श्रील प्रभुपाद के हिंदी में प्रवचन  »  731117LE-DELHI_Hindi
 
 
 
हरि कथा
दिल्ली, 17-नवंबर-1973
 
यदि आप इसे ट्रांसक्राइब करने की सेवा कर सकते हैं, तो कृपया हमे संपर्क करें या ट्रांसक्रिप्शन्स को यहाँ भेजें - info@vedamrit.in
If you can kindly volunteer to transcribe it, pls contact us or send transcriptions at info@vedamrit.in
 
 
जीव का उद्देश है जीवन का जीवस्य तत्य जीव ज्ञान तत्य बस्तु को ज्ञान लाते हैं
सिमर्भागत में तत्य बस्तु किस्व कहा जाता है उस विषयमें बता रहे हैं
जो तत्य विद तत्य विद नहीं होने से तत्य को क्या बताएगा
इसलिए कहते हैं बदंती तत्य अत्यविदाश है
जो लोग तत्य विद है
तत्ता दरिशि न भगवार या भगवत दिताओं बता रहा है
प्रति विध्धी प्रनिपातेना परिप्रश्नेना सेवया
उपधेक्षंति तत्ग्यानना ज्ञानिना तत्ता दरिशिना
बास्तविक बिना तत्वदर्शि हुए कुछ ताक्तिक बात बोलना उचीत नहीं है
इसलिए गुरुदाश कहते हैं कि अनलेस जब तक आपको पूर्ण ग्यार नहीं है
उस विशा में बोलना देखिए
क्योंकि जीव जो है बद्ध जीव उनका चार दोश होता है
फिर एक दोश होता है कि वो विल कमिट मिस्टैक वो भ्रम ज़रूर करें भ्रम
और प्रमाण एक चीज़ को और एक चीज़ समझना है
वह जैसा साइंटिस्ट लो विज्ञानिक लो
जड़ वस्तु को जीवन समझता है
जैसा शरीर या शरीर है जड़ वस्तु
और
आजकार यह जरवस्तु को ही समझता है आत्मा, इसका नाम है प्रमाँ, एक बस्तु को दुश्रा चीज समझता है, भ्रम प्रमाँ, और विप्रलिप्षा, विप्रलिप्षा का अर्थ होता है कि दुश्रे को ठगान, मैं जानता नहीं कुछ,
भगी हम टीचर बन गया, क्योंकि हमारा पूर्णक ज्ञान है नहीं, तो जब हमारा पूर्णक ज्ञान है नहीं, तो दुश्रे को हम क्यों बताया, जो चीज हम नहीं जानते,
जो उसका नाम है विप्रो रिप्षा, यह नहीं दुष्टे को ठगाना, और करणा पटो, करण का अर्थ होता है इंद्रियो, वो अपोर्टू है, करण, जो है हमारा इंद्रियो, सब जैसा आँख है, आँख, हम दूर का बस तू देख नहीं सकता हूँ, तू माइक्रोस्को�
जब हमारा इंद्रियो अपोर्टू है, तो जंत्र भी जो बनाया, वो भी अपोर्टू है, वो पर्फेक्ट कैसा हो जाए?
