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प्रणान भीजा यह दिलिष्ट न देशन हो और दिलिष्ट न दिलिष्ट हो
हाँ हर्ष अंको लास अंग्रीशे पित्री में दिया है
कि हवाई अनदलो आईराज्डा एक बड़ा भादी पाठी है
वो हमारा साथ में नहीं जाए परन्तु वो हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण हरे हरे यह नाम को जमा करते हैं
और खबर मिला है जो इन्हाँ पाठी सब लास अंग्रीशे में पॉड हिया
और जैसा हम लोग रहते हैं शुद्ध विचार के वो सब खितार करते हैं
और हमारे जितने खितार उनके साथ मिल रहा है और उनके पाठ जितना रुपया पाठ सब भी था वो भी सब भी देगी
वो काम नहीं है चार लाग भी देगी वो भी देगी
तुलकि है जो अच्छेतन महापुरी की आशिक बात परनु धिलयते है शीतिष्ण शांकृत करे जो भी नहीं है
खुद हम फिर सब किया थे भगवान शीतिष्ण का जैगान के लिए सब वेदाव में सायर वर्ष थे
बगवा जीता में कहता है
वेदावी फास्तो का उद्देश्च क्या है
बगवान शीतिष्ण का समझना
जदी अपना धणम को जाज़व करते वेद वेदाव को आज़व को पढ़चों करते
ज्यान, जग्गा, तपर्श्या, जोग सब आदम करते हैं
जदी कृष्ण भक्ती नहीं
तो सब परिश्चाव है
केवल परिश्चाव
त्रम्येव ही केवल है
धर्म स्थानु सितपुत्रशाव विश्चप्ति नतः खाया कुछ नूतपारणि रजिनु जदिष्च्च्रमयेव वही केवल है
सब अपना धण्म है
धण्म जाज़व करो
परंट्थो आप्यु में जदि भगवढ भक्ति, कृष्ण भक्ति मही हेत
तो सबज्ञा बच्चां
कुछ कांता नहीं हो
आराधिन जदिहरि समृषाथ टक्षिर नाराधिन जदिहरि समृषा टक्षिर
अन्तर भाइध जदि हरी, तभषात अपथिं ना अन्तर भइद जदि हरी, तभषात अपथिं
वह जानता है, यदि भगवान की आराधना होगा, भगवान से प्रेम होगा, केवल भगवान के चरण में आक्षसमत्म कर लिया
फिन उसके लिए और कोई तपस्चाची आवश्यकता है है.
जब तपस्चा हुआ है खतौब आराधिदर जदीळ हरी तपस्चा आँथ करती है।
नरादिदर जदीळ हरी तपस्चा आँथ करती है।
अजदे stuck करके भगवार की आराधि नहीं हुई।
उसका टपस्था का कोई मुल्य नहीं है। कुछ भी बस नहीं है।
अंतर्व ही जा दी हरी टपसा, तप्षी।
जिसको अंतर में और बाहर में, संवेदा में भगवान का दर्शन हो रहा है।
उसका जो बच्ची है उसको और कोई टपस्था की आवश्चता है।
अन्यांतर वही के भी हरी की तवस्ता आता तक्ति और सब कुछ साधन करते हैं बाहर और भूतर यदि भगवत दर्शन नहीं हुआ तो तवस्ता का कुछ बोल जाएगी
यह जो भाव सब्सक्राइब भगवान का धर्शन
यह भगवान भूतर भगवत दिता में कहेंगे सप्तमद्धाय में महियारिष्ट मनो उद्धि योगं जुनिजण मदायाच्छयाद
अधंशं सभक्षं माय रशाद्याच्छतित तस्तिरुं भगवान अधुकृत कर रहा है महियारिष्ट सब्सक्राइब भगवत दिता
