श्रील प्रभुपाद के हिंदी में प्रवचन  »  701205LE-INDORE [Hindi]
 
 
 
हरि कथा
इंदौर, 05-दिसंबर-1970
 
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पूर्ण सुद्ध निक्त मुक्ता अभिन्नत्यात नामनाव
नाम चिंता मनि कृष्णा चैतन्या रशविग्रह पूर्ण सुद्ध निक्त मुक्ता अभिन्नत्यात नामनाव
बगवान का नाम
और भगवान अभिन्नत्यात नामनाव
कैसे इदर में भोति जगत में नाम और बस्तु अलग होता है
जैसा आप प्यास हैं जल बस्तु चाहिए आप
और जदी आप केवल जल का नाम लेंगे जल जल जल जल
तो आपको प्यास नहीं होगा
क्यों ये दैत्य जगत हो
जल अच्छीज है और जल का नाम हो और एक तुमने
और भगवान बस्तु
अद्दाये 20 है
अद्दायित
भगवान,भगवान का नाम
भगवान का रोक
भगवान की मीला
इत्यादी
सब एक है
केना
क मैं समझिए कि अभी आप मृत्र समझ पूर्ष रहा था बिज का नाम में आक्षा नहीं है वक्त क्या भगवान
सब्सक्राइब कि गॉब्स नाम ने अक्षा नहीं है है तो यह जो प्रवश्चन है यह कोई विद्धवान का
प्रकुछने नहीं है। क्यवंकि भगबान का नाम और भगबान अलग नहीं होता है। जदी भगबान में ऐसा है,
तो भगबान का नाम में ज़रूर आप्शा होंगा। क्याकि जब-जतक वह अद्रॏ, झयाँ, इक्कतर है, नहीं पहुंचा
नहीं पहुंचते हो गये, तब तक उसको दैत्र दर्शन होगी। केबल अद्योतवादी होने से नहीं हो गये, अनुभव करना क्या है?
क्यों सत्वं ख्लिदं बृह्म। सभी बृह्म है, तो भगबान का नाम भगबान से आलग कैसे होगी. तो नाम भी बृह्म है।
नाम चिंता वनि कृष्णा जो और ये जो भगवान का नाम है ये स्थ्यां कृष्ण है। नाम चिंता वनि कृष्णा चैतन्न चैतन वस्तु जड़ वस्तु नहीं है।
चैतन्न रसविज्ञव और सब रस का आधार है रसोवा ही साथ। नाम करते करते नाम करने के लिए कई सर होता है। पहले नाम को अपराज जुखत होता है।
हैबी एक मित्र से बात शुक्ता रहा था नाम अपराज। नाम को अगर कोई शुभक्य या
प्रशाम्मकल्य शाम्मस्तुभक्यामति प्रमाण जो नाम करके मैं कुछ भौतिक नाम उठाया कि अपुराध है।
भौगवान शेववस्तु है। भौगवान को अपना शेवा में आप नहीं लगा सकते हैं...,
यह जो हमारा धर्म का अबनति हुई है। उसका क्या कारण है। भौगवान शेववस्तु को अपना काम में लगा करता है Cultural.