इसलिए जो बद्धजीव है, बद्धजीव माने जो कोई इदा भोतिक जवत में आये हैं, उसका रामा है बद्धजीव, सिमित है, उसको ज्ञान, बुद्धी, सब कुछ सिमित है, तो इस प्रकार वेक्ति से ज्ञान लाव करने से हमारा कुछ लाव नहीं है, इसलिए तत
बदन्ति तत तत विदस्थ, जो तात्तिक ज्ञान को लाव है, अच्छ, तात्तिक ज्ञान लाव बड़े-बड़े साइंटिस्ट है, बज़ज्ञानिक है, दार्शनिक है, उनको तात्तिक ज्ञान क्यों नहीं है,
यह कि वो जो अपना जो खुद्र बुद्धी है
अपोटु इंद्रिय है
उसके द्वारा ज्ञान लाब करने के लिए प्रयास कर रहे है
इसके लिए उसका पास ताक्ति ज्ञान लाब है
इसलिए भगवान भगवत गितारे बताय है
कि एमं परंपरा प्राप्तम एमं राजर से हो विदू
परंपरा से बरबर राजर से लो
यह भगवत गितार तप्तर मालों क्या ता
सकालेन जोग नःष्ट परंथपत
वो परंपरा नःष्ट होने का कारण
वो जोग नःष्ट होगी
इसलिए तुमको मैं बता रहा हूँ, फिर परंपरा सिर्जन कर रहा हूँ, भक्तोशी, पिदेवोशी, क्योंकि तुम हमारा उपस्था है, फिर परंपरा से ज्ञान लाब करना चाहिए, हमारा जो वैदिक विधी है, आरोहपंथा और अबरोहपंथा,
आरोहपंथा का अर्थोता है, एक वेक्ति जिसको इंद्रयॉपटू है, वो रिसार्ज कर रहा है, होज रहा है वास्तवी तत्त वस्तु क्या ची जिन में, ये इसका नाम है आरोहपंथा,
और एक अबरह पंथा
जो उपर से
वो तत्तवस्तु का ज्यान मिलता है
तो इसका राज अबरह पंथा
तो बास्तिमिक जो लोग वयदिक है
वो आरोह पंथा को ग्रहन नहीं करते है
वो अबरह पंथा को ग्रहन करते है
एमं परंपरा प्राप्तम
इमंग राजर से हो तु ऊपर से ज्ञान देने वाला बगवान से और बड़ा कौन होगा बगवान खुद कहते हैं जदा जदा ही धर्म सक्लाइने भवती भारत तदात्मानं सिजार्महं जब धर्म की ज्ञानी होती है
धर्म का अर्थ नहीं कोई जो जैसा आजकल चरता है सेंटीमेंट नहीं धर्म का अर्थ होता है कर्तब्ब दिवुची उस कनामें धर्म
जब आदमी सब भुल जाते है, भाष्त बिक्स का जीवन का क्या कर्तंब है, तो भगवान आते है, भगवान खुद कहते है, तदात्मारं सिजाव महंडी।
और परित्रा शादुणाम विनाशाइच जुदुष्चिता दो काम है भगवान की
जो बास्तिमी जो शादु है जो तत्वभ्रस्थ को समझने की लिए प्रयास कर रहा है
शादु का अर्थूता है भगवर्ध्वक्त
ज्ञान से भिवुपर भगवर्ध्वक्त
जैसे भगवान बताते हैं साधुरेव समंदंव कौन उपीते शुद्राचार भजतेमाव अनन्यभार अनन्यभार से जो भगवान का चरण में सरनागत है वो साधुरेव समंदंव
तो पृत्रानाव साधुरेव और विनाशाय चो धुष्टि है दो चीज भगवान का काम होता है जब भगवान आते हैं
परितरानव शादिन की प्रमुझ जोन आई था म गिराशा है तो � Phase कि इस भॉजनमाई थे भौनारी चंदर भगवां कुछ न
अब शाद्रि को परितरान किया और दुष्कित्रों जगाव नहींसे है उसको और नाश
तो दुष्कितिनों को नाश करने के लिए भगवान नहीं आते है
वो तो उनकी इंगित से ही काम हो जाता है
