श्रील प्रभुपाद के हिंदी में प्रवचन  »  701218BS-SURAT [Hindi]
 
 
 
ब्रह्म संहिता
सूरत, 18-दिसंबर-1970
 
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आदि पुरुषाम, आदि पुरुषाम, तमहाम, तमहाम, नजाम, नजाम, बोदुन नाम, आदि पुरुषाम, तमहाम, नजाम, बोदुन नाम,
बोदुन नाम, आदि पुरुषाम, तमहाम, नजाम, बोदुन नाम, परत्ता राश्यार्ण के,
पल्वित ब्रेशलक्षा पृकेशो, तु रघी रघी पालन्तम, लख्य उंचखाल, शतकाउ, दंडना,
गोबुन दम्मा दुपरशं तमाहान धजानी
गोबुन दम्मा दुपरशं तमाहान धजानी
गोबुन दम्मा दुपरशं तमाहान धजानी
गोबुन दम्मा दुपरशं तमाहान धजानी
एच्छं तंजंतं अरदिंद बलावताप्यं दरहावतं जमकिताँ बुदसिंद लागलें
संगत तो कितमनिया जिसे पतोहन
गोबुन दम्मा दुपरशं तमाहान धजानी
गोविन्यं आदि पुरुष्याँ तजाने गोविन्यं आदि पुरुष्याँ तजाने
गोविन्यं आदि पुरुष्याँ तजाने गोविन्यं आदि पुरुष्याँ तजाने
आलो रकन्द कलशद बनमार रबंशी रकनां रदंशन अज्जेली
तड़ा पुलावश्यानं
पालोर द्लासम्
स्याणं जिभं अलभितं
आदे कुल्शां निकाहां भजानी ओ निकाहां भारे कुल्शां नमाहां भजानी
अनिनानी जत्व सफलं द्रियवी शिमांती पश्यंतु पांतु कलयंती शिलं जदंती
आमल्या तुल्वै सदू जलवी प्रहस्चर ओ बिल्लन आदि कुल्शां निकाहां भजानी
ओ बिल्लन आदि कुल्शां नमाहां भजानी
ओ बिल्लन आदि कुल्शां निकाहां भजानी
ओ बिल्लन आदि कुल्शां निकाहां भजानी
आद्याँ पुराण पुर्षमु नव जोगलंश्यम।
बेबे चिदुर लगर दू लगर आपन भक्तों गोबिन्नम आदि पुरिषमु ताहन भजावि।
गोबिन्नम आदि पुरिषमु ताहन भजावि।
परिणाम आई पुरुषाम पापणा जाने
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फिल बल ये
परिणाम आई पुरुषाम पापणा जाने
परिणाम आई पुरुषाम पापणा जाने
परिणाम आई पुरुषाम पापणा जाने
परिणाम आई पुरुषाम पापणा जाने
परिणाम आई पुरुषाम पापणा जाने
एक अप्तसो रचयतं जगदंद खोती जच्छ तिरप्ती जगदंद चया जगंतं
अंदां तरस्तं शरमान सुराँ तरस्तं गोबिन्दं आदि पुर्शं तमहं हजावी
गोबिन्दं आदि पुर्शं तमहं हजावी
गोबिन्दं आदि पुर्शं तमहं हजावी
भर्ण भजावी ओ दिन्ना आरे गुरुज्ञा भर्ण भजावी
आलन तुम्हे रचत तु भावि तावी तावी जये वन जदिपर तया परावी
जो लपे बनुव सत्या स्यात्न भूतं गो बुल्लमा दिपुर्शं तहं भजावी
ओ दिन्ना आरे गुरुज्ञा भर्ण भर्ण भजावी
गो बुल्लमा दिपुर्शं तहं भर्ण
ओ दिन्ना आरे गुरुज्ञा भर्ण भर्ण भर्ण भर्ण
प्रेमाँ जन अचिरित भक्ति दिलो चैना चंता सदै जरिदै सिदिलो करंती
यंश्याम संदरं अपींत गुणाश तरीपं गोगिन्दं आधिकर शंता हं
भजाने गोगिन्दं आधिकर शंता हं
भजाने गोगिन्दं आधिकर शंता हं
भजाने गोगिन्दं आधिकर शंता हं
भजाने गोगिन्दं आधिकर शंता हं
ये जो सोत्र है, आप लोग बाय है, ये इस नामा ब्रह्म समिता, ब्रह्मा भी सिर्फिता,
तो अगर भवान का उपलोग दिया है, उस समय ये सोत्र ब्रह्मा भी रखना कियो, उसका नाम है ब्रह्म, ब्रह्म समिता,
तो इसमें भवान का पुरिताई देते हैं,
शिन्ता मनी प्रकर शजमसु कल्प वृष्ठ लक्षा अब्रिटेश शिरभी लवि पालें।
भवान गोधिँद्धा, श्री कृष्णा, उनके धान, शिन्ताम, प्राचित धां नहीं है,�पप्राचित धान,
शिन्ता मनी, आपलों समय हगे, काई इस नहीं देखेंगे, शिन्ताम मनी एक मनी होता है,
जो लोहा को शर्ष करने से लोहा सेना हो जाता है, शर्ष मनी कहा जाता है, तत्र जो भगवान का जो धाम है, उदर जो मकाम है, वो पथ्षर बालू को नहीं होता है,
चिंता मनी, चिंता मनी जो पथ्षर है, चिंता मनी कथ्षर कोई जरिविश नहीं है, इसी जी नाम है चिंता मनी,
उन्हें भगबान का नाम, भगबान का धाम, भगबान का भूस,
भगबान का गोर, भगबान का भृपुष्ट, सब तिनुमा, जरवने, तिनुमा,
स्थितानन्न जुद्रह। इश्वरा, पाला, कृष्णा, स्थितानन्न जुद्रह।
भगबान का शरीर जैसे आननमा, शिन्मा, जैनमा, और नित्यकार, इति प्रकार भगबान का संचिर, भगबान का नाम, और भगबान कोई परण नहीं होता।
जैसे भगबान का संचिर है, इति प्रकार भगबान का नाम में दिया है, उसी प्रकार संचिर है।