भगवत भक्ति करके दुनिया का कुछ लाभ उठाने चाहता है। और आखिरी में कुछ नहीं तो मुक्ति चाहता है। वो भी एक लाभ उठाना है।
जो चाहते है कुछ उसके लिए भगवत भक्ति नहीं। कर्म्मि वो भी चाहते है। ज्ञानी वो भी चाहते है। जो भी वो भी चाहते है। कुछ महान है।
कर्मी लोग चाहते हैं, हमको दुनिया सब मिल जाए। दुनिया को जितना धंदवलत है, सब हमको मिल जाए। हम खोब भोब करें।
और ज्ञानी जो देख रहा है कि दुनिया में भोब में कुछ है नहीं। ब्रह्म शत्यवस्तु है, तो मैं ब्रह्म बन जाओ।
तुहों भी एक मान है। ये दुनिया में चाहते प्रामिनिस्टर बन जाया। और वो चाहते भगबान बन जाया।
उनका मान और बहुत ज्यादा है। ये तो बिचारी गरीव है प्रामिनिस्टर हो जाया, ये बिदला हो जाया तो संतोष हो।
वो चाहता है मैं खोद भगवान हो जाएं, लक्ष्मी पति, हजारों लक्ष्मी हमारी सेवा में लगाएं, देखिए, असल में वो चाहता है, और जोड़ी वो सिद्धी चाहते हैं, अनिमा, लगिमा, प्राप्ती, इत्यादी, छोटे से छोटे हो जाएं, बड़े से बड़े
तो वो भी चाहते हैं, तो क़जमी, य्यागि, जोगी, जितने हैं, ये साब मांगने वाला हैं
इसलिए चैतन लोग चैताम में तो मैं कहते हूँ, भूक्ति, मुक्ति, सिद्धि, कानि, सक्रली और सांत।
चाहे कर्मी होए, चाहे ज्ञानी होए, चाहे योगी होए, ये सब असांत हैं।
क्यों? इसका मान है।
और कृष्ण भप्त निष्का अतयेव सांत। जो कृष्ण का भप्त होता है, वो सांत है।
क्यों? उसका कुछ मान नहीं है। तो कृष्ण इसका कुछ मानता ही है।
क्योंकि चैतन महाभू कहते हैं, न धनाव न जनाव न सुन्दरीव कवितांव जगदीश कांव।
भेज जगदीश मैं धन नहीं चाहता। और बहुत आदमी हमारा पीछे पीछे आया है।
लीडर। हम लीडर भी नहीं मानने को चाहता। न धनाव नजनव न सुन्दरीव कवितां।
यही दुनिया में सब कोई चाहते हैं अच्छा स्ट्री मिल जाए, बौत रुपिया मिल जाए और बहुत आदमी हमको हुजूर हुजूर करें
यही चाहते हैं दुनिया में, ताल कि कृष्णवस्थ्य है वह यह सब नहीं चाहते हैं
ई राधि कृष्ण वक्त जहार वह यह सब नहीं चाहते हैं देखिए इसलिए हम वह निष्काम है
निष्काम तो वही कृष्ण वक्त है कोई दिन है कृष्ण वक्त का � Nemesha लेकिन यह कृष्ण वक्त केतन महाप्रूभ
स्थिति कहा?
ममो जण मनी जण मनी सरे भवता धुख्षी रही तपी तपी
जण मनी जण मनी का? action क्या होता है?
अकर मुक्त हो गिया तो फिर जण में कहा?
मुक्ति भी नहीं चाहिए
जो कृष्ण भक्त है जियो मानापा गृण्धन
मुक्ति को मुक्ति को मुक्ति को मुक्ति ले ले ले ले ले ले ले ले ले ले ले ले ले ले ले ले ले ले ले ले ले ले ले ले ले ले ले ले ले ले ले ले ले ले ले ले ले ले ले ले ले ले ले ले ले ले ले ले ले ले ले ले ले ले ले ले ले ले ले ले ले ले ले
जदी आप शांति चाहते हैं तो उसी धर्म का अवलम्बन कीजिए वो क्या चीज़ है जतो भक्ति रधोक्ष जेव तबई पुंच पर वो धर्म जतो भक्ति रधोक्ष जेव
है था कि मैंने कर दो थे सब घृत्याय धर्म से कोई मतलब नहीं है तिंग्रिवं पिढ़ने से कोई मतलब नहीं है और
वतने धर्म है यह डर्मेंट आप हमें कोई मतलब नहीं है कि जड़ि हम देखेंगे कि क्रिप्रो धर्म में हिंदू धर्म में
भगवत भक्षी जाग गतो होती है तब वो ठीक है और ने तो बेकार है सब धर्म बेकार है इसलिए भगवान कहते है सर्वधर्मान परिक्तन सब धर्म बेकार है जिसमें भगवत भक्षी होई