बास्तवी कहाते है शाद्विलोग जो है भगवान को दर्शन के लिए
बड़ा आकांखी था इसलिए उनको दर्शन देने के लिए आता है
और नेतो भगवान की हिंगित से ये सारी स्विष्ट्री एक सेकंड में खतम हो जाता है।
तो उसके लिए जैसा भगवान निशुग्णदे अवतार है, तो प्रिल्हात का दर्शन पर देने के लिए।
हिदर्ण कशिण उनको मारने के लिए उनके आनका कई जरूरत नहीं है। ये सब विचार है। पृत्रानाम, साधुनाम, विनाशाय, सृदूष्टिताम।
तो तत्तवस्तु जो है आखिरी में वो भगवान है। इसलिए ये स्लोक में बताना है।
बदनति तत्त विदस्तत्यं जत्ज्ञानम अद्वयं। तत्तवस्तु एक ही है। तत्तवस्तु दो नहीं हो सकता है। एक ब्रह्म दित्यों खान।
परंतु हमारा देखने के जो देखने की जो सक्ति है उसको अलग-अलग होने का कारण तत्तवस्तु अलग-अलग दिखता है।
तो तत्तवस्तु को जो देखने वाला है, कई एक है जो ब्रह्मवाद, ब्रह्मेती, और कई एक है जो की परमात्मावाद, और कई एक है जो भक्त, भक्तिवाद।
तो इसका क्या कारण है एक ही छीज, अलग-अलग, क्यों दिखाए जाती है।
इसका कारण नहीं है।
जो अपनी बुद्धि से भगवान को समझने को चाहते है, वो ब्रह्म ज्योति ताक पहुंच सकता है, उससे जाना है, और जो भगवान का अपना रिदय में दर्शन करने को चाहते हैं, जैसे जोगी लोग, तदगते नमनसाप शंति जंग जोगी लोग, तो उसको परमात्मा
एकाम शेन स्थितो जगत, भगवान का बताते हैं, इशर और सर्वभूताना अब रिद्देशि और जुनतिष्ठ देव, जैसे सूर्ज़ देव है, उदारण से, बारा बज, दीम में, पांच सु मायल ताक, सब आदमी को पूछिए, जो सूर्ज़ देव कहां है, सब कोई
अलग हो गया, ने, ये सूर्ज़ का एक महिमा है, सत्य है, जो सब कोई समझता है, इसी प्रकार भगवान तो एक ही है, परन्तो जदी कोई अपने विदाय में भगवान को दर्शम करने को चाते हैं, भगवत प्रेम से, तो परमात्मा रूप से उसका दर्शम होता है, उसका
समय अपना विदाय में भगवान को दर्शम कर, और जो लोग ब्रह्ममाधि हैं, याने आगे ताक, आखरी तक पहुंचाने, दूर से भगवान को दर्शम करता है, वो ब्रह्ममाधि, विदाकारवादी, ब्रह्मेति, और जो साक्षात भगवान को दर्शम करने वाला है, भ
अनगप्रतिष्ठा जो निविशेस ब्रह्म निराकार ब्रह्म है उसको आधार मैं हूँ जैसा सूर्ज का प्रकाश सूर्ज का रष्टों
रष्में उसका आधार कौन है सूर्ज देव, क्लेनेट सूर्ज लोग और सूर्ज लोग का विंतर वो सूर्ज देवता है
जिसका नाम भगवत गिता भी बताये, विबर्ष्यां नाम भी बताये, ये सब है, बाकि जोग्यता अनुसार कोई सूर्यो का प्रकाशी देखता है, जोग्यता अनुसार कोई सूर्यो का जो लोक है, उसको देखता है, और जिसको और आगे बढ़ने की सक्ति है, वो शंग, स�
मालूम होता है जो कोई बादर है, cloud, और थोड़ा आगे बढ़ते देखिए, तो मालूम होता है कोई हरा-हरा चीज है, और उदर कोई परवर्त में पहुँच जाए, तो देखिएगा उदर बहुत से चीज है, जी भी है, पेड़ भी है, आदमी भी है, पशुद भी है,
