श्रील प्रभुपाद के हिंदी में प्रवचन  »  720119LE-JAIPUR_Hindi
 
 
 
हरि कथा
जयपुर, 19-जनवरी-1972
 
यदि आप इसे ट्रांसक्राइब करने की सेवा कर सकते हैं, तो कृपया हमे संपर्क करें या ट्रांसक्रिप्शन्स को यहाँ भेजें - info@vedamrit.in
If you can kindly volunteer to transcribe it, pls contact us or send transcriptions at info@vedamrit.in
 
 
जनिवरे नइचीन्स जाइबोर
ब्राह्मण का सम्मिलन में यह बता रहा है, जो वो धर्म परधर्म है, परा और अपरा, यह जो भौतिक जगर, इसको अपराप्रकिती भगवान ने बताया है, पराप्रकिती और अपराप्रकिती,
आज इस अवरे भगवाद दिता चे,
आलोवेद्या,
भुमी, रप, अनल, बायु, खंग, मनव, धिरेव, अहंकार, अविती, मुझ, भिन्ना, प्रकिती, अस्तधा,
फिर भगवान बताते हैं, अपराइयम, यह जो प्रकिती है, भुमी, जल, अगनी, बायु, आकाश, मन, बुद्धी, अहंकार,
यह निकृष्ट प्रभुती है, जैसा कोई बाजार में आप कोई चीज खरीजने को जाते हैं, उसमें उत्कृष्ट, निकृष्ट विचार करते हैं, कौन चीज अच्छी है, कौन चीज कमी है, तो भगवान खुद बताते हैं, कि यह जो भौतिक जराद, जो की भुमी, य
मठ्ठी, जल, आकाश, अग्नी, तेजो बारिमित बिनिमयम, भागवात में कहते हैं, यह जो भौतिक जराद है, तेजो बारिमित बिनिमयम, मठ्ठी, जल और अग्नी, इनका मिक्ष्चर,
एक मिश्चित बस्तु है, और भगवान कहते हैं, यह अपरायम, यह निकृष्ट्र है, यह जो प्रकीति है, निकृष्ट्र है,
इतस्तु बिद्धि में प्रकीति परा, इसके एलावा आर एक प्रकीति है, वो पराप्रित,
तो इधर सुतु गृष्ट्र भी बताते हैं, कि सबई पुन्शान परोधर्ण, जदो भक्ति अधोप है जीव,
जैसा प्रकीति, अपराप्रकीति और पराप्रकीति है, तो पराप्रकीति कौन है, भगवान कहते है, जीवफूतान महाबाव, जैदम धार्जते जगव,
जो कि दुनिया को धारण करता है, जगव मैं यह सरीर को धारण करता हूँ, सरीर है अपराप्रकीति और मैं जो आत्मवस्तो है पराप्रकीति,
तो आत्मा जी ये प्रकीति है ये पुरुष नहीं है जो लोग भूल से अपने को पुरुष समझता हैं भोकता समझता हैं
कि हम नारायन हैं हम भगमान हैं नहीं ये भ्रम है इसका नाम है माया
क्योंकि प्रकीति कभी फुरुष नहीं हो सकता है जैसा एक आउरत को अगर फुरुष का कपरा पहने दिया जाये
ये तो फुरुष हो गया था तो फुरुष का काम नहीं कर सकता है इसी प्रकार जो प्रकीति है चाय पराप्रकीति है चाय अपराप्रकीति हो
वो भगवान कभी हो नहीं सकता भगवान पुरुष गोविन्दम आदि पुरुषम तमहं भजन
अभी जो हम लोग गीत गाया ब्रह्म संगीता और भगवत गीता में जब अज्जोन भगवत गीता समझ गया
उसमाए भगवान को कहते हैं पुरुषम आद्यम परब्रम्म परंभाम परमं पवित्रं भवाम पुरुषम शहक्षतं आद्यम
तो पुरुष एक मात्र भवा पुरुष का अर्थ होता है भोगता
जो भोग करने वाले हैं और प्रकीति और प्रकीति का आर्थ होता है भोग दिया जिसको भोग किया जाता है उसका रामार प्रकीति का