सब्सक्राइब भगवत दिता
और भगवान क्या मुख्यु है
वो समक्रम
असम्सम समक्रम
भगवत भक्ति द्वारा आप भगवान को संपूर्ण समझ सकेंगे और कोई संसाय नहीं रहेगा
आज सादन की मिर्जाएं उसमें संसाय रहेगा
असम्सम
जोगम जिन्जन मदाश्रे और भगवत भक्त का आश्राय लेता है वो जोग को सालन करना है भक्ति
तद विद्धि पणिपाते नापरिवच्चे नाशिक्वयाँ उपदक्षंति तद ज्यारं ज्यारिन तक्तदर्ज्यों
जिवि आप को वह तद विश्तु तद वक्त का समय होता है भगवत वक्त है
कि आई-अजय को कहा अ झाला और सब्सक्राइब कर दो कि अजय को कोल में आज कभी
तद जान भगवत जान लाव करने के लिए गुरु का पास सबसे जाना चाहिए।
गुरु कौन है? चोध्यम ब्रह्मणिक्षम।
जो वेदारे भार्षितों पढ़ता जाते हैं, भगवान में निष्चा, पूर्ण निष्चा हो जाता है। वो गुरु हो जाता है।
तो ये सब जो साधार बक्षियों, सथात्य का एक विचार है, जो कई जो में है, केवल भगवत नाम की उत्तर करके आपका सब साधन संपूर्ण हो।
सेटनम महापू जाता है, परंभिजयते शीतिष्ण संकीतन। शीतिष्ण संकीतन परंभिजय लाव है।
तो इसका प्रमाण फिरोग, देखिए पास्ता के देश में ये जो भीजय लाव हो रहा है।
सब भगवत, बगवान कृष्णता चरण में आपका ले रहे हैं, इसका एक मात्रा उपा है, ये विचार नहीं हो रहा है।
विजय लाव कर रहे हैं। परंभिजय शेतन माहपूर्णी भागी कभी असत होने वाला नहीं है।
विजय लाव कर रहा है, परंभिजय पे इतिष्ण संकीतन।
आप, इसका, हमारा पूर्व जॉब, अननी संद्रा शरीर, अमेरिका आदी में, अमेरिका, देश आदी में प्रचाय करेंगे।
विजय लाव नहीं तुम्ही मर्खे कर रहा है। उत्ति किष्ण संकीत विजय लाव कर रहा है।
परंभिजय किष्ण संकाल ही कर दें।
ये उनको भविष्यत बाने। ये प्रति सारा दुनिया में जितने ग्राम है, जितने शहर है, सब ज्यादा में ये जो हमारा प्रचार के दिशा है, हरिकीतर ये फैल जाए। ये भविष्यत बाने। और फैदा है।
आप लोग इसका उपयोग की, बहुत सरक, अपना अपना स्थान लेने से उपयोग रहिए। जो काम आप कर रहे हैं, उसके भी चलित होगा कोई जरुरत नहीं।
परन्तो भगवत की तन्ती दिये।
और भगवत धक्तता महारावित्य से भगवाय रभिष्यत है।
वह शुनि है।
श्र्मर्णं शुच्रं वृष्ण श्मर्णं पालुति।
जब आज आजों कुपा कहते हैं, शुद्ध भक्त का महारावित्य शुच्रुण।
जो भगवत कृष्ण अपना जीविका कर रहे हैं, उसे काम रभिष्यत है।
जो भगवात के लिए सर्वस्त तयार्ज्या है, उनका महारावित्य शुच्रुण है।
सदा न प्रदिन्गा श्र्मर्णुष्ण।
भगवत भक्त उनका महारावित्य शुच्रुणे से बहुत जल्दी काम है।
और सदाजा को पारण करता है।
भक्ति की चीज़्य है आदोर्षज्ञात अदोर्षज्ञात।