तिसी प्रकार वदन्ति तत्व तविदस तत्व, तत्व वस्थु एक ही है, दर्शन का भेर से कोई देखता है ब्रह्म, कोई देखता है परमात्मा, कोई देखता है सैनव, भगमान, यह विचार है,
तो उद्देश्व ऐही है जैसे पहले स्लोक में बताया जीवस्व तत्व जीज्ञान जो आखिरी तत्व वस्तु जो है भगवान उनको दर्शन करना चाहिए
ज्याण जो है भगवान दीता में जैसे बताते हैं बहुनाम जन्मनाम अंते ज्याणवान मांग प्रपद्धित बास्तुविक जो ज्याणवान है वो आगे जा करके वो भगवान का चरण में ही प्रपद्धि करते हैं
ये ब्रह्म जोती है ब्रह्म शांगिता में ये बताया है कि जस्चप् प्रभा प्रभवतो जगदर्ण कोटी शु असेशा बुशुधादि भिन्नम तत ब्रह्म निष्करम अनंत असेशु भूतम गोविन्दवादि पुरुषम तमहं बुर्यादम
आ तो ये इस ब्रह्म है ये भगवान की अंभ जोती है जैसा और युदाराँ इसलिए सूर्ज लोग है तो सूर्ज लोग का जो जोती है ये प्रकाश है और यूझ सूर्ज लोग में जो निवास करते हैं
विवर्ष्यान सुर्ज नारायन तो समझ लीजिए भगवान लेकिन भगवान नहीं है यह भगवान का एक समझ लीजिए स्रिष्टि है
भगवान तो और एक दूर में है पन्थास्त कोटि सतवत्त संप्रगम्म बायोर थापि वरसो मुनि पंगवान
का भगवान का दर्शन भगवान की जो लोख है वित्रा पर है यदि लात्र हुए तो इस स्थान शास्त्र में है भगवान दो
बैक्तियां भगवान वेक्ति चोहा है भगवानसंत आ करके हम लोगों दर्शन अधिक देते हैं कि यह मत्तः परतरांख नहीं
किंची जस्ती धनन्जया जो हमसे परतत्ता और कुछ है नहीं अंग सरवस्य प्रभव मत्त सरवं प्रवत्तते इति मत्या भजनते मांग बूधा भाव समझ केवल समझना है भगवान तो खुद आते हैं भगवान को जो भगवान को भक्त है वो दिखाते भी हैं बाकी हम लो�
टीजो असल थोडों की है उसे वास्त जो नहीं होते हैं वह जो झूटा डॉन की है उससे वो ताली बजाते हैं
अजय को असल भगवान है उसको कई नहीं चाहते हो एक आया तुझे बोल दिया जहाँ भगवान है अप्रवाद को भी है
वही भी ताके, जो आशल भगवान को कोई नहीं चाते है। वो नकल करके जो धोका देने वाला है, वो उसको भगवान माने करे। यह हमारा दूरभाग है।
ऐसी लिए कहते बहुनाम जर्मनाम अनति घ्यानवाण मानते
ये सब भुखा खाते खाते खाते भाले
अनेक जर्मनाम जर्मनाम पश्चा
जब उसको बुद्धी खुल जा दिया
घ्यानवान असल घ्यानवान
तो ये असल घ्यानवान का पूरिचा किया है
भाषु देव सर्वने इति ये ब्रह्म परमात्मा जो कुछ आये सब बगवान भाषु देव भश्य का भ्रममेती
परमात्मे भगवानिति सब्जति तो बाश्ति वे बेद में यहीं बताते हैं क्यों अ
जस्मिन विज्ञाते सर्वमेदं विज्ञातं ववन्त। यदि आप केबल भगवान को ही समझने के लिए प्रचत न करें तो फिर आओर जो सब चीज है वो समझ में आ जाए। आपसे आप। उसके लिए जादा प्रयास करने को नहीं।
