंदात्मा हुआ, जो मैं भगती पोज़ती नहीं आया, अहं बुर्माश में एक सुवाँ, ये बात ठीक है, परन्तु आगे जदी आप नहीं रवा रहे हैं, तो फिर पदम होगा, वो ज्यान भुमिका से पदम हो जा
आरुबीन दाख्तों, जो अपने को केने और मुक्त मान लेते हैं, मानी ना, यह असल में वो अभी मुक्त नहीं हुआ है, प wtedy है, वैकि वो लोग अपने को मान लेते हैं कि मैं अब मुक्त हो जाओ.
तो बुद्ध तो मानी ना, तो उसको बुद्धि अभी सुधा दाई हुआ। क्यों? तई अस्तवाबात। क्यों कोई आपको संधान अभी तक नहीं दिया।
इसलिए भगवान कहते हैं ज्ञानं तेहं सभिज्ञान। सभिज्ञानं, तो प्रैक्टिकल application, किर्याफम। सभिज्ञानं किदं भक्षानि असे सधार।
Now I shall speak तुमको बताओ। और जो असल जो ज्ञान है, विज्ञान सही, उसको मैं आपको बताओगा।
जज ज्ञात्या, जदी ये ज्ञान कमारा लाव हो जाती है, बगवत ज्ञान, ये वेद में भी ऐसे कहते हैं,
जश्मित विज्ञाते सर्वमिद्धं विज्ञातं भूरंती, ये जदी आप भगवान को समझ जाएं, तो फिर आप सब ज्ञान आपको लाव होगे।
अब देखिए हम लोग प्रचार कर रहे हैं, बड़े-बड़े सब साइंटिस्ट, विज्ञानी, साइक्योलॉजिस्ट, ये सब आते हैं पर्देश में, मिलने के लिए, बाके, उनको तो ज्ञान है, वो हम लोग प्रमान कर देते हैं, जो आपको ज्ञान खुद्र है, अभ
सब संभव है, होता भी है, अभी हमारा एक सिष्ण है, डॉक्टर शरुप दामधर, ये एक ग्रेज साइंटिस्ट, एन केमिस्ट्री, ये वो एक किताब लिखे है, साइंटिपिक बेसिस आप पृष्ण कहां पुष्ण है, यहां कार्य का मतलब है, वो तो भिगवनाई सा�
को आओं, समर्थ समझता है, कई किताब वो लिख रहे है, तो वो है विज्ञा, भगबात ज्ञान जो है विज्ञा, ज्ञानम् तेहं सभी ज्ञानम्, ज्ञानम् तेहं सभी ज्ञानम्, इदं बक्षांने असेशता,
सम्पूर्ण वताराँ जजग्यात्ता जदी इस ज्ञान को तुम्हारा समझ में आएगा ना यह भूय अन्यज ज्ञान तो बहुत प्रशिष्यते और तुमको गुश्रक ज्ञान लाब करने का कोई आपस्थकता है नहीं
तो यह जो सभिज्ञानम है विज्ञान शहिद्यों ज्ञान है यह भकति मार्ग है
आगे आएके भगवान मुझे बताया है और यह है भकति मार्ग के इधि बाते हैं
कि विज्ञान और किस तरह से भगवान में आश्चक्ति बढ़ानी चाहिए
यह चैप्टर का अध्धाय का शुरुष है, यह जो अत्तां भक्ति जोग
कोई विज्ञान सहिताई, भक्तियोग
कोई sentiment नहीं है, भक्तियोग विज्ञान सहिताई
भक्तियोग यह तो
विद, संबगता है
इसलिए विज्ञान संबगता है
जेसे भू बुर्श्या भी बताये
की
शुति शुति पुराणादि, पांच रात्र की विधिंग विलाम, वैकान्ति की हरेर भक्ति, उपवादायर भक्ति।
शुति वेदादि शास्त्र सम्मत्र, और शुति पुराणादि, और पांच रात्र की विधिंग, यह सब छोड़ दिया, और भगत भक्ति है।
और उस भगत भक्ति, भुगबगशीत्वामि कहते है, उपवाद, उपवाद, उपवाद, आप लोग समझते हैं।
वाज्चि भी वो शुत्य भक्ति नहीं है, एक समाद में उपवाद, उपवाद, उपवाद कहते हैं।
करते हैं, तो विज्ञानम वेदा की संभव, ब्रह्मसुत्र पदाईश्चयिव, हेतुम अध्भी विनिष्ठितम, जैसे भगवान, स्याँ भगवान, बक्तिजोप कहते हैं, तब भी वो ब्रह्मसुत्र का उदारण देते हैं, ब्रह्मसुत्र पदाईश्चयिव, हेतुम अ
वो भक्ति मात्र होनी चाहिए, इसलिए हम लोगों को रस्ता देखाने के लिए स्री रुपपुर्श्यामी भक्ति रशामनित शुरु ये पुस्तक बनाया है, जिसको हम लोग ट्रेंसलेशन किया है इंग्लिश में, नेक्टर अप डिवोर्शन, ये नेक्टर डिवोर्शन