भगवत भक्ति स्थादम करने के लिए फिर-फिर आपको ग्रहं करना चाहिए।
उत्ता हो।
कोई उत्ता होना चाहिए कि जी जीवन में मैं मनुभाय को लाइव करूँ।
दैज्या।
दैज्या से।
बीचे बीच नहीं होना।
करो।
जैसे-जैसे आपको दीजिया ऐसा करो।
उत्ता, धर्या, धृष्या।
और निक्षित हो गया है।
क्योंकि मैं भगवान का हाथ्या ग्रहं किया हूँ।
भगवान भी कहे है।
क्योंकि हमारा हाथ्या जब भी हम करते हैं।
मैं उसको सब पास से बताते हूँ।
और उसका भी नक्षित होने वाला है।
जीत में निक्षित है।
उत्ता, धृष्या, धृष्या।
तत्त पर्म प्रवश्चना।
और शास्त्र में जैसा भीवी है।
उस भीवी को पालन जाने।
और सतो विप्ति,
विप्ति तप रखिये।
विप्ति तो ख़रार न जाती है।
सतो विप्ति साधु जब गए,
और साधु का कभी जाती है।
विश्व जीत हो।
कुछ कहा, द्रेज्य, निष्यदा, तथ भक्ति जिधि को पालन करना और भागु का संभे सत्विक्ति हो गया पर यह आप पालन करने के तो निष्य, शर्मि भक्ति प्रशिष है, तो यह आपकी भक्ति जोग से काम बन जाएगा।
तथ भक्ति जोग से काम बन जाएगा।
तथ भक्ति जोग से काम बन जाएगा।
तथ भक्ति जोग से काम बन जाएगा।
तथ भक्ति जोग से काम बन जाएगा।
तथ भक्ति जोग से काम बन जाएगा।
तथ भक्ति जोग से काम बन जाएगा।
तथ भक्ति जोग से काम बन जाएगा।
तथ भक्ति जोग से काम बन जाएगा।
तथ भक्ति जोग से काम बन जाएगा।
तथ भक्ति जोग से काम बन जाएगा।
तथ भक्ति जोग से काम बन जाएगा।
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तथ भक्ति जोग से काम बन जाएगा।
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तथ भक्ति जोग से काम बन जाएगा।
तथ भक्ति जोग से काम बन जाएगा।
तथ भक्ति जोग से काम बन जाएगा।
तथ भक्ति जोग से काम बन जाएगा।
तथ भक्ति जोग से काम बन जाएगा।
और मैंने तो जब यह जीवन रहा हुआ था, हो चुक है कि देवल खाया, छोया, बत्ता पहला थी और मर लिया,
तो फिर बचु जीवन से मिला दे, आगे रहा कि आपको क्या जीवन मिलेगा, तो क्या का अगला आगा क्या जोड़ी मिलेगा,
जैसे-जैसे मैं काम करूँगा, कर्मणार देवल एक तरीके ना है, वैक्ति हरी की देवल है। इसलिए जब तक यह मनुष्य सर्वित है,
जब तक हमारी बुद्धि इच्छा है, यह सब खार्चन का वैचनन्त है। हरी कृष्ण कीजिये करिजोदे बड़ा जड़ा रूपा है, जिसके का बहुत जल्दी भगवत्वन भव हो जाए।
श्री दर्पणम आजणंभः महादालाद्धि पापणं स्र्यः शरीर वचंद्र का विजणनं जेशत्षां रोजाला सुलचला सुलचला बढ़ते, एक दूर पुरुषिमा पूर्ण शंग्र उदाय हो जाए।
इसी विषयादे इतना इतना रीवस्तवी भी यहां. आज काथ से आपको ओज व्यस्त शंग्र है वह बचे बचे बचे इन उच्छोर्ण शंग्र की ताके कारण से आपको आप जो चाते हैं पुरुण आनंद उच्छापन.
