श्रील प्रभुपाद के हिंदी में प्रवचन  »  731026R1-BOMBAY_Hindi
 
 
 
वार्तालाप
बॉम्बे, 26-अक्टूबर-1973
 
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विश्वास नहीं फैक्ट विश्वास तो भूल ब्रह्म हो सकता है भूल से कोई काम कर दिया वो भी विश्वास होता है
फैक्ट इस फैक्ट तो ये सब सायंस है उसको अच्छी तरह से समझने से बगवान कृष्ण क्यों सर से बड़ा है
मल हो रहा है इस एक ग्रेश सायंस है उतो भगवत भक्त लोग समझ सकते हैं साधार नहीं समझ सकते हैं
पर जी शास्त्र के विचार रही है कि ईश्वर परमकृष्ण सचिदानन्द विद्रह अनादि राधि गोविंद सर्व कार्ण कार्ण
और भगवान खुद भी बताते हैं भगवत भीता में कि मत्तः परतरम नन्यव उनसे बढ़कर के कोई हायार अथरूति और है नहीं
ये बात है अहम आदिथी देवानां I am the original person of all the demigods
और भी बताया है भगवान
भगवत भीता में जानती दी देव व्रताद देवा जो और दुसरे देवता को भजन करता है वो देव लोग में जाएगा
अद्मद्राजन अपी जानती माम तो फरक है नहीं
आवरम्म भवना लोकान फुनरावत्ति नर्जय देव लोग में आप जाइए फिर उदाहर से घंट जाने पड़ेगा फुनरावत्ति नर्जय
विश्णु कृष्ण का अवताह भगवान का अवताह भगवान का अवताह
सुजाम महा का अर्थ होता है जो मैं उपस्थित होता हूँ आत्मानम् अपने को उपस्थित करता हूँ
हाँ जो कृष्ण भगवान आते हैं जो जैसा ये बिश्णू है ये ब्रह्मार्ण में एक बिश्णू लोख है
वो बिश्णू से अवतार केवल है जैसा पूर्वधीक से सुर्ज का उदय होता है
तो इसका मतलब नहीं है जो पूर्वधीक सुर्ज का पिता है वो सुर्ज और देव उदर से उदय हुआ
इसी प्रकार भगवान जा प्रकाश होते है कोई सोर्स से होते है
जैसे भगवान देवों की पुत्र हो करके जन्म करके, इसका मतलब नहीं है, जी देवों की भगवान को पैदाती है, वो एक प्रथा है, विधी है, तो यह एक ग्रेट सायन है, तो असन बात है, इसलिए भगवान कहते है, जन्म कर्म में दिव्यम, जो जानाति तक्त पहने, �
तो फे तक्ता देहा, वो मुक्त हो गया है
तक्ता देहं पुनर ज़न्मयन हीती, माह्मे हीती। तवन देखें
तात्यिक समझें। मनुष्याणां सावश्यस्वों कृष्टि जतति, सिद्धां
जततां भपि, सिद्धतां, कृष्टिद्वेतिमा हम तत्रत्मं
कात्यिक समझने के लिए। यह शायंस है। आप यह शायंस को समझने के लिए हैं। और जो शायंस को समझ लिया है, तो मुक्त हो जाएगा।
यह अवतार को बताया है। और आखिरी में बताया गया है, जो यहदितना अवतार है, यह सब कोई अंस है, कोई कला है।
यह ती चांच कला फुंश है। जो परंपुरुष चाहे, यह किसी का परंपुरुष विष्णु है।
किसी का अंसा है, किसी का कला है। कृष्णस्तु भगवानसा है। बगि कृष्ण जो नाम इसमें दिया गया है, ये संघ भगवान है।
शमान, समा भगवान है। इसमें कोई, इसमें कोई, तत्वक्रresse नहीं है। राम भगवान है, विष्णु भगवान है, कृष्ण भगवान है। बागी आधी जो है वह कृष्ण है।
रामादि मुर्तिस कला न्यमेन तिष्ठन नानावतारम अकरत भुवनेश किन्तु कृष्ण स्वयं समभवत परमप्पुमान जोड़।
यह बात कोई जहाँ राम का प्रबर्णन जहाँ तो राम है कृष्ण का निश्म का अगराह का अमर्च का जो चीश का दिश्मों का संकर का जिसका दिश्मों का ना वो शीव सबको बड़ा मानता है।
और दुसरे देवता को जो पूझा करते हैं उसका वीशार भगवत गीता में बताया काम स्ट्रस्थक हितग् ज्ञाना जजनते अन्न देवता। काम का द्वारा है क्योंकि दुसरे देवता को जो भजन करते है कुछ प्राक्ति करने के लिए।
शीव जी से प्रार्थना किया, महाराज हमका ऐसा बढ़ दीजिये कि हम जिसका शीर में हाथ लगाए भूड़ जाया, शीव जी बच्चा आशुतो से, अच्छा ठीक है, ले, फिर बोलता, आपका शीर में हाथ लगाए देख नहीं था, यही होता है, तो बढ़ा मुश्किल क
को प्रच्चन नहीं किया रहा है, ऐसा कभी हो सकता है, तो अपना हाथ में, अपना शीर में हाथ लगाए कि देख ना, इस प्रदावते के लिए, रावन को शीव जी खूब बढ़ दिया, खूब दिया, आखिर में राम चंदर जब उसको मारने को खरा हो गया, कोई नहीं �
खूब दिया.
 
 
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥ हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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