जैसा हम लोग है, हम लोग तो मुर्ख है, साइंटिस्ट भी नहीं है, कुछ नहीं है। बाखि जानते क्या चीज किया है।
और जैसा प्रवश्चार सुरीशा दुन कहते हैं जो वास्तविक लाइफ क्या है उसको डेफिनेशन है।
But we know the definition. यह बात नहीं है, the definition. कहाँ से हमको मालूंगा, भगवान कहते हैं क्या है।
अपरायम इतस्तु विद्धिमे प्रकृतिं पराः जीव भातो जीव भूतो महाबाद जयेदम धार्जते ये जगव जाते हैं।
लाइफ और जो जणबस्तु और जीव क्या फ़रंव है। जीव जणबस्तु को चलाता है।
जणबस्तु जण होता है। ये पहार है, बहुत भारी है, सो क्योंकि जणबस्तु है ।
उसको चाय एक जीव, छोटे से जीव जाते उसको तोण फायदेते।
ये जीव है जो जण वस्त को चलाता है वो जीव जैसे ये हमारा शरीर है ये शरीर को चलानाला कौन है जो मैद जीव है जीव आर्फार अत्तंत छुद्र ये शास्रे बता है इतना छुद्र
पार्ट of the upper portion of the earth केश आग्र सतभाद अस्थत सतधा कल्पित अस्थत सार्थ शास्रे बता है ये केश को अग्रभाग्य है उसको सवभाग विभाजन कीजिए और एक सवभाग का एक भाग लेकर आके फिर सवभाग कीजिए वो जो छुद्र वस्तो है वो जीव आर्फार है व
this is the difference वो हाती बहुत भारी जर्मार है उसको पर सत्ती भी बहुत है बाकि वो जो छुद्र केश आग्र सतभाग अस्थत
वो जब निकल जाता बैस हाती हो गया है काम करता है इसको सबस्ताह जैदम धार्जते जगा
है इसी प्रकार सब जगत चल रहा है वह उसको जीव आत्मा जीव भूति वह भी भगवान के प्रकीत है हां इस
सब चीज भगवत की तरह बताया है कोई हमारा मुश्किन नहीं है यह वास्तविक जर्वस्तु कौन चीज है और जीव कौन
चीज है तो ज्यादा रिसार्च करने के जरूरत नहीं है हम लोग मार लेते बगबान बताया कृष्ण शन्न बस ठीक है
बजाबाला गांव खति है तो यहां पर सच संगरिष्य क्या जरूरत है रिसार्च करने का इसका दारां आप उन oops हां
We are getting knowledge by the descending process. Therefore it is perfect. इसका उदारण सरूप, जैसे आप बैठ रहे हैं कोई कमरा में, ये हमारे लॉजिक में भी है, inductive process and deductive process. एक सब्द वहाँ, खड़ से।
तो जिद्धा आप भी बैठे रहे हैं, एक-एक अपना थियोरी लगा, ये खड़ सब्द किदर साए, और उपर से कोई आदमी बोल दे, जैसे ये खड़ सब्द इस तरह से हुआ, बस काम में दिया।
ये पूर्ण नहीं है, माय-पूर्ण नहीं है। कहो कि भगवान से ज्ञान लाब किया है ना, भगवान जो बोला है, उसका मार लिया, तो हमारा ज्ञान खूद नहीं जाना है।
यह बात नहीं है जो हम ज्ञानी हैं, नहीं, कहो कि वास्तविक जो ज्ञानी हैं, वेदाहं समितितालि, जो कि भूत, भविष्चत सब कुछ जानते हैं।
जैसे है भगवान, भगवान जीतावे में बताता है कि भगवान जब अर्जुन को बता, कि अपने विवस्चान को बता था, तो वह बता था उसको हिसाब करने से,
मनु का, जीमन का, हिस्ति लेने से.
