स यै: स्पृष्टोऽभिदृष्टो वा संविष्टोऽनुगतोऽपि वा ।
कोसलास्ते ययु: स्थानं यत्र गच्छन्ति योगिन: ॥ २२ ॥
अनुवाद
भगवान् रामचन्द्र अपने धाम को लौट आये, जहाँ भक्तियोगी प्राप्त करते हैं। यही वह स्थान है जहाँ अयोध्या के सभी निवासी भगवान् को उनकी प्रकट लीलाओं में श्रद्धा भाव से नमन करके, उनके चरणकमलों का स्पर्श करके, उन्हें पिता तुल्य राजा मानकर, उनकी बराबरी में बैठकर या लेटकर या मात्र उनके साथ रहकर, उनकी सेवा करने के बाद वापस चले गये।