श्रील प्रभुपाद के हिंदी में प्रवचन  »  730918AR-BOMBAY_Hindi
 
 
 
आगमन
बॉम्बे, 18-सितंबर-1973
 
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ये हरी कृष्णा अंदलन भगवान स्री कृष्णा पाँच हजार बर्श पहले शुरू किया था।
उसके पहले भी भगवान कृष्णा शुरू किया था कोई चालीश करोर बस्त पहले।
इमं विवस्वते जोगं प्रक्तमान हमव्यं विवस्वन मनवे प्राहो मनु इखाक अवे ब्रवित।
कोई हिसाब किताब करने से मनु का जो आयू है उसको हिसाब करने से कोई चालीश करोर बर्श पहले भगवान स्री कृष्णा यही जो कृष्ण भक्ती सूर्जव भगवान को कहा था।
विवस्वां कि सूर्जव आप लोग साप देखते हैं।
इधर भी राजा है, इधर भी प्रजा है और राजा का नाम है विवस्वां, नाम भी बतलाएगे है शास्त्र में।
जितने यह सब गोलोक है, भूगोल है, नक्खत्र, तारा, इत्यादी, सब जागा में ऐसी राजा भी है, प्रजा भी है, शहर भी है।
गारी, घोरा, सब कुछ है। कि सूर्ज लोग में भी, आजकाल के जो विज्ञानिक है, वो तो सप्न में भी नहीं समझ सकता है, जो सूर्ज में कोई जा सकता है।
अगनी मय है, परन्तु है। उदर जो जीवात्मा है, जो रहने वाला है, वो लोग देवता विश्वेष है, उनका सरीर अगनी मय है।
जो हमारा सरीर मट्टी मय है, यह हमारा सरीर जादा मट्टी इसमें है।
खिती, मट्टी, जल, अगनी, बायू, आकाश, यही शरीर, जैसा आपको बनाया है, हमारा बनाया है, इसी सभी का, यह पाँच चीज़ से बनाया हुआ है,
किसी का शरीर में कोई चीज़ ज्यादा है, जैसा आयिद्वेदिक विशाप से, किसी का पित्ता दिख है, किसी का कफा दिख है, इसी प्रकार, शरीर भी अलग-अलग,
भूगोल में अलग-अलग लोक में अलग-अलग शरीर होता है। तो सुझ्य लोक में भी शरीर है। यह बात नहीं है जो खाली पड़ी है। नहीं। कोई जगह खाली नहीं है। सब जगह है।
तो भगवान कृष्ण-चंद्र पहले सुझ्य भगवान को भगवत गीता को विशय सुनाया था और वो फिर नष्ट हो गया था।
इसको रखे बाचित नहीं कीजिए। यह कोई इंपार्टन चीज नहीं है।
सुनिये। तो भगवान खुद कह रहे है।
जो इमं विवस्थते जोगं प्रत्वान हमव्यं विवस्थान मनवे प्राहु मनुई खाकवे व्यवेद।
यह जो भगवत गीता, भगवत भक्ति, भगवत गीता माने भगवत गक्ति।
भगवत गीता कोई पॉलिटिशन का किताव नहीं है।
जो भगवत गीता दिखा करके अपना कोई राजनहितिक मतलव है उसको हासिल कर लिया
जाया। नहीं। भगवत गीता है भक्त कह दिये।
करिए प्रकार के आदमी होते हैं ग्रही होते हैं करिए होते हैं जो गी होते हैं हां और भक्त भी होते हैं
इसरिश भगवतगीता है यह को उसमें ज्ञान जो कर्म का बात सब बताया गया है परंतु आप दूंगे पर वह देखाकर
की शिद्धांत है। बगवदभक्ति। मन्मना भवमदभक्त, मद्याजि मांग्नमशक्रू। यह बगवदजीता की
शिद्धांत है...जो सब समय हमारा चिंतन करो। मन्मना भवमदभक्त, हमारा भक्त बन जाओ