है कि कुछ काम करने को पर भगवान थे दर्म सब स्थापना था और दर्म का सोच सब्सक्राइब करने की लिए
है मैं समय वहां से गांवी फुट है फिर कटे सर्वधर्मान परिक्तन है तो भगवान का यह काम में है कि हिंदुधर्म
धर्म फाकित करने के लिए कृष्णा आया था। मुसलमान धर्म फाकित करने के लिए आया था। नहीं यह
धर्म नहीं है, धर्म तो अगर भवार ह deflectاؤ तब बेकार है। हमारे दिनों कहना का नहीं है।
जीवन भार धर्म ज्यादन किया और आखिर भगवान को समझाया भगत भक्ति नहीं हुई तो शास्त्र कहते हैं समय वही केवल
केवल प्रम हुआ परिश्रमित उसका लाभ हुआ तो इस लाभ नहीं हुआ धर्मस्थान स्थितप्रंश विश्वक्षेन कफासिजा नोटपालयत रचेंज़वी समय वही केवल हुआ
हुआ था सदी ताकि तो आपका साथ यही साथ लीजिए वेद शास्त्र का अब ही के आप एवं
वेदांत करते हैं पेटन अंत पे हमें बनेंगे आई है और स्काल ऑन जाऊं अंत मिग्रान है जो ध्यान है इसका नाम
उत्तर भेदान ज्ञान तो अनेक प्रतार होता है चोडि करें और ग्ञान है। बिना ग्ञान से कोई खुशियार
चोड भी नहीं हो सकते। पकड़ा जाता है. तो ग्ञान अनेक प्रतार का है। अकशन
वो भगवत ज्ञान हो। इसलिए भगवान खुद कहता है बहुनाम जन्मनाम अंते। अनेक जन्म परिष्ट्रम करते हैं। ज्ञान ज्ञो कर्म का साधन करते हैं।
जब उसको बुद्धि पक्की हो जाती है, ज्ञानमा, बुद्धिमा, वाइब, उस समय भगवान में प्रपक्ति जाती है।
बाशुदेव सार्वनित। वो भगवान कौन है वो? भगवान कृष्ण बाशुदेव, ओम् नमो भगवत विबाशुदेवा है।
बाशिदेव का अर्थ होता है कृष्णा, सिदर सामे उनका ठीका में बता है कृष्णा है, बाशिदेव है और कृष्णा है, तो जब ये परिस्थिति में आदमी पहुँचे हैं कि भगवान कृष्णा ये असल चीज़ है, मूल बस्त, जैसे भगवान खुद कहते हैं,
अहं सर्वस्त प्रभव, हमसे सब कुछ हो, जितना देवता आया, बर्माशीद, नारायन, वित्नो इत्यादि, और मनुष्यो, पशु इत्यादि, सब, अहं सर्वस्त प्रभव, मत्त सर्वन प्रभच्चते,
इति मत्या भजनते मान, भूधा भाव समन्य, जो भूधा भागत्री, जो विद्ध्वान है, वो इत्को समस्त है, जो मैं जो कृष्णा, ये मूल बस्त, वेदांत में चाहते हैं, ब्रह्म बस्त क्या दी जाए, जन्मा आद्वस्त जता हाँ, जहां से सब चीज़ का जन्म
मत्या भजनते मान, जो ये मूल बस्त, वेदांत में चाहते हैं, जन्मा आद्वस्त जता हाँ, तो इस विकार कृष्ण को जदि आप लोग समझें, और इसको समझने के कोई मुश्किन नहीं है, बगबद घीता माज़ूत है, ताकि खेज्य ओविशर है, बगबद घीता अ
इसलिए हजारों बरत भगबर जीता पड़ते हुए भी जहां सा तहाँ है वहीं जिरे रहे हैं।
यह तो असल चीज तो वाल जो है उसको निकाल दिया है केवल जीरो।
एक का साथ एक जीरो। सुन रहे तो दस होता है सौ होता है।
यह केवल जीरो है। जितना कमेंटरी है वह सब जीरो है। क्यों वह एक जो कृष्णा है उसको छोड़ दिया।
आप लोग देखिए का आजकार आधुनिक साथ है। आधुनिक का अर्थ होता है जो कृष्ण को मार डबा।
आ वो तो अहधुनिक नहीं हो तो बहुत पुरानी बात हो।
कन्सव का बात था है क्ृष्ण को मार दी। कृष्ण पहाड़ा लगा दो। जहां कृष्ण को जन्म होगा हमारा पास लिया रहा है उसी कारण का protrusion.
