श्रील प्रभुपाद के हिंदी में प्रवचन  »  701230LE-SURAT--Hindi
 
 
 
हरि कथा
सूरत, 30-दिसंबर-1970
 
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हरेद्रुष्चाँ। तर्ज़णा मात्रिदिन्दः। पाष्यात्पदेश्में हरीजान्चीतां आंदलां हैं।
उतका अभिषा हैं। आपको हांखेब में पुछ्मा गळणा जाता।
तर्ज़णा मात्रिदिन्दः।
मात्रा चालिशुप्या था।
मुझे मालॉम नहीं था, कैसा अमेरिका साहर में राना हैं।
और कहां जाना हैं, एक मित्र का पुत्रा गोपा हलागर्वार्ड।
वो बट्लार्ण में राता था, वो आम को निमंत्रन दिया था।
उसका बार में पूछा, पिछ बार, नियॉर्ट से कोई एक हजार मायल दून में।
उधर दस्पंदरा रोज सहर करके फिर नियॉर्ट में आया।
नियॉर्ट में एक वरस सहर, कभी इदर कभी इदर भुमते फिरते रहा।
एक अम्रा लिया, जिसका साथ सूरुप्या किराया, उदर से भी अमाना सब कीट छोरी हो गया।
ऐसे करते-करते, उनिस्टर पेसेत साल में, ये International Society for Krishna Conscious में।
यहने क्रिष्णभ्भक्ति रस्वाभुताव्नति संगा, इसका नियॉर्ट का धर्म कानुन का अनुसात रेजिस्टर किया।
फिर उदर नियॉर्ट में, एक टॉमकिन्सन स्वार, बगीचा है, उदर साम को बैट के रविभान में,
हरे क्रिष्णा, हरे क्रिष्णा, क्रिष्णा, क्रिष्णा, हरे हरे, हरे राम, हरे राम, राम, राम, हरे हरे।
यह मंत्र का है, कीट करने के सूरू कर दिया, आत्पे आत्पे ये नवजवान लोग, ये साब हमको खेल लिया,
और कुछ दिन बात, कुछ हमारे, कोई दस बारा नवजवान हमारा चेला बन गया, उचको खुव अच्छी परेशि शिखाया,
और पहले ब्रान्च, थाखा, प्रान्प्रार्शित को जाखे खोला, उसको परस्चात मौन्स्रियल में,
उसका बार्स्टान, बाफेलो, इस दुकार करते-करते, उनिस्टा सब्सर्षाल में, हमारा तवियात को थराब हो घया,
फिर हम इंडिया में, भारत में लाउट के आया, और सव मायना रहन का पस्चात,
फिर उनिस्टा सब्सर्षाल में, मैं सांप्रार्शित को में लोड जिया, जाखा करके फिर आंडलन सूरू किया,
और उनिस्टा सब्सर्षाल में, और आगच सब्सर्षाल में, हमारा 42 केंदर खूल जिया थारा दुनिया में,
हाली अमेरिका में नहीं, इंगलेंड में, और फ्रान्स में, जर्मनी में, फिर उसको बाद अस्टिलिया में, जापान में,
ऐसी अभि हम लोका 45 शेत्र है वर्तमा, यहने चार बरस का 48 मायना का अभिता 45 शेत्र खुला है,
यहने मायना में एक-एक खेत्र खुला है, तो कहने का मतलब ही है, जो पास्थात्तो देश में भौतिक सब्वता का खूल देख लिया, वो भौतिक सब्वता का जो असल अनन्द है, लूप्या और आवरत, यह उसाब खूब भुग लिया, अब भगवान को चाते हैं,
जेशा ब्रमसुट्र विदान्त सुट्र में कहते है, जि दुन्या का भौक करने का पस्था जीव का एक आग्ड्र होता है, उस जिसका नाम है ब्रमजिज्याशा,
अथातो ब्रमजिज्याशा, जीव कभी भोतिक आराम से आनन्द लाव नहीं कर सकेगा, उसको ब्रमानन्द चाहिए, इसलिए भोतिक आनन्द का पस्थात, वो ब्रमविशा में जिज्याशु होते है,
ब्रमजिज्याशा, विदान्त सुत्र में इसलिए कहते है अथातो ब्रमजिज्याशा, फिर उसका उत्तर है, ब्रमवश्त क्या थीज है, जन्मा अदस्त जता हा, जहां से सब जीश का जन्म होता है, वो परभ्रमव भ्भग्भाण सी क्रिष्ना है,
जेश भगभत जिता में भगभाण सयं करते है, अहं सर्मस्त प्रभभ, मत्त सर्मं प्रभत्ते, इति मत्या भजंते मां भूधा भाव सपण्निता,