बिज्ज्ञान आप रहोँ समझते ये शब्दों, तो भक्ति जोग्य है, ये सेंटिमेट नहीं है, ये बिज्ज्ञान सम्मत है, सादु सम्मत है, आचाज सम्मत है, आचाजो पासना, उदाव आचाजो पासना की होगे भक्ति जोग्व समझना मुश्किल है, इसलिए नर्
जार तार मुई दाश ताशवार पदोरेनु मोरो बच्चर राज। कि जब हम लोग ये रुपालोग, सिरु स्राधन भट्र रुणा, सिजीत रुपाल भट्र दाश रुणा, इस शायिक पदानु सर्व करें, तादेरो चरणो सेवी हक्त सने बाश,
to follow वो पदानु सर्व, जो बिन्दावन के जो अभिष्कार किये थे, शायिक विश्वानु, उनको सेवा करनी चाहिए, और भट्र सने बाश, और भक्तकार सामने रहना चाहिए, तभी विज्ञानों मालों,
यह साथ सम, विज्ञेस का एक सुसाइटी होता है,
इसी प्रकार भक्तियोग सायधन करने के लिए अवश्या सायधु सांग करना चाहिए, आदर्शद्या ततुं सायधु सांग होता है,
तो सायधु कौन है, बजते मावनन्नभा, जो भगवत बजत छोड़ करता है, और कुछ नहीं जाता है, वो सायधु है, तो उसका नाम सभिज्ञान होता है।
फिर भगवान कहते है, मनुष्यानां सहस्येशु कश्चि जतती सिद्धः जततां भिशिध्यानां कश्चि बेतिमां तथ्वपत्तु।
भगवान को ताक्तिक समझना चाहिए। भगवान का अर्थोताय भगवान सिकृष्य।
मूर्ण। कृष्टस्तु भगवान सयम। और भगवान समय सभी है, परन्तु जो मुख भगवान है, गोविंद्र आदि पुरुषम।
गोविंद्र आदि पुरुषम। और भगवान के जिन्दा अवतायत है। रामादि मुत्ति सुकलानियो नेनतृ श्थम।
राम ने शिंग्गम बढ़ाव आदि भगवान के अनेक अवतायत है। यह सभी भगवान है। कोई ऐसी बात नहीं है।
जो कृष्णा आदि पुरुष है, इसलिए कृष्णा सबसे बड़ा है। भगवान सभी है। भगवान के चोटा बढ़ा नहीं है।
जैसे तुल्ची, पत्र है, उसमें छोटा-बढ़ा देखने का है, परन्तु, वो काम सभी का यह है।
छोटा तुल्ची भी हम भगवान का चर्ण में दे सकते हैं, और बड़ा तुलची भी दे सकते हैं, उसमें काम है।
इसी प्रकार भगवान का अवतार अनेख है, अद्दैत अच्छते अनादि अनंत भूँ, तो सब भगवान की शक्तियां सब है, नाम भी भगवान का अवतार है, यह जो हरे कृष्ण नाम, यह भगवान का सब्द अवतार है,
यह चयतन महाँ भी बताये, यह जो भगवान का नाम है, इसमें भगवान की शक्तियां सब है, यह चयतन महाँ भोता.
यह नहीं है, जो हरे कृष्ण नाम हम लोग जबते हैं, यह जो कृष्णा, इसायन कृष्ण, नाम रूप कृष्ण, इसलिए चोहितन वाम कहते हैं, नाम नाम कारि बोहदा निर्शन्प शक्ति, तत्रार की तारी, नियमितस्मारनेन कार।
यह जो भगवान के अच्छा मूर्ति है, इनको पूजन करने के लिए एक टाइम होता है, और-और सब नियम होता है, परन्तो भगवान नाम के इत्तर के लिए कोई नियम नहीं है, नियमितस्मारनेन कार।
सभी कर सकते हैं, जब खुशी, जहाँ, एक भगवान की कलिजुद में एक पार है। कित्तना रेव कृष्णस्या मुक्तसंभ परंप्रदेव।
ये सुद्धे कृष्णाई बताया कि कलिजुद में सभी दोष, दोष की समुद्र है। कलोग दोष निधेराजन अस्ति जी को महा नहीं है। ये दोष का समुद्र होते भी भी एक महा गूर है। वो क्या चीज़ है।
कृष्णस्या मुक्तसंभ परंप्रदेव। ये जो हरी कृष्णा नाम है, इसको कीर्टन करने से वो कलिजुद का जबकि वो भाव है, उससे मुक्त हो जाते हैं, और भी बईकुंट धाम नहीं छले जाते हैं।
मुक्तसंभ परंप्रदेव। ये एकली जुग है। इसलिए एकली जुग में यही नाम प्रधाम, अरे कृष्ण, अरे कृष्ण, कृष्ण, कृष्ण, अरे, हरे राम, हरे राम हारे जौज़न्दे।
आशार्मे तरीके,
तो भग्वार कहता है यह जो ज्ञान अलावात, ही सब कालीए नहीं करती,
मनुष्यालाम सभस्यशू, वह झ्ञान, हेर ज्ञान क्या है जीत? भगबोत्ध् ज्ञान,
ज्ञान का अर्थित्ता है जैसा का बेद, बेद अर्थ आत्ता है ज्ञान।