यह अधुनिक नहीं आया, यह बहुत पुरानी बात है। कृष्ण को जो लोग, दिमान, राख्षों सोते हैं, वो केवल कृष्ण को मारने के लिए तैयार। बाह। उसका काम यही है।
यह तब छोड़ दें। कृष्णों मारने वाला बात छोड़ दें। तब ही सुति हो सके। कृष्णों को बग लें। कृष्ण स्तु भगवान साम। सब विशास कर रहे है। भगवान कहाँ है। भगवान चाहिए।
और भगबान खुद आखर के चानभर सरता है, मैं हूँ, आहूँ सर्वस्त प्रभभा, मत्तो प्रतरो नास्ति, मामे वजप्रवद्धनति मायामे तांखरंतिते, इसको घीता भी पढ़ रहे हैं, और हजारो घीता भवन भी है, बाकि कृष्ण को उड़ा दो, बहुत, असल क
असाभास्था आखे सत्सि होंगी, और नैत्य अच्छयमाये वोइते वजन होंगे, वो कृष्ण हाँ भजन करते करते, खृष्ण भजन तो नहीं है, माया भजन है, वो माया भजन करते करते, माया कई हाथ में नहीं जाएगे,
और उनका हाथ से पुरिक्षान मिलना बहुत ही मुश्किल है
माया मेता तरंतिते मामेव जब प्रतज्जनते
जब तक भगवान कृष्णता चरल में सरनागती पूर्ण तया नहीं होगी
तब तक वो माया का ही हाथ में रहेंगे वो दिग्री का खली फरक है
1% माया और 10% माया और 100% माया बहातीर माया
1% कग माया भी हैगा तो भगवात का खुलबाविली का
तो वो एक परसेंच जीरो करने के लिए क्या पद्दती है
वो भी भगवात की सामातात्य है
मान चब्ब्या विकारिनि भक्ति जूगिना जाशिल्वत्रि
जो भगवत भक्ति भगवान कृष्ण को जो अभ्याविचारी भक्ति से अभ्याविचारी भक्ति नहीं अभ्याविचारी
थे हमारा मन आफिज मिले कि यह हो Representatives सब्सक्राइब वृद्धि यह सबस्क्राइब
कि भगवान में आफ ओर भगवान को मिलने की विवह भॉतिले रीनिसोडर में आ कर्म भक्त्याम आम प्रजाना
में जावान त्स का अनितत्व
दित्रि राष्ट्र नहीं हो और दित्रि राष्ट्र जो है उसमें आश्याय भक्ति जोग में जब तक हम नहीं पहुँचें तब तक वो भी सबल नहीं है
मुक्ति भी भगवत भक्ति वीला नहीं है मुक्ति भी देने वाला भगवान ही है अगर आप भक्ति जागन करके भगवान
वे मुख्ति चाहते हैं तो भगवान मुक्ति देने वाला है तो योग शिद्धों में ताते हैं
�...वो भी भगवान देने के लिए तैयार है। जब भगवान है, सर्वसक्रिमान है', अगर आप जोग joyshire चाहते है, अगर दुनिया क Οरभ..
... चाहते है, और ज्ञानि होगा क्योंकि मुक्ति चाहते हैं तो यह सब चीज भगवान दे सकता है। भगवान का पास �tesukkami...
नहीं है आप जो सिर्फ चाहिए आपको मिल जाएगा तो इसलिए शाक्ष करते हैं अकाम सर्वकामों वा मोक्ष काम उदारधी
व्यवरामपुर।ो अकाम है अकाम जो है भक्ष इसके कुछ कामना नहीं है और जदी आप सर्वकाम हैं सर्वकाम का क़रमें
सब चाहते हैं सब पॉपर मे किया �acji और मोक्ष काम है ज्यादा जो मौक्ष चाहते
विदी प्रकार जो-विद आपको चाहिए यदि आपको मांगना है तो भगवाद से मांग तक चाहिए अपने आड़
कि यह बात नहीं है कि भगवाद भक्त होने से फिर आपको दुनिया को भोग नहीं मिलेगा आप अगर
कि संया को Sotya सत्य, तो भगबान से ही मांगिए, जैसे धुर्बमः हर्थे से, भगबान से मांगने से आपको ऐयी फल होगा, यह एक दिन आप भगवत भक्त हो जाएं,
आध आपको कामनाय है आप भगवान से मांगते हम को यह दीजिये वह दीजिये वह दीजिये
तो मांगे, मांगते मांगते एक दिन ऐसे दरजां में आप कहुँच जाएंगे
तित कहेंगे भगवान खिता चोच्मी बरंग न जाती
कि वह माना बठे बाद राधा क्या पुरुण राघण अमन्यत एना अधिकन करते हैं कि जिसको मिलने की आरूत कामना ही नहीं है
को सर्व कामनाथव पूर्ण मूर्ति जो भगवान है इसको मिलें तो पिजा उनके
