श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन  »  अध्याय 5: देवताओं द्वारा भगवान् से सुरक्षा याचना  »  श्लोक 31
 
 
श्लोक  8.5.31 
 
 
इमे वयं यत्प्रिययैव तन्वा
सत्त्वेन सृष्टा बहिरन्तरावि: ।
गतिं न सूक्ष्मामृषयश्च विद्महे
कुतोऽसुराद्या इतरप्रधाना: ॥ ३१ ॥
 
अनुवाद
 
  चूंकि हमारे शरीर सत्व गुण से बने हैं, इसलिए हम देवता भीतर और बाहर सत्व गुण में स्थित हैं। सारे संत भी इसी प्रकार स्थित हैं। इसलिए यदि हम स्वयं भगवान को नहीं समझ सकते, तो उन लोगों के बारे में क्या कहा जाए जो तमोगुण और रजोगुण में स्थित हैं? वे भगवान को कैसे समझ सकते हैं? हम उनके चरणों में अपना सिर नवाते हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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