जित्य ज्ञान की मार्क है वेदा आदि शास्त्र उसको पढ़कर के यदि बगवत ज्ञान लाम नहीं हुआ तो स्त्रम एवं एक एवं
यह शास्त्र का शिद्धात्र है शास्त्र में कहते है कि
धर्म शान स्थितत्पुंष मिश्चक्षेन कथार सुचा नुद पादाय जरते है यदि श्रम ही हो जाती है
वो वेदा आदि ज्ञान आपने अभ्यास कहा है सब शास्त्र पढ़ी है
परन्तो यदि भगवत ज्ञान लाभ नहीं होता है तो फिर वो किबन स्वम है परिश्वम है
यह शास्त्र का शिद्धात्र है धर्म का और भगवत का धर्म चत्री का धर्म और वैश्य का धर्म अलग-अलग साथ है
सब उद्देश एक है भगवत, वक्ति लाभृ, सानुस्ति तस्यग्षं धर्मस्यता, संक्षिद्धि हरीतोषू
ये संक्षिद्धि है, क्या संक्षिद्धि है? सब अपना-अपना धर्म जानन करो
वरन्तु धर्म का उद्देश होता है भरितोषन, बहुद किस तरह से संचूशन है, संशिद्धि भरितोषन, तो यह संख्षार्थ्य में सिंधा है तो यह भरितोषन किस तरह से करना है उसका विषय भगवार स्वयंगी बताते हैं
मनुष्या नाम समस्येशु वस्ति जधति शिद्ध है। वो शिद्धि क्या चाहिए। वो जोगशिद्धि नहीं। भगवत भक्त जोगशिद्धि के लिए प्रयास नहीं करते हैं।
क्योंकि भगवान संग् जोगिष्ण है। संग् मिस्टिक पावर का मानिक है।
तो जो भगवान का सनन में रहता है, उनको साथ जोगशिद्धि वो साभाविक्ताओं से प्राप्त हो जाता है।
उसका अलाया कोई वरिश्वम करने के दूरों नहीं है। तो भगवान, भगवान के द्वारा नक्षित है, और भगवान संग् जोगिष्ण है।
तो जोगशिद्धि का जो काम होता है, वो भगवान से सब हो जाता है।
तेशां नित्यां भी जुप्राणां जोगच्छेमं भावामियों के सास्त्रे। तो जोगशिद्धि से भगवान करा जाता है।
तो यह प्रैक्टिकल है, प्रैक्टिकल हम लोग देख चुका है, कि यह जो हरिकेतन, केतन मुव्मेंट दुनिया में चल रहा है।
यह आष्ट्र जजर्वक है क्योंकि एक-एक बरस में सारा दुनिया में दस-दस भारी-भारी मुद्देश्य प्रतिष्ठित हुआ है।
यह एक समय है जोगशिद्धि, जोगशिद्धि, हम लोग कुछ नहीं जानते जोगशिद्धि, बाकि भगवान जोगेश्वर है, उनकी कृपा से यह सब संभव होता है।
तो इसलिए, भगवान भंग तो जाये, वो जोगशिद्धि नहीं चाहते हैं, परन्तो क्योंकि जोगशिद्धि का सर्रानत है, इसलिए जोगशिद्धि साभावित्ताओं से सब संभव होता है।
वह व्हव निता में ही कहता है। जत्र जोगेस्हरव भृौ।
जहां जोगेस्हर हृृ हैं और भगवा हैं. जोगेस्हर हृृ कृष्ण हैं.
और जहां अर्जुर्ञ्यैस भक्त हैं उदर साम सिद्धियां सोँझायी हैं।
उसमें अलग और कोई चेषणा करने का ज़रूरत नहीं है।
तो मनेशाराव शाहस्येशु कश्चि जदति शिद्धये जदताव भी शिद्ध्याराव कश्चि बेद्धिमाव पर्पपूर्ण।
कि जोग शिद्धि या और जो जोग शिद्धियां है, वो सब शिद्धियां लाब करने से भी भगवत तत्तः घ्यान है।
भगवत तत्तः घ्यान, वो भगवत भकत्र ही होता है और भगवान जिसको कुपा करने पता था है उसको होता है।
तो
एज आमरो कृष्णコंसंसासिस
पोवमेंट सारा दुनिया को
प्रचार करना होगी
यह
पर्भल का पूछो
इसलिए नाम दिया है
कृष्ण कौंसंस
कृष्ण भावनाम
और कृष्ण भावनाम
रितल
समभाव है
जदि आग कृष्ण का
यह जो
कि आप लोग भाईए, दर्शन कीजिए, और भगवान की कथा सुनिये, फिर आज दास्ते, आदुल सुध्यातातु सादु संगा, ये सब प्रक्रिया से भगवान में आशक्ति हो जाएगी, और वोई जीवन की सप्रवधा आएगी, थैंक यू एक बड़ी, अरेग्जाई, �
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥ हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