जाता है इसलिए जो भक्ति जो है यह परधर्म यह प्राखित धर्म नहीं है जो कहते हैं कि ज्ञान बहुत कठीन है और भक्ति सरल है
बास्तविक बात यह भक्ति बड़ा कठीन है
ज्ञान जैसे भगबदीता तो भगबान बता रहे है ज्ञानम सभी ज्ञानम ज्ञान बिना भक्ति नहीं होती
ज्ञानी बास्तविक जो ज्ञानी है वोई भक्ति को समझ सकुँ तेशाम ज्ञानी विशिष्च सकुँ
भगबान खुद कहते है
मनुस्रालाम सहस्येशु कक्षित जतती सीधार में जताताम अभी सिद्धयान आण कुशीत वैग्ति मंतकर में ज्ञानि का
जो स्क्रेष्ट्स है जतताम सिद्धना जो सिद्धी लाभ के हुए एलामर श्यान आझारों में सिद्धी लाभ
करने वाले का भीतर कोई कृष्ण को समझते हैं। इजलिए सुत्र गुष्च्यामी कहते हैं कि सभई पुन्शान परोधर्म जतो भक्तीर अधोख्षजी जिस धर्म का जाधन करने से अधोख्षजी जो भववां, अधोख्षजी का अर्थोता है जो ज्ञान का भी और आगे
अर्थात हमारा जो इंद्रिया है वो इंद्रिया को परिचालना करके जो हमको ज्ञान मिलता है उसको साधारम को ज्ञान कहा जाएँ, mental speculation,
empirical knowledge, experimental knowledge उसको ज्ञान कहा जाएँ।
बहुनान जन्मना मनते ज्ञानोबान मांग प्रबद्धतु, अनेक जन्म, एक जन्म नहीं, जो की mental speculation करते हैं, मनधार्ण में चलते हैं, हमारा मत किये, हमारा मत किये, अलग-अलग मत,
और कोई-कोई कहते हैं जितना मत है वो सब ठीक है।
बाकि ये बात थीज नहीं है। जो वास्तविक ज्ञान है, वो भगबर भग, इचे भगबान कहते हैं बहुनान जन्मनामन, अनेक जन्म-जन्मान पर, ज्ञान की चर्चा करते हैं।
भगवान कृष्ण कहते हैं, हमारा चरण में उस सरनागत हो जाता है। इसका नाम है ज्ञान.
और जब तक भगवान का चरण में इस सरनागत तो नहीं होता है, तब तक समझ जाया वो अज्ञान. उसका अभी ज्ञान पूरा नहीं हो सकी.
वो आपने कहा, मुक्त मानते हैं, मानते, बैकि मुक्त नहीं, शात्य में ही बतातूं जिन्नीरु भिन्नाफ्फ़ विमुक्त मानिम्।
दिल्कृत नारायन में हो गयान. हम भगवान हते हैं। ऐसे तो सबी फिर कोई मान सकते हैं। allen हो गया홤 हम कुछ हो गया।
लेकिन वास्तविक उसको ज्ञान पुरिपत्त नहीं जाता। ज्ञान पुरिपत्त उसके ही है कि shoot बए भगवान का चरण
सब्सक्राइब करके फिर नमरता से प्रणिपाद करके उनकी सेवा करते हैं केवल प्रणिपाद करें प्रणिपाद करें
प्रणिपाद करते हैं प्रणिपाद करते हैं
कहते हैं
जततामपी सिद्ध्याना
कस्चीद वेत्तिमान तत्वता
तत्विध्धी परिपातेना
परिप्रश्नेना सेवरा
उपदक्ष्णती तत्व्याना
ज्यानिना तत्वधुषिना
ताक्तिक
समझ दिखेंगे
जो ज्यानि, जो विद्वा
जो भगवान को ताक्तिक जानते हैं
उनका पास जाता थे
उनका सिश्वत्त ग्रहन करते
भगवान को समझ देखो
मौकां दिलेगा
वो धरोजात फूल दे सकता
वेदेशु दुल्लव
अदुर्लव आथ्वभक्तौ
ये सिद्धांता
वेद विदांता
चिरकाल पढ़ोगे
वो भगवान को नहीं समझ पाए
जदी भक्तका पास जाया जे
उनका चरण में सीध जुखा देओगे
तो वो तुमको
भगवान को ऐसा हाथ से दे देगा
लेवा भगवान