और वो आनंद क्या है पूर्ण दुझ्या क्या हम एक शक्तिक आनंद लेते हैं ताकि आनंद करेगा जत्ता है जब पूर्ण ध्यान होता है
दुझ्या देखने मामी जाता है कि यह पहले वचन निराविरणम दुझ्यावधि जीवनम
जब पूर्ण ध्यान हो जाता है तो आपको वो सत्यि आनंद लाभू होगा
यह सब होगा
विर्जाभू
और कुछ तासे जिस्टातासे हरीपीचन करेंगे, आश्याश्या आश्या आश्यी खर्ची जाओ।
जो कर रहे हैं उसको हो रहा है।
आप लोगों को करेंगे करो दिशाना है।
करो लोगों को भी लाजनत की भी तो महाद होने।
तो हम लोग कल इधर से शुरण जाने के विचार दिया है।
12 तारीख के पेवर शेमी राम आ रहा है।
तो बगवान की विचार तो कल हम लोग शुरण जाएंगे।
और आप लोग की विचार नहीं है।
यह हरीपीचन यह हम लोग प्रचार जा रहा है।
यह कोई नई वजन है नहीं भारत में।
तथा भी जैसा शुर्ण भाव से हरीपीचन हो है।
इसलिए यह प्रयाय है।
शुर्ण भाव होने के लिए यह जब चार तुझ है।
इसको शास्त्र लेता है।
पापो जत्म जबुर भिजा।
चार तुझा तो यह पाप है।
उसको छोड़ दो।
और वह जब शुर्ण संग्ञा, श्रिया, सुना, विथा, जीवें हीचा, पाना, नितावान, अज्जोर्ग, ज्वारी के लिए।
इसके बच्चे नहीं है।
यह तादर्शी की भी है।
यह सब तबका है।
और सब तमाई हर चीज कर दीजिए।
जिसके आपका जीवन दे जाता हो जाता है।
शर्ण उपाय।
कोई जल्दत नहीं है।
आपको बहुत देख जानकर पढ़ने होगा।
यह कर्यों में संभाव है।
कर्यों का यह लोग है।
उसको साथने कहते है।
मन्याश मन्दम अदयो।
मन्दम।
मन्दभाज्ञा।
और तु ताका भाग के जय है, तो ताका मन्द है।
खराब है।
तो तो भी तो कहां कोई थांचा पूर्ण नहीं हुआ।
एक मास्त्र प्रलावुनाशिमनाशिमनाशिमु देजन न था।
हरे अल्लाह, महरे अल्लाह, महरे अल्लाह प्रशिक्रम। कोई हो चीज़ा है यह आज और शास्त्र सम्रदा, श्री कद्व महाप्ति को देखने साथ पित्तप्रिये और नाम में सर्वशक्ति हुई है।
बगवान का नाम और बगवान पर अलग-अलग है।
जैतः भव्वान संकोर्ण जर्वसक्रिमान है। इतिपतार नाम भी संकोर्ण जर्वकक्रिमान है।
नाम अच्छी ताम गृष्ण चीज़ा यद वलभरिष्यह पुण गुण्धनित्व-मुष्च अवनिष्चा याबनान है।
तब आप भी नहीं हो जाएगा, चेतन में आपको सब खुद है। यह बहुत भारी विज्ञान पर युद्ध सब आत्राशियों को रोक हो जाएगा, यदि आप लोग की करिया सदा होगी।
जैसा देखिये ये लोग के लिए जोड़, माला कर रहे हैं, सबसे माला जप रहे हैं। आप लोग दर्शते हैं कि हम अगर माला जप रहे हैं तो आप इसके लाभी पीछे।
कोई उच्छी नहीं आएगा, बहुत शरण है। बाद ये नहीं है। क्यों? दर्शता है।
इसलिए कहते हैं इन आग भी शीघ्र देखो। जो भी आप भारा जप रहे हैं और जिसके आग भी आपको अधिक्षित है, आपको भी लेवी रहते हैं, तो तो भी थोड़ा भारी देखिए।
बहुत अधिक्षित है। बाकि माला देखिए। ये ताहार पर रेवियो लेखी जाता है। उससे लाज्जा लगी। और माला ले दिया तो बड़ा लगी। क्यों रेवियो लेखी खूँँ क्या। ये ताहार पर माला लेखे खूँ लेकर जी� cứूँ की।
नहीं। वो समस्या हमारा अकुमान हो जाता है। इसलिए प्रेशन माहित आएगा, अगर अकुमान हो है, तो थोड़ा सहांत्र होगा।