जैसे भगबान का संचिर है, उसी प्रकार संचिर है, उसी प्रकार संचिर है।
जैसे भगबान का संचिर है, उसी प्रकार संचिर है।
भॉगान का सज्ञ सत्ति मात। इसी प्रकार, भगबानका नाम सज्ञ सत्ति मात। और भगबानका नाम भी अहेंश है। जैसा विश्म उत्राज को नाम है,
तो सब नाम में भगबान की शक्ति सब उसमें अर्थित है। नाम नाम कारी बहुदा। यह सर्व शक्ति है।
और वो नाम स्वरंद करने के लिए कोई नियमिता का काल है। इस काल में, इस समय में भगबान का नाम करना है। कोई नियमिता काल है। भगबान का नाम स्वरंद करने के लिए कोई काला काल भिकाय नहीं है।
और सर्व भगबान का
पाप्षेन को
काल का विचार है इसी प्रकार काल का विचार होगा का अप्शिर किया जाता है नाम को स्माउन करने के लिए कोई काला काल विचार है
कि गैसे आपको शुभी का होता है आप नाम को विचार कर सकते हैं कि भक्तान लोग था
और leo
का एक प्लाव आज कोई जिलक्कत नहीं है कोई हिस्ता नहीं है कोई लोग प्राव्लम नहीं है था आप है यह युद्ध
युद्ध
से
से
यह जो नजवान जो पिछल है आपको सामने सर्फ मैं नाम के जो माला है खेल रहे हैं इसको कोई लगजार नहीं है
कि हम एरोपियन है हम किस्नों का नाम क्या होगे आदमी क्या हटेगे नहीं जब भरुबाद में क्रेम हो जाता है
उसको ये बाद्योग ज्यादा नहीं जाता है कि आदमी हमारा ओपर छटेगे ये हटीदायने यह सब दिकार नहीं जाता
ये भरुबाद का क्रेम का लक्ष्ण है भरुबाद धक्ष प्रेम का भील होकर के पादलिकन हो जाते है उसको बहार का कोई दिकार नहीं जाता
तो यह भगवान की सक्ति है। इसलिए चैत्रण महाभू कहते हैं, तो नाम नाम कारी भगवान यह सर्व सक्ति है। पत्रा भी कहते है। नाम में भगवान की सर्व सक्ति निहुत है।
तो आप यदि सुद्धो नाम ले, तो आपको भगवान के सर्व से सब सक्तियों को दारा आग्रश्चित रहें। आपको माया कहा कोई दर्म नहीं।
भगवान कहा, भगवान जिताने कहते हैं, मानु जो लग प्रवज्ञान के माया, मृद्धान, सर्व सक्ति।
तो अब बाद भगवान की कांसर माया रूप से बखाने चाहते हैं। तो सर्व समय हरे, वीतुष्ना, वितुष्णा, वितुष्णा, वितुष्णा, वितुष्णा हरे हरे।
हरे ज्राम , हरे ज्राम ज्राम ज्राम हरे। आज मेरे सईतन महापुर पहला कहा
अधवती देख करके उनको एक मात्रा उपाय बताय दिया है
भगवान के अधिक पार भगवान के अधिक पार भगवान के अधिक पार
भगवान के अधिक पार भगवान के अधिक पार
भगवान के अधिक पार भगवान के अधिक पार
भगवान के अधिक पार भगवान के अधिक पार भगवान के अधिक पार
श्री आश्र नाम कराओ। ग्राह, आश्र, बुद्धि और भकन से भव्वान की सेवा है। तो आप लोग पर निर्णन है, जो ये जो अनुविद्धन से तब भक्ति लोग आये हैं, आप तो ये चार लाख रुद्धि और अस्थिति खरीच कर चाहे हैं। इतना फर्च कर च
संशीर्षण जर्द में सर्थाव्योप करें। और ये जो उपादि दृष्ट हमारा पूरित्य है। मैं अनुविद्धन हूँ, मैं भारतिय हूँ, मैं जापानी हूँ, मैं हिंदू हूँ, मैं इंशल्नान हूँ। ये सब भूल जाये। भूल जाकर सब कोई एक शिरीचा
सब समय हम लोग कोई सिंतर करें। कि हमारा भगमान का आधार्थ है। तो जो हम मुक्तकरूप है। भक्ति का अशल्द कुछ नहीं। जो उनका स्वरूप है, उसको उपलद करना ये होती है। जो ये भगवत्ति करना है। वो स्वरूप उपलद हो जाता है। इसलिए पे�
जो कुछ धैरवा धंजा है, वो साथ एक मात्रा यही हरुदीतम का आया ही समाना हो सकता है।
इसमें आप लोग साथ भाव लोग चीजिए।
धन्यवाद, धन्यवाद।
आप बिलेंधे लगते हैं, इसमें ही करते हैं।
आदे आदे, आदे आदे, आदे आदे, आदे आदे, आदे आदे, आदे आदे, आदे आदे, आदे आदे, आदे आदे, आदे आदे, आदे आदे, आदे आदे, आदे आदे, आदे आदे, आदे आदे, आदे आदे, आदे आदे, आदे आदे, आदे आदे, आदे आदे, आ�
तो
यह प्राविशाई
और यह प्राविशाई
और यह प्राविशाई
 
 
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥ हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
 
 
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