और मन मना भव मत भक्त मत जाजी हमको पूजा करो और मांग नमस्करो हमको नमस्कार करो
चार चीज है जैसे भगवान का मूर्ती इदर है सब कोई अपना घर में भगवान का मूर्ती रख सकते हैं कोई मुश्किल नहीं है
और ये चार चीज साधन है क्या चीज है भगवान का मूर्ती के उस देख करके रिधय में एक छाफ होता है
कहीं भी जाएँ भगवान का मूर्ती दर्शन कीजिए मन मना और मत भक्त बिना भक्त हुए कोन भगवान को स्मरन करेगा इसलिए भक्त होने पगएगा
भक्त का अर्थ होता है जो भगवान की सेवा में सबसमाई नहीं जिपता है
तो भक्ति पुरण ठाकुर जैसे बताया है कृष्णेर संशार करो छारी अनाचा
संशार अपना बाल बच्चे ले करके जीवन पालन करना है करो
परन्तु भगवान कृष्णा का केंदर करते हैं
बीच में रखो भगवान कृष्णा को
पृष्णेर संशार करो छारी अनाचा
और अनाचार जो है इसको परित्यार करो
क्योंकि सुध होने परेगा
भगवान परं पवित्र सुध
भगवान का पास पहुंचने के लिए जो भक्तो है जो भगवान का पास जाने को चाते हैं उनको भी सुद्ध होने पड़ेगा
असुद्ध नहीं बगवात गीता में बताया है कि जीसाम अंतगतं पापं
जिसको पाप बिल्कूल नष्ट हो गया है जो पापी नहीं है
जीसाम अंतगतं पापं जनानां फुन्न कर्मानां ओ पाप से निर्मुक्त कौन हो सकता है
जो पुर्ण कार्ज करते हैं पाप कार्ज करते ही नहीं वो पाप से मुक्त हो सकता है
एक दापे पाप कर लिया थोड़ा पुन्य कर लिया तो ठीक था हिसाब-किताब ठीक हो गया
नहीं केबल पुन्य काज्जा कीजिए पाप न कीजिए इसका नाम है जनानाम पुन्य करमानाम
ते दन्धम हो निर्मुक्त भजन ते मांग दिरप्यता
इस प्रकार जो वेक्ति है, केबल पुन्य का आज्जी करते हैं, पाप का कोई नाम ही नहीं है, इस प्रकार जो वेक्ति है, वो धन्दमहो निर्मुक्त हो, वो भगवान को कौन है, भगवान का कैसे रूप है, भगवान निराकार है, कि भगवान की नूरुरू, ये सब धन्�
और ऐसे बहुत से देवता को भी कभी कभी कहा जाता है, जैसे भगवान सिभ को भी कहा जाता है. भर्माईदी को भी कहा जाता है,
नारद के भी कभी कहा जाता है, परन्तु भगवान जो मूल भगवान है, ईश्वर्य परमः-कृष्ण।
कृष्ण तो भगवान सैं, और सब भगवान का कुछ चाकल है।
और जो सैं भगवान है, वो सैं कृष्ण। ये सास्त्य शुद्धा है।
तो इसलिए भक्ति पिनट ठाकर बता रहे हैं कि कृष्णेर संगशार कर चारी ओना चार
हम लोग कहें कि संगशार करने की प्रदित्ति है
कि जो जो हम लोग भौतिक जगत में सब आये हैं कुछ भोग करने के लिए आते हैं
इसलिए पहले ब्रह्मा की ऐसे जन्म होता है पहले तो ब्रह्मा की जन्म हुआ था
तो तू पहले तो जब दुनिया में आते हैं भौतिक जगत में ब्रह्मा का ऐसे जन्म मिलता है
फिर अपना कर्म विपाग से, ब्रह्मा से, वो जो मैलाखा कीरा होता है, वो भी जन्म लेने पड़ता है, बोग करते करते करते करते करते करते, इतना नीचे आ जाता है.