जो भभभाण सी क्रिष्ना का जानते है, मूल पुरूश, इशरा, परम क्रिष्ना, सत्तिदा अनंद वीग्रह, अनादी रादी भोविन्द, सर्वकार्ण कारण,
जो भभभाण सी क्रिष्ना का चर्णारविन्द में अपने को समत्रित कर देता है, वो नाम जन्म नामन्ते,
एक ही जर्म में, कई एक बरश में, ज़री चेटन महापुर्व का वो जो पंथा है, उसको अबलम्मन करें, तो एक ही जिवन में भभभाण सी क्रिष्ना को समझ पाएंगें,
सी क्रिष्ना चेटन प्रहुनित्ता अनन्द, प्रेंग भगवान सी क्रिष्ना भगवत भख्त रूपे, चेटन रूपे आविद भूथ हो करके, क्रिष्ना भख्ती किष्प का अभलम्मन क्या जाता है, उसका क्रियात्मग भार्थे हम लोको शिखाया,
आप लोक से निवदन है, कि चेटन महापुर के प्रवर्ति तक वाथ है, कि हरे नाम, हरे नाम, हरे नाम एवके वलम,
चेटन महापुर का प्रवर्ति का अर्था, ये साथ में है, चेटन महापुर वो आचाज रूप से हम लोको शिखाया,
आज से 500 बरस पहले, चेटन महापुर वो बंगला देश नवद देव, जिला में आविदूत हो करके,
ये हरे क्रष्णा मंत्रा, पारा भार्द नश्मे प्रचलिप किया था,
आपका इदर, दक्षिन भारत में तुकाराम, ये भी चेटन महापुर को स्थीष रते,
ये भी हरेर नाम का हो प्रचार किया, इसी प्रकार, प्रत्पेक प्रदेश में हरे क्रष्णा मंत्र का प्रचार बहूल है,
आप लोक साथ जानते है, आपका देश में भी है, यही कलिजॉग का शादन है, सब कोई जैशा अबस्था में रहें,
चाहि ग्रियस्तो होए, चाहि सम्नाशोए, चाहि ब्रामन होए, चाहि सुद्रो होए, सब अपना घर बरेके की,
एकते इस मंदिर में और कहीं मिनित हो करके, आप लोक साथ केवल बोलिये,
हरे क्रिष्णा बोलिये, हरे क्रिष्णा, हरे क्रिष्णा,
क्रिष्णा, क्रिष्णा, हरे हरे, रामा,
हरे रामा, हरे रामा, रामा रामा,
हरे हरे, हरे क्रिष्णा, हरे क्रिष्णा,
क्रिष्णा, क्रिष्णा, हरे हरे, हरे रामा,
हरे रामा, हरे रामा, रामा रामा,
हरे हरे, हरे हरे,
इस विशाइ में आर्वी एक आपको पामने निविदम करना चाता हूं,
चेटन महापुर्द का इच्छा प्रकच किया है,
प्रिछीविते आथे जाता नगरादि ग्राम,
सर्वत्र प्रचार है वे मौरना,
जन्म शार्थ सक्करी करो परोपका,
चेटन महापुर्द का नहीं है,
जो भारद भून में जिसका मनुस्त जन्म हुआ है,
ये हरे किष्ण मंत्रा जपा करके अपना जीवन का सपल करे,
और उसको पस्चात सम देख में जाकर के परोपकार करे,
ये नाम चेटन से इससाप पर सुख होगा,
तो अभी तक मैंने अकेले कुछ थोड़ा वो जब कौशिष किया है,
और उसका बात यह हमरा अमेरिकान येरोपेंग,
तीष्छ लोक को शिखा कर के सारा दुन्या में थोड़ा थोड़ा प्रचार कर रहा हो,
आप लोक नव जवान यह है इस आंदल में जोगदान करेंगे,
तो सारा दुन्या में जैसे चेटन महाँभुर की इच्छा थी,
एक-एक गाव में, एक-एक शहर में ये हरे कृष्षा मंतर का आंदलन हो सकता है,
इसलिए मैं इदर यह मिटिंग में, जो सबा में जो उत्छाई नवजुप पर उपस्तित है,
उत्छा में निवदं कर सकता हुआ, कि आप लोक आये यह अंदल में सब साजोप कीजे,
सारा दुन्या में सूप्षार्थी यह हरे कृष्षा मंतर डालाए ला सकेगे,
हरे नित्रुष्णा, थाइंगे वेरे वार्व,
 
 
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥ हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
 
 
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