श्रील प्रभुपाद के हिंदी में प्रवचन  »  710201L4-ALLAHABAD--Hindi
 
 
 
हरि कथा
इलाहाबाद, 01-फरवरी-1971
 
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स्वामीर भक्त बिन्न मात्रि बिन्न
अरिशंकीतन चैतन्य महापुरुका वचन
पृतिवीते आठे जतन अगरादिक ग्राम
सर्वत्र प्रचार हैवे मौर्णा
चैतन्य महापुरुका कहना है कि
सारा दुनिया में जितने गाउ है और
जितने अगर है जगा में ये हरिकीतन
प्रचार होना चाहिए और ये हरिकीतन
करने के लिए भारत बाशी का दाइत
है एक पॉलिस पर
चैतन्य महापुरु कहता है कि
भारत भुमिते मनुष्य जन्म हील जात
जन्म शार्थकरी करो परौपकार
ये परौपकार ये जो शंकीर्तन
आंदुलन हम लोग सारा दुनिया में
देने के लिए प्रचत्म कर रहा हूँ
ये ही सरसे बड़ा परौपकार
इससे बड़ा परौपकार कोई है
आजमें सबको ही सोचते हैं कि
देरिद्र का खाने के दो
कि रोगी है उसका हस्पिताल खोल देओ
जो मूर्ख है इसके लिए स्कूल खोल देओ
कॉलेज खोल देओ
बहुत से प्रोग्राम है
बट ये सब जो प्रोग्राम है ताक्तालि
बास्तुविक जीव का जो दुख है वो क्या चीज है समझ लग जाए
वो सरल बंगला भासा में कभी वैश्णाप कभी कहता है
जो कृष्णा भुलिया जीव भोगबांचा करे पासेते माया तारे जापोतिया धर्श
जब जीवात्मा भगबान कृष्ण को भुल जाता है
क्योंकि भगबान और भगबान का अंसर
अंसर अंसर ममी वांख जीव लोकते हैं
जो जीवात्मा जो है भगबान का अंसर शरूप है
और जब ये अंसर भगबान को भुल जाता है
याने अंशी से अलग हो जाता है
तब ही उसका दुख शुरू हो जाता है
जैसा उदारण शरूप भागबत्तेवि बतन है
जो मुखो बाहु रुपा देव्भा
पुरुषक्षा आश्रमैशः चत्तार जग्गिरे वर्णा विप्रादय पृथक गुनाम
तो ये तो भगबान का विराच शरीर
समझ दीजिए
उसका ब्राम्हन जहाँ वो भगबान का मुखारमिन्द है
चत्री जहाँ वो भगबान का बाहु है
और बैश्व जहाँ भगबान का उदर है
और सूध्र जहाँ भगबान का पायर है
तो ऐसी बात नहीं कि
पायर का ज़्यादा मर्ज़्यता है
कम मर्ज़्यता है और मुखारमिन्द का ज़्यादा मर्ज़्यता है
देथे आपका हिसार से
हिसाप जा जाए तो हाथ है पायर है और मुखार वृद्ध भी है तो हाथ पायर कट देने से आदमि कोई तरह से जी जाता है
क्योंकि जी मुखारविंद्र है इसको काट देने से फिर ख़तम हो गया, फिर तो ख़तम हो गया, क्योंकि आजकाल का जी दुनिया है, ये जी बात्मसभ है, जो ज्यादा तर से सूद्र है, कलोग सूद्र सम्मवा है,
और छत्री भी कम है, और ब्राह्मण भी कम है, गुनगतव विचार से, चातुद बन्नमयाज, सिष्टम गुनकान्म विभागत,
इसलिए दुनिया में कुछ ब्राह्मण का जरूरत है, तभी शांति हर्देशा, एक शरीर है, उसका अगर ये मूर काट के फेग दिया जाये, तो वो शरीर का किस काम का है, कुछ दाम नहीं, मुर्दा है,
और फास्तम भी कहता है,
तो अगर मनुष्ट्र समाज है, उसको चार विभाजन होना चाहिए, जैसे भगवान कहते हैं,
और जदी ब्राह्मण नहीं है, चत्री है नहीं, केबल शुद्र है, वैश्य है, तो फिर क्या चलेगा,
तु इसलिए दुनिया में सब कोई शांति चाहते हैं, और शुक चाहते हैं, बाके शुक शांति का जो उपाय है वो नहीं जानते,
शुक शांति का तो उपाय है, भगवान जैसे बताते हैं,
तो आदमी को समझाना है जदी आप शांति चाहते हैं तो ये तीन चीज आप माल ले
क्या चीज है ये भगवान जो है वो सब चीज का मालित है
और भगवान ये एक मात्र भोगता एंजाए और भगवान ये एक मात्र सब के सुरीत