इस स्थिनाद भी क्रीडू यह होगा। ऐसा शहंत्रिय जिसे राक्षा ने शुदा शुदा लगाई तो उपर धास है जिसमें पाये जबा में पहला जाते हैं। कुछ बहुतर।
शिक्र नामित धिरा जा सेथा था उत्ते बे शहंतिर। करोर भी सैस्ट्रु, पेर के झर सैस्ट्रु है। कोई सो फूल ले लेता है, कोई सो फल लेता है, कोई भी भी खात जाता है, बच्चू बोल जा रही।
इधि प्रतार जहां तुर हो करते सब समय शीर्ष ही अध्यादा होगी। सब समय हरी पृष्ण हरी पृष्ण पृष्ण हरी राम हरी राम राम।
क्या यूरोकियां से हम लोग सुरियां ज्यादा बोगदुर्श प्रतार का आधे बड़े हैं। उनका तो नहीं चाहिए कि आप राष्ट्रवेश नहीं हमेश्ची उत्तर रच्चवा ही नहीं करते।
अब देखिए यूरोकियां अवेश्च लोग बिल्कुल जो एक कप्रा नहीं पहले ने चलता है एक कप्रा पहले चलते है जब समय उनका जितुले नहीं है भारत पर चलते हैं वो नियुक्त शीषि में राज्ड़ान शीषि में रही जाता है।
कोई का भारत नहीं रहता रही जाता है, कोई परक़ग रहता है तो जरूर कर सकता है, करो कोई उसने. आप कोई नहीं पक्कर सकता है, बहुत परक़ग रहता तैयारत है आज नहीं आपकी थी वो सभी कोई कर सकते हैं। आज जानता अहिंदव तो बघवान कर लें।
सुना दूसरी देना करोण रोजत लिखना अमान ना उँआन बेना छीतन मिनझ आदारू
और छीतन करते, भघ्वान का नाम करते प्रास्थना भघ्वान को जाती जाहते है
ये बव्वार् हमारा धन नहीं है हमको धन देने
हमको अपिम्य हैं हमारा धन देने यह हम प्राची है
यह भाषिर है
क्या भाषिर है जहीं?
ये भर्व जब सत्ते है भव्वाद जगोरधर्मानि कोह गयाये भव्वाद मैं धन भी नहीं चाहता हूँ और धन भी नहीं चाहता हूँ
तो परिज्ञा चाहते हैं आव सुन्दरी सुन भी नहीं चाहता है, जो दृध्या ने चाहते हैं ये सब कोई पर परिज्ञा चाहते है,
क्या चाहते है, मашबध्यन मनिरु जन अनिर्च dualने जब जन्म होता होता वै अ दोस्तीन की नहीं जाहते है,
ये वन्त जानते हैं जहाँ भी ज़रम हो है। बिना कारण से आपका चर्म ये हमारा भक्ति भी रहे है। हाँ।
कोई कारण नहीं। तो बगवाद आपको कुछ मानने को लिया हम बगवाद बनने का चाहिए।
इतनी जीवन जाहिरा जब हम हो जाते हैं।케 की वीवण है तो कमर हो जाती है।...
बगवाद क्या मांगना जाता है? बगवाद नहीं जानते, आपको चाहिए।
बगवाद सब जानते हैं। मांगनी की का हो रही है। फ्रैबर भरुवात श्वे�khाथी।
और चर्वकाम और मोफ़ चाते हैं यानि लोग में मोफ़ चाते हैं वो नहीं हो जाते
अगांम हुं घप्तो इसमें बख्वाय मिथिवा कहते हैं, वो ही हैं
तो क्यों न बग्वाय मिथिवा करेगी
और बग्वाय मिथिवा कंधर ठील युर, कुछ जबर रूपा है
युदि जिसमं है जिसम तक जिसम है,
यालाह ऴलाह बगल
करना है कि अजय को करना है कि अजय को
कि अजय को
कि अजय को
कि अजय को
कि अजय को
कि अजय को
कि अजय को
कि अजय को
कि अजय को
कि अजय को
कि अजय को
कि अजय को
कि अजय को
कि अजय को
कि अजय को
कि अजय को
कि अजय को
कि अजय को
कि अजय को
कि अजय को
कि अजय को
कि अजय को
कि अजय को
कि अजय को
अजय को अजय को
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥ हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