इसके पश्चात् पृषध्र ने सभी उत्तरदायित्वों से मुक्ति पा ली और शांतिपूर्वक अपने सभी इन्द्रियों पर नियंत्रण स्थापित कर लिया। भौतिक परिस्थितियों से अप्रभावित होकर, भगवान की कृपा से शरीर और आत्मा को जीवित रखने के लिए जो कुछ भी मिला उसी से संतुष्ट रहते हुए और सभी के प्रति समान भाव रखते हुए, वह निष्पाप भगवान वासुदेव पर ही अपना सारा ध्यान केंद्रित करने लगा। इस प्रकार शुद्ध ज्ञान से पूर्ण संतुष्टि प्राप्त कर और अपने मन को भगवान में ही लगाकर उसने भगवान की शुद्ध भक्ति प्राप्त की और सारे विश्व में विचरण करने लगा। उसे भौतिक कार्यकलापों से कोई लगाव नहीं रहा जैसे कि वह बहरा, गूंगा और अंधा हो।