सब के शुक देने वाला भगवान है ये तीन चीज जदी कोई समझ जाए
तो उसको शांति मिल सकती है और नहीं तो नहीं कोई शांति का बात भी न कित
और चैतन्य महापूर्व कहते हैं कृष्ण भक्त निष्काम अतवेव सांत। भुक्ति मुक्ति सिद्धि कामि सकलियो सांत।
भुक्ति क्या चीजा है भोग। जो कि हमारा बीमार है दुनिया वाले। केबल भोग करने तो चाहिए।
सब कोई कृष्ण भुलिया जीव भोग बन चाहिए। पासे ते माया तारे जापडिया था।
तो कर्मी जो है भुक्ति केबल भोग चाहिए। दिन बार परिष्ट्रम करते हैं। काईन नहीं है बिल्कुल।
इसलिए एक परिष्ट्रम करते है जानता है ही नहीं। इसलिए भगवान करते हैं मूढा गधा।
नमांग दुषकितर्ना मूढा प्रपद्धन्ते नराधं।
मनुष्य जीवन है भगवान को प्राप्त करने के लिए भगवान से संपर्क कर स्थापन करने के लिए केवल दिन भर
परिश्रम करके रुपयाई रुपया रुपयाई रुपयाई लाओ रुपया लाओ रुपया
King को करते है मूला मूला का हिक्रिया अर्थ होता है जी कथिन गधा गधा होते
क्या? वो धोबी का खोब कप्रा लाद्य है, ताकि एक काप्रा भी उसका नहीं है। वो केबल काप्रा लाद लाद करें, केबल परिश्वम करता है दिन भर, और साम को उसको थोड़ा अच्छा घाज दिया जाता है बच्चन तो इसमें।
और रिशाब देव भी अपने फुत्र का यह सब उपदेश दिया था।
नायं देह देह भाजांग लिलोके कस्तान कामान अरहति भीर भुजांग जी।
जो यह तो शुवर कुकर जो है वो भी तो दिन भर केबल परिश्वम करके कस्तान कामान अरहति बहुत कस्त करके थोड़ा काम परिश्वम करके थोड़ा इंद्र तत्पन कर लेता है।
यह ऐसे मनुष्य जीवन नहीं होना चाहिए।
आजकाल मनुष्य society में यह तो हर सारा दुनिया घूम करके देख लिया है।
वो लोग विचारी सब परिशान हो गया और वो इतना परिश्वम करने को नहीं चाहते है।
वो देखता है जो परिश्वम करके हमको लाभ क्या होता है।
यह हमारे बहुत सिष्ट्र इधर मौजूत है। उनके पिताजी सब बहुत भारी आदमी है। बड़े आदमी है।
क्योंकि वो देखता है जो हमारे पिताजी पैसे तो कुछ कमाया।
बाकि सोने का भगा तो फील चाहिए। स्लीपिंग फील। नहीं तो उसको निद्रा नहीं होता।
तो यह जो अभवतिक सभ्यता है केवल गधा के ऐसे, सुवर के ऐसे, तुत्ता के ऐसे परिश्वम करना यह वास्तविक जीवन नहीं है।
वास्तविक जीवन है तपो दिव्बम् पुत्र का । भगबान का प्रात्त करने के लिए तपस्था करो। यह मनस्य जीवन है।
तो यह तपस्था करने के लिए जोज्ञता कलि जुग में है नहीं। मंदाशु मन्दमतयू मंदभाग्याशु बद्दृ सद्द।
कौन तबस्त करेगा
इसलिए चैतन महापुर्भो
पतित्पावन
कुलि जुग में
अवतार होकर के
बहुत सरल उपाय बता दिया है
वो ची जाई है
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे
हरे राम हरे राम राम राम हरे
चैतन महापुर्भो कहते हैं
ये या है ते सर्वो शिद्धी है वे तमा
कुली काले नाम बिना गोती नहीं है
तो ये नाम का महात्मा जो है
इसका प्रमान
फोड़ा है
पास चात्त देश में
पर ये अथी तरह से
केबल देखिए ये जो
नवजवान
अज्जुवती लोग आपको सामने साथ
प्रस्तुत है
चार बरस पहले
हमारा हिसाब से वो सभी
वैविचारी थे
क्योंकि उसको बच्पन से ही
सिखाया जाता है
चराप पियो अवैद स्री संग करो
और
मांस तुमका रोजाना का वैपार है
उदा तो ऐसा समझे जाता है
जो बच्चे को अगर मांस का टुकडा
और पाउडर
इसको नहीं खिलाया जाये तो यो तो मर जाए
जैसे जसदामाई समझते हैं
कि कृष्णों का अगर मक्खन नहीं दिया जाये
तो वैविचारी तो मर जाए