लेवा लोगा
वो दे सकता है
ये भगवान
भगवान की विशेष की पायवं का भक्तकारी
यही भागवात में कहते है
जब उपा अश्वया अश्वया
जदी भगवान का भक्तका
अश्वया ज़हन करे
तो कीरा तो हुनां यो फुरिल नखोक कसा
आभीर सुम्भा जमना खसाल
जनने चो पापा
और रिजितने पापी है। यदि भगवत भक्तता चरण का आश्या ज़रू करे, तो शुद्धनती उशुद्ध हो जाती है। यह भी चाहिए।
शुद्धनती, और साधारन वाद्वि कहेंगे, देखो जी, यह तो अमेरिकान है, और मिलेच्य है, जबल है, इनको सन्नाश दे दिया जाती है।
क्यों नहीं सन्नाश दिया जाती है? वो शुद्ध करने के जो विदिय है, वो शुद्ध करके सभी को दे सकता है।
सब कोई, भगवान के लिए सबका राष्टा खुला है।
भगवान खुद कहते है,
होई ना, कोई पाप ज़निने इसमर जन्ना।
जदी विदी से भगवान का चरण का आश्राय ज़न करता है,
सेदी जानती पराणती, सबका जदी विलाब करेगा।
ये सब सास्य सिद्धन को है।
हमलोग जो ये ही कर लिया था,
जो आगर भगवान को मिल शेत्ता है,
तीये भारत ये कोई मिल शेत्ता है,
और किसी को नहीं मिल शेत्ता है।
ये बार बिंकल धलल आदाया।
भगवान कहते हैं, सबको मिल शेत्ता है,
अपना शीमित बुद्धी से घर में बाईक करके
अपना शीमित बुद्धी से घर में बाईक करके
अपना शीमित बुद्धी से घर में बाईक करके
अपना शीमित बुद्धी से घर में बाईक करके
अपना शीमित बुद्धी से घर में बाईक करके
अपना शीमित बुद्धी से घर में बाईक करके
अपना शीमित बुद्धी से घर में बाईक करके
अपना शीमित बुद्धी से घर में बाईक करके
अपना शीमित बुद्धी से घर में बाईक करके
अपना शीमित बुद्धी से घर में बाईक करके
अपना शीमित बुद्धी से घर में बाईक करके
अपना शीमित बुद्धी से घर में बाईक करके
अपना शीमित बुद्धी से घर में बाईक करके
अपना शीमित बुद्धी से घर में बाईक करके
अपना शीमित बुद्धी से घर में बाईक करके
अपना शीमित बुद्धी से घर में बाईक करके
अपना शीमित बुद्धी से घर में बाईक करके
अपना शीमित बुद्धी से घर में बाईक करके
अपना शीमित बुद्धी से घर में बाईक करके
अपना शीमित बुद्धी से घर में बाईक करके
अपना शीमित बुद्धी से घर में बाईक करके
अपना शीमित बुद्धी से घर में बाईक करके
अपना शीमित बुद्धी से घर में बाईक करके
अपना शीमित बुद्धी से घर में बाईक करके
अपना शीमित बुद्धी से घर में बाईक करके
अपना शीमित बुद्धी से घर में बाईक करके
अपना शीमित बुद्धी से घर में बाईक करके
अपना शीमित बुद्धी से घर में बाईक करके
अपना शीमित बुद्धी से घर में बाईक करके
अपना शीमित बुद्धी से घर में बाईक करके
अपना शीमित बुद्धी से घर में बाईक करके
अपना शीमित बुद्धी से घर में बाईक करके
अपना शीमित बुद्धी से घर में बाईक करके
अपना शीमित बुद्धी से घर में बाईक करके
अपना शीमित बुद्धी से घर में बाईक करके
 
 
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥ हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.