तो इसलिए शास्त्र में निग्देश कहा जाए है कि जब आपको भीतर में कामना है तब भी भगवाद भजन की, आप जोपशिद्धि चाहते हैं कहते हैं भगवाद तो जोगे चर है, उनसे बढ़कर जोगी कौन हो सकता है, जोपशिद्धि भगवाद दे सकते हैं, और मु
नगिन नहीं, इस प्रदाश अभिचार है, तो यह जो कितना देव कृष्णस्त शास्त्र में निग्देश है, वो भगवाद को मिलने के लिए कोई ज्यादा मुश्किल नहीं है, कितना देव कृष्णस्त, क्योंकि कृष्णा और कृष्ण नाम कोई भेव नहीं है, अब �
भेव का अर्त होता है, अरे, अरे का अर्त होता है, हरा पे हरे, समवरच, यह भगवान की schonk że भगवान की षक्ति,
रदाराणि सितादेवी लक्ष्मीदेवी, भगवाण की शक्ति, भगवाण निश्चक्तिक नहीं हैं, चर्च माहि भगवान, सशक्ति
शक्तिमाण पराप्त शक्ति वद्धिविदैवशीयत यह बेत का बचन है भगवाण की अनेक शक्ति होते हैं
कि आ कि दिदिव श्रीत स्कूल आदमिलार्ता है कि अजय को धराणाराणी है असित है तो कि यह पर है कि उसको रदे प्रकार
यह सब भगवान के साम्तिति एककाम करने के लिए 12 मिनट Pole भगवान शंरच्यमां तत्ता है
सब्सक्राइब करते हैं मैं अध्यक्ष ना प्रकृति स्थिति स्थित्र आप हैं यह प्रकृति है शक्ति है
कि तक तीन प्रकार की होती है जाकर अंत माया शक्ति ततस्था शक्ति और अंतरंग्ना शक्ति
हैं कि अंतरणा सभी के भगवांत्र वह जुनरधार है है माघर शक्ति ब्लक करते आज हुआ था अ तक अजय को का चाहिए
कि वह शक्ति तत्व सच्चिमान तत्व नहीं है जैसे कृति सक्ति हैं हैं उसी प्रकार शक्तितथ्व प्रदीजा कि
मां का अधिन रहेगा, वो सुखी रहेगा। जैसा हमारा देश में है, अभी तक प्रकीति, श्री, जो अपना पुरुष का अधिन रखे, वो सांति में है, सुख में है।
और जो पति का अध्धान छोड़ लिया, साधीनता चाहते हैं, वो दुखी है। अब देख लीजिये, हम यह रोब हमें कहते हैं, बहुत बेता है, यह लड़की लो, बहुत दुखी है। क्या अधिसम साधीन है।
और इसी बार, भारत, क्या कहते हैं, स्री को साधीनता देना ही नहीं चाहिए। वो दुखी है। वो आपना पिताजी का पराधिन जा है, आप नातु पति का पराधिन जा है ना तो आपना जोग्व और फुख्यौर का पराधिन जा है।
उसी में उनका सीख है। वो स्थादिन हो जाएगा तो शुद्ध नहीं होगा। मैंने इस है। प्रकीति। प्रकीति का आर्थ होता है जब पुरुष का अधिर्णन है।
इसी परिकार हम रखते हैं प्रकीति। यह जीबात्मा है। अप्राय्यां इतस्तु में बिद्धि में प्रकीति परात्। भगवत की तावा है।
यह आत्मीत्र प्रकीति भी है। वो कौन है जीव भवरी जीव जो है वो प्रकीति भी है। वो पुरुष नहीं हो सकता।
जैसे अवरज, कोई छजना करके पुरुष बन जाता है तो थोड़ा ही पुरुष हो वाला, पुरुष का काम थोडह कर सकते हैं
तीली प्रकार हम लोग के प्रकीती तत्य है, जीव प्रकीति परन्तु प्राप्तिती।
उत्तम यह अपराः जड़ा प्रकीति अपराः यह सब सास्रुत्र हैं। तो प्रकीति तत्त वह भगवान का अधीन में रहने से ही उनका सुख है।
और वह साधीन हो करके धन करके पुरुष होने को चाहते हैं तो वह कभी सुख हो नहीं होता।
क्यांकि यह अपराः जड़ा प्रकीति में है। इसलिए सब सास्रुत्र के निज्देश है कि भगवान का अधीन हो करके भगवान का सरम का आक्रे करके सुखी रहो।
तभी सुखी हो और इधर उधर का बात करेंगे तो बाती रह जाएगा सुख का भी नहीं जाएगा। ना सुख और ना पराः जड़ी।
सुख भी नहीं, सिद्धी भी नहीं, अपराः जड़ी भी नहीं। चेबल समय नहीं। समय वही थे।
Thank you very much.
 
 
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥ हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
 
 
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