वो लोग समझते हैं
यो जो मांस
यो जो
मांस को
जो पाउडर है
इसको इनको नहीं खिला जाये
सो शुरू से उसको कहने का मतलब है
शुरू से उको मांस खिलाया जाता है
फिर आश्चास्पे
जैसा दस बाड़ा बरस वा
वो सिगरेट
और और और सब जितना निशा के चीज है
आगे जाखे आजकल गहां जहां जो भी पीता है सब कुछ
बड़े कंफ्यूस हो गया
वो कहते हैं जो हम लोग के नहीं चाहते हैं कैसे हो जाए
अब जानते हैं बहुत सब ही पी हो गया
तो ये परिनिती है
जो हराब भक्तस्य कुतो महद गुना
मनो रते नासतो धाबतो
जिसका बच भगोग भक्ती है नहीं
उसका कीमत कुछ है नहीं
वो बेकार है
उसका जीवन बेकार है
उसका कोच दाम नहीं है
ये सिद्दान पर
क्योंकि
जैसा पहले आपको बोला
जो अंसांसी भाव है जो जैसा ब्राह्मन छत्री वैस्ता मुखारविन्दा हस्ता और पैर और जानाम उदर तो ये जो हमारा शरीर का अंग है ये देखिये अभी हम बोल रहा हो हाथ भी हमारा काम कर रहा है
ये हाथ का healthy state है this is the healthy state when it moves according to my desire तो ये अंसी का काम है जो जैसा मैं इच्छा कर रहा हूँ उसी मकत उसी समय आवारा हाथ हिल्दा है कमी उपर जाहे नीचे रहा है ये इनका healthy state है शास्तो चित और मैं इच्छा करना हूँ जो हमारा अंगली थोड़ा उपर में है वो आ नहीं सक
दिखा नहीं सकता है तु वो उसका healthy state नहीं है इसी प्रकार भगवान का अंस जीव है जब भगवान को
सेवा नहीं करता है तु वो समझ दीजिए disease वो इसका नाम है माया जब तक भगवान का सेवा में निजुक्त
� yes? तर तक उसमजीय माया का फ्रेद में है, जी भागबुत का तो शिद्धान तो है, मुक्ति का अर्थो था क्या, मुक्ति शरुपेन अवस्थिति, सिर्थ्याँ抓्णथा रूपम सरुपेन अवस्थिति, उसका
मुक्ति के लिए कोई विशेष चेष्टा करने की ज़रूरत नहीं है
क्योंकि जो भक्तों होते हैं उसको मुक्ति हाथ जोड के सेवा करने के लिए प्रस्तुत
मुक्ति मुकुली तान्जली सेवते अस्माह
तो भक्तों के लिए मुक्ति कोई जाड़ा बात नहीं है
जैसे चैत्रिन महापुर कहते है जन्मनी जन्मनी सरी भवताद भक्ति रही ततीत रही
तो जन्म हुआ तो मुक्त तो नहीं हुआ परन्तु मुक्त होने का जरूरत क्या है
जो भगबान की सेवा में निजुक्त है वो तो तीन हजार परस पहले ही वो मुक्त हो गया है
भगबान खुद कहते है
मान चब्बय विचारिनी भक्ति जोगिन ज़थ सेवते सगुनान समती तहीतान ब्रह्म भूयाय तल
उसको ब्रह्मानु पूती उसी वगत हो जाता है

उसको ब्रामणता
ब्रम् जानाती थी ब्रामण
जो भगवत भक्त है
उसको ब्रामणता बहुत पैले ही
लाब हो जाता है
जो बृष्णात है
वह ब्रामणता
बहुत पूर्व से ही उसको लाभ होगी, जब ब्रह्म ज्ञाना तीति प्रांबाना, अब भगवान कहते हैं ब्रह्म भूयाय कलबत, ब्रह्म ज्ञान, अहंग ब्रह्मास्मी उसको सब ज्ञान हो जाते हैं, तीसलिए बास्तवेद, मनुष्टर को सुती करने के लिए, जदी क
शामत, उसको कामना ही कुछ है, क्यों कामना, जिसका भगवान से संपर्क हो जाये, उसको कामना की जरूरत क्या है, जैसे चोटा लेरका, वो अपना पिताजी का आश्चाय में जदी रहता है, फिर उसको मांगने का क्या जरूरत है, पिताजी सब जानते हैं, इसको किस समय �
वो भगवान उसका चार्ज ले देता है, इस देशास्तर कहते हैं, तस्चैवहेता प्रजतेत कोविदा नलभते जद भ्रमता मुकर योद, उस तीज के लिए जीवन में चेष्टा करनी चाहिए, जो के साग, चाहिए सर्गलोक में जाये, ब्रह्मलोक में जाये, नरकलोक मे
