गुरुश्च रन्तिदेवश्च सङ्कृते: पाण्डुनन्दन ।
रन्तिदेवस्य महिमा इहामुत्र च गीयते ॥ २ ॥
अनुवाद
हे महाराज परीक्षित, हे पाण्डुवंशी, संकृति के दो पुत्र थे- गुरु और रन्तिदेव। रन्तिदेव इस लोक तथा परलोक दोनों में ही विख्यात हैं। उनकी महिमा का गुणगान न केवल मानव जाति में बल्कि देव लोक में भी होता है।