दन्ता जाता यजस्वेति स प्रत्याहाथ सोऽब्रवीत् ।
यदा पतन्त्यस्य दन्ता अथ मेध्यो भवेदिति ॥ १२ ॥
अनुवाद
जब दाँत बढ़ गए, तब वरुण हरिश्चंद्र के पास आए और बोले, “अब इस पशु के दाँत बढ़ गए हैं। तू यज्ञ कर सकता है।” हरिश्चंद्र ने उत्तर दिया, “जब इसके सारे दाँत गिर जाएँगे, तभी यह बलि के योग्य होगा।”