श्रील प्रभुपाद के हिंदी में प्रवचन  »  720122LE-JAIPUR_Hindi
 
 
 
हरि कथा
जयपुर, 22-जनवरी-1972
 
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भगवान को आश्वादन मिल सकता है, ये सब विचार है, इसलिए भगवान सिखा रहा है, रशो हम अप्षिकोंतिय, प्रभास्मी सुर्ज्य, जदी आप इसको अनुसंधान करें, ये सुर्ज्य का किरन किधर साथ है, तो आप रिशार्च कीजिये ना, जीवन भर रिशार्�
कीजिये, अब फिर जागे रिशार्च कीजिये सुर्ज्य कहां सा है, ऐसा अगर आप उसको रिशार्च करते रहियेगा, तो आगे जा करके देखियेगा, एक कृष्ण, सब काम भूल है, अहं सरवर्ष प्रभवाव, मत्त सरमं प्रभवाव, तो दो किसीन का ज्ञान है, इ
आगे बारे, ब्रह्मा ताक फॉर्चिए, फिर भिरममा कहाँ से आता है, और शूर्ज कहां से आता है, वो शूर्ज नारायन कहाँ से आता है, जाएगे आगे बारे, ब्रह्मा ताक फॉर्चिए, फिर भिरममा कहाँ से आता है, फिर गॉर्बनोदिक शायि विश्णू को प
संकर्षन कहां से आता है ना नारायन से आता है नारायन कहां से आता है इसी प्रगजाई ये आखिरी में जाकर देखिए वाला
इश्वर परव खुश्ण शत्यदानन्द विग्रह अनाधिराधि गोविन्द सर्वकार्वकार
तो आप चाहे खुद रिशाज करते देख लीजिए नहीं तो परंपरा से गुरु का बात मान लीजिए दोनों में आपको ज्ञान हो सकता है
कि जो जो गुरु है परंपरा सार है वह जो कह दिया देखिए कृष्ण शुरु भगवान से लेकिन उदाहरण से यह लोग
हम कह दिया लेकिन भगवान एक है कृष्ण यह लोग मान लिया अब वहां का नाम लेकर मैं नास्ताय खुद बड़ा
देखिए और आगे बर है प्रमाण देखिए तो दोनों तरफ से ज्ञान लाभ होता एक तो आप भोड़ते रहिए जीवन भर
चिरंग विचिन्नन चिरकां सिंता करते हैं भगवान क्या चीज है भगवान क्या चीज है यह रस्ता है ज्ञान लाभ
करने के लिए और एक रास्ता है जो गुरु जो बोल दिया उसका मान लीजिए काम करें जैसे भगवान का कि यह भगवान का बात हम
लोग मान लें तो फिर भगवान को समझने में क्या देर लगता है क्या रिशार का जरूरत है कि केवल समय नष्ट करना भगवान
विष्ण जब बोलते हैं मत्त परतरंग नाश्ति मुझे बढ़कर का परतत्ता है ने तो माल लो काम का दाव भगवान को ढोरने के
लिए वह थिव ऑफिस एसोसिएशन दिस एसोसिएशन बैक एसोसिएशन न जाने क्या-क्या सब बनाया भगवान को ढोर भगवान कैसे
मिलता है कि चिरण विचिन्न अथापिते देव पदांबुजद्ध्यम प्रसाद लेशान गृहित यह वह जानाति तत्तम जिसको भगवान को खोराई
किरपा मिली है वही कुछ भगवान को समझ सकता है हां ना यह मात्मा प्रवचने न लब्भा उपनिशन दे दिए यह जो
आत्मा यह केवल प्रवचन करने से नहीं मिलता है न मेधया और दिमाग बहुत अच्छा रशिम नहीं मिलता है न बहुनास्त्य
ना अब वह बहुत बेदविदार तो पाठ करने भी नहीं मिलता है जमहें वहीं सब बिनितर तेन लब्भा जिसको भवान खिपा करती
है उसको मिलता है भवान खुद भी कहते हैं भक्ता माम विजानाति जावान जच्छा मितत केवल भक्ति से हमको जान सकता है नहीं
आपको युपा है है जिसने सब के लिए विष्य और यह कृष्ण भक्ति कृष्ण भावन्नामृत्त ह्रे-कृष्ण जो प्रचार करना था इसके
ब्रह्म कीजिए और सदल उपाय है
हरे कृष्णा हरे कृष्णा
कृष्णा कृष्णा हरे हरे
हरे राम हरे राम राम राम
Thank you very much
 
 
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥ हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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