इसलिए चेतन महापूर्प बता रहा है ईरोपे ब्रह्मार्ण भ्रमिते कुणो भाग्गुबाने जी
इसी प्रकार भ्रमन कर रहा है कभी ब्रह्मा हो रहा है कभी इंदर हो रहा है कभी चंदर हो रहा है
कभी ये सब होते होते देवता होते होते फिर नीचे गिर जाते हैं इदर भी आखर के कभी कोई बड़ा नाम ज्यादा व्यवसायी हो गिया
बाकि कर्म का विपाक ऐसा है जो थोराई असाधान हो सेने से फिर उसको नीचे गिरने पड़ता है
चुराशिलहई जोनी है
जले आनम लक्खानी स्थाबुडा लक्ख वंशिती तो फिर जाके जो गिर जाते हैं वो जन्म मित्तु का चक्र में कभी कीरा होता है कभी ब्रामन होता है कभी सुद्र होता है कभी जानवार होता है कभी देवता होता है
इसी प्रकार घूमता फिरता रहता है ब्रह्म भार्णों में
इसलिए चैतुन महावर्कारता है एे रुपे ब्रह्म भर्मिते कोनो भाग्गवान जीव
इस प्रकार ब्रह्मण करते करते करते कोई भगवान अगर जीव हो
होए। तो उसको एक मौका मिल जाता। क्या मौका मिल जाता है? गुरु कृश्न कृपाय पाय भोगती
लोता है बीज। जदी भगवान होए तो उसको ज्योग गुरु मिल जाता है और कृश्णों की
कृपा से, जो बास्तवेक यही, संवशाल चक्र में भ्रमन करते, करते, करते, करते, तो ठक जाता है, और भगवान से
प्रार्थन करते हैं, भगवान, आप हमको उद्धार कीजिए, उसके लिए भगवान जोग्य गुरू भी देखा देते हैं, इसलिए
कहते हैं, गुरुप कृष्ण, कृष्ण की कृपा से, कृष्ण को सबका रिधाय में बैठी हुए हैं, इश्वरो सर्वभूतानाम रिद्देशे अर्जुनतिस्थत, अर्जुन, भगवान जो है, सबका रिधाय में बैठी हुए है, देखता है कि क्या खा देखे, भगवान
बहुनाम जन्मनाम अंते घ्याणवाण मांग प्रबृत्य कर दे।
अनेगे जन्मों ऐसे भ्रमन करते, करते, करते, करते, करते,
जब बास्तवियोग घ्यणवाण होता है,
तब वाशु देवा सर्वमीति, समहात्माशु दृल्लवक,
वो भगवान का चरण में प्रपुत्ति करना है, जो अनेक जन्म का पश्चा, भगवान का चरण में प्रपुत्ति करनी है,
यही आसल सिद्धानता है, तो भगवान खुद बताते है, जब भगवान लोक में प्रस्तुत है, उस समय क्या बता है,
ये सब छो, जदी शुकी होने को चाते हो, तो ये सब भोग की बाशना छोर करके हमारा चरण में प्रपृत्ति करो, और तुमको हम सब चीज देंगे, भोग का कुछ अभाव नहीं रहेगा, भगवान को भक्तों जो होते हैं, उसको कोई अभाव नहीं है,
साधारण आप लोग सब कोई नोकर चाकर रखते हैं, तो आप लोग देखते हैं कि भाई हमारा पास ये काम कर रहे हैं, सब स्वाय सेवा में नहीं दिखते हैं, इसको कोई अशिविदार नहीं है, तीसी प्रकार, जदी भौतिक जगत में इस प्रकार व्यवहार है, जो भग�
दुख नहीं होगा, तीसले भक्तिवान ठाकर कहना है, जो ये जो हम लोग दुनिया का सब भोग का प्लान बनाया है, करो, बाकि कृष्ण को केंद्र करके करो, और अनाचार व्यविचार को छोड़ दे, फिर जिवन में सुखी हो जाओ, फिर कभी दुख नहीं होगा, कृ�
तो अनाचार, शास्र में, जो कहते हैं, कि चार प्रकार का जो पाप है उसको छोड़ दीजिए, श्रियश्वनापानद्रूत जत्रपाप श्रतुर्विद्धम्, एक तो अवैद स्त्रिशंग कार्यना, विवाहित स्त्री छोड़ करके कोई स्त्री से संपर्कर रखना नही
मात्रिवत प्रदारेशु, जो दुसरे का स्त्री को अपना मा के समान समझता है, ये हमारा वैदिक सिद्धान्त है, इसलिए ब्रह्मचारी कोई भी होए, और जो दुसरे जावरातों, उनसे मा बोल करके संपर्कर करते हैं, माताजी, ये नियम है, ये महापाप है,
जो अपना धर्मपत्नी छोड़ करके और कोई स्त्री से संपर्कर लगता है, महापाप है, इसको छोड़ना चाहिए, यदि आपको भगवान को चाहिए, और यदि नरक में जाना चाहिए, वो दुसरी भगवान है, जाईए, खुब जाईए,
तो इसको छोड़ने चाहिए, और स्त्रीय सुना, अब विथा पोशु मांश को खाना, मनुष्र के लिए पोशु मांश खाना नहीं है, मनुष्र के लिए भगवत प्रसाद खाना चाहिए,
भगवान कहते हैं, फत्रं पुर्ष्पं फलं तोयं जोमी भत्ता प्रजच्छति, इस प्रकार भगवान की प्रसाद खाना चाहिए, और अविदस्त्री संग छोड़ने चाहिए, और किसी प्रकार का निशाभां,
माये चावी पीनا छोड़ने चाहिए, और कॉफी, सिगरेट, बीड़ी, ये भी सब छोड़ने चाहिए, सरापाती तो छोड़ने ही चाहिए,
पाना माने पान भी खाना छोड़ने चाहिए पाना इस प्रकार शुद्ध हो जाएगे और भगवान का नाम कीर्तन कीजिए
यो लड़की हस्ती है क्यों ठीक नहीं लड़की है अच्छा ठीक है पिता जी को
ठीक है बड़ी इंटेलिजेंट यह सब छोड़ दीजिए छोड़ देने से कि आप मर जाता है नहीं यह सब अससंग से शीखते
हैं और सच्चंग कीजिए भूल जाए देखिए सब येरोपियन अमेरिका लड़की लड़की हमारा साथ बहुत है हजारों है
10,000 सब छोड़ दिया कभी आप लोग हमारा येरोपियन अमेरिका मंदिर में जाएगा देखिए 250 से कम नहीं
200, 300, 400 सब है सब छोड़ दिया बिल्कुल सुद्ध हो गया बिल्कुल इसी प्रकार हम लोग एक प्रचार करते हैं
जो भगवान कृष्ण है और कृष्ण का संसार कीजिए, रुजगार खुपिदिए, भगवान को खोब शेबा कीजिए, भगवान को मूर्ति को सजाईए, भोग लगाईए
भोग मान तो भूका नहीं है, सब खा जाएंगे, आप ही लोग खाएंगे, प्रसाद, तो इस प्रकार संशार कीजिए, और ये सब पाप छोड़ दीजिए, तो सुकी हो जाएंगे, ये हमारा कृष्ण कॉंशासनेस का प्रचार है, और कुछ नहीं है, ये सब को लिए है, ऐस
शेवा माने, सब समय भगवान का चिंतन करो, भगवान में भक्ति करो, पैसा है, तो भगवान का खोग अच्छी तरह से मंदिर बनाओ, खोग शेवा करो, खोग अच्छी तरह से फोग रगाओ, ये हमारा भारतिया कृष्णिया है, ये सब छोड़ छार करके, जो हम लोग �
है, जो हम लोग है, जो हम लोग है, जो हम लोग है,
 
 
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥ हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
 
 
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