हाँ, और यदि बोलें जो आप, मैं सब छोड़ता हैं करें, भगवत भक्ति के लिए, सब छोड़ने का कोई बाती नहीं, ये मुर्ख होता है
और जोन भगवत गीता समझने का पहले भी लड़ाई करने वाला
और भगवत गीता समझ करके भी लड़ाई करने वाला
छोड़ने का क्या भात है
तो केवल उसका consciousness change हो गया
उसको पहले विचार था
कि हम अपना ये सब भाई को और दादा को इसको मार देंगे
तो ऐसा राज लेके हमारा फाइदा क्या है
कृष्णा हम लड़ाई नहीं करेंगे
बैठ गया
कृष्णा उनको समझाया भगवत गीता
और भगवत गीता समझ करके फिर कृष्णा पोच रहा है
जो अर्जुन अब तुम्हारा क्या विचार है
लड़ाई करना है नहीं इदर से भग जाना है
अर्जुन कहा थे
यह है कृष्ण कांसर
जो हम लोग जो सब विचार करके रख दिया है
वो सब विचार सब फेक दे करके
केवल कृष्ण का संतोष करने के लिए जो विचार है
उसी में हमको शुक मिल सकता
जैसे गोपिलो
उनका और कोई विचार नहीं है
एक मात्र किस तरह से भगवान कृष्ण संतोष लाओ
एही विचार
चैतन्य महापुरु का भी एही विचार
केवल भगवत भक्ति
न धनंग न जनंग न सुन्दरिंग कवितांग वा जगदीश कामय
ये सब कुछ नहीं मामता
तो होई तो कि भक्ति
भगवान से कुछ लाब करने की नहीं
जिये भगवान को खरा करके
कुछ पैसा ऐसा रुजकार करके
अपना पेट पालन करे
नहीं वो भक्ति नहीं
वो शुद्धा भक्ति नहीं
वो है वो भी
अजुस्कि कहा भगवान कहता है सुकृति नार्जम उसको पुर्णवान कहा जाता है बर्यंतु जो सुद्ध भक्त है वो अन्नाविलासिता सुन्नम ज्ञानकर्माद अनाव्रितम आनुकृलेन कृष्णानुशिलनम भक्ति वृत्तमान
ये वृत्तम भक्त केवल भगवान का अनुशिलन अनुशिलन का अर्थवा रुपगोष्ट्रामी बताया है जो काई परिश्वम करने चाहिए
सब जागा भगवान क्या चाहते है उसको सोचना चाहिए तो भगवान जो चाहते है वो तो साथ में खुली हुए आता है
भगवान करते हैं सर्वधर्माण पृत्तर्यमामेकं सरणंग व्रजन तो इस काम को जो करते हैं जो और दुसरे को समझाते
हैं चीब आई कृष्ण भजन करो वह भगवान के रिप्रेजेंटेटिव हो गया है कि भगवान जो चाहते हैं वही बातों बोलते हैं
कुछ दूसरा बात है, हंट शांड इदर उदर नहीं बोलता है। कृष्ण बोलता है, हमको भजन करो। और भगवान बोलता है, भक्त बोलता है, कृष्ण को भजन करो। इसलिए भगवान को भक्त वत्तन तो प्रिय है। नचत अस्मान मनुष्य सुकष्चित में प्रिय कित
जा, तारो यही देखिए। जारे दाखो तारे कहो कृष्ण ऊपर देखिए। यह तो भागवास्तिय कत्तब्ब है। क्यों हम लोग छोड़ करके बैठे हैं। यह विचित नहीं है। इसलिए यह जो कृष्ण कांशस्नेस मुवमेंड हम लोग शुरू किया है। आप लो�
और यदि कृष्ण भजान और इधर उधर का बाते सा हो उसको मिक्स्टर करके तो उसमें कुछ फायदा नहीं है। जो लोग कहते हैं जो कृष्ण नाम लेओ और काली नाम लेओ, दुद्धा नाम लेओ सभी यह की है। नहीं। हरेर नाम, हरेर नाम इवकेवन। शास्त्र
और किसी का नहीं। सवनम केतनं विष्ण, स्मरनं पादसेवनं, अच्छनं बंदनं दात्तं, सक्षं मात्मनिद्ध। यह नवदावकृत। बघवान खुद कहते हैं कामस्तस्त हितज्ञान जजन्ते अन्य देवतं। अन्तवत्तु फलंतेशां तद भवती अल्पमेद्र
यह अंदोलान है। आप लोग सब इसमें शाहव जक्ति भी। आपका मंगल होगा, दुनिया का मंगल होगा। धन्यवाद बहुत बहुत बहुत।
आपका मंगल होगा, दुनिया कामस्त सब इसमें जजन्ते अल्पमेद्र जजन्ते अल्पमेद्र जजन्ते।
 
 
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