चार, चार, चार हजार क्रोर वर्ष पहले उनको बताया गया था, तो अर्जुन का संदेव, अर्जुन भगवान से पूछा, ये देखिये, कृष्णा, मैं तो और आप से हमारा तो समान, उमर है, आप कहते हैं, पहले हम सुरुजी को बताये, कैसा हम विश्वास करें, तो भ
मैं भूलता नहीं, तुम भूल जाते हैं, इतना ही फ़रक है, बास, जीब से, भगवान से इतना ही फ़रक है, भगवान सब जानते हैं, कुछ
ज्ञान लेने से हमारा क्या राभ होता है, कुछ नहीं। इसलिए तद्विज्ञारार्थं सा गुरुमेव विगच्छित समित्पानि सुरुप्यं ब्रह्मनिष्ठं।
जो गुरुग बाच जाना चाहिए, जि ब्रह्मनिष्ठं। जो ब्रह्म बस्तु क्या चीज है, ब्रह्मेती, भगवानेती, भर्मेती, परमात्मेती, भगवानेती सब, ये तपस्याम्य है, जानते हैं, अच्छीदर से समस्य है, उस गो बाच जाना चाहिए।
तत्विज्ञाना थंसा गुरुमेव अभिरच्छेद। वह घरिज्ञाच्छेद नहीं जानते हैं। बाकि फिताजी जानते हैं, उनसे ज्ञान लाभ किया, इसलिए उसका जो घरिज्ञान है, वो परिपूर्ण है।
इसी प्रकार, जदी तत्वज्ञान, जो वास्त्रिक तत्वज्ञान जानते हैं, उससे आप लीजिए, तो आपका परिपूर्ण ज्ञान आया है। नहीं तो स्रमये वही केवलं, नहीं तो केवल भिथा परिष्ट्रण। वाशदी विभाँ, धर्म शालस्थित पुन्शां �
और जीव के आज यहाँ से नहीं समझाया, और भगमान से जीव के आज संपक्र नहीं जानते, तो सब स्रमये वही केवल, केवल स्रम है, वो ज्ञान नहीं है।
आप साइंटिस्ट होईए ठीक है, आप फिलिज़बर होईए ठीक है, आप इन्दिलियार है ठीक है, आप डाक्टार है ठीक है, ये सब तबसा से ये सब ज्ञान होता है, तबसा सुतर्श, सुतर्श माने ज्ञान, जो किताब पढ़के जो ज्ञान होता है, इसका नाम सु
आपके मिश्चा ठीक है थूंकि एक्सपेस्ट जैसे हमारा रविंद्र पुतार रामानंदराय नाम दिया वह कैमिस्टर डॉक्टर
एंड कैमिस्टी मैं उनको बताया जो तुम्हारा विद्या है यह कैमिस्टी का इसके दारा दुनिया तो समझा यह
तो मूर्ख लोग कहते हैं जिन मैटर से लाइफ होता है इसको रिपूर्ट करो कि यह भी है और एक कैमिस्ट है हमारा
शिष्ण उसको भी बताया शरुद्धा डॉक्टर समझा तो यह मैं नहीं बताते शास्र का उद्देश है जदी आप कैमिस्ट है ठीक है
जदी आप दर्शमिक है ठीक है अब इंजीनियर है ही है अब डाक्टर है ठीक है व्हाग यह सम घ्याण के दारा जत्त उत्तम
स्लोख कुम्हक भगवान की महिमात्य ग्रहों का कैसा इंजीनियर उसको दिखाओ में हफ्या गृह अहेंच है तो उसको दिखाओ
गत भगवान कितना बड़ा डाक्टर है, उसको दिखाओ, तभी तुम्हारा संभूल होगा, और यदि वो नहीं हुआ, समय वही केवल होगा, केवल संभूल, परिश्रव, यह शास्रिकार निद्रेशा है, धर्मस्य, सानुष्ठितस्य, आपने जगबता हैं, अतत् पुंभी
संशिद्धि हरितो, आप केमिस्थ हैं, आप आपका केमिकल नॉलेज से दुनिया को अगर भगवान का विशय समझाएगा, तो दुनिया आजकार सब सायंस का विता है, केमिस्थ का विता है, तुम लोग मानेंगे, जगजी, इतना बड़ा भारी केमिस्थ है, यह तो भग�
हम रुक्षि कात्र है, जो आप जो कुछ होईए, उसमें कोई बाधा नहीं है, केवल जो बास्तविया आपको ज्ञान मिला है, वो ज्ञान के दारा, वो भगवान को संतुष्ट किये, भगवान को संतुष्ट किये, अतपुं विदिजत स्रेष्ठ, बर्णास्रम विभाग
छत्री, वैश्व, शुद्र, बर्मचारी, ग्रिहस्त, बारप्रस्त, वैसे यही होता है, आठ स्रेनि, तो कोई भी स्रेनि में आप रहिए, कोई भी ज्ञान आप लाब कीजिए, वो ज्ञान बर्णास्रम विभाग, सानो श्ठितस्य धर्मस्य, अपना जो ड्यूटी है, �
 
 
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥ हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.