न कामयेऽहं गतिमीश्वरात् परा-
मष्टर्द्धियुक्तामपुनर्भवं वा ।
आर्तिं प्रपद्येऽखिलदेहभाजा-
मन्त:स्थितो येन भवन्त्यदु:खा: ॥ १२ ॥
अनुवाद
मैं भगवान से न तो आठ योग सिद्धियों के लिए प्रार्थना करता हूँ और न ही जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्ति की कामना करता हूँ। मैं केवल सभी प्राणियों के बीच रहना चाहता हूँ और उनकी ओर से सभी कष्टों को भोगना चाहता हूँ ताकि वे दुख-दर्द से मुक्त हो सकें।