श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन  »  अध्याय 3: गजेन्द्र की समर्पण-स्तुति  »  श्लोक 11
 
 
श्लोक  8.3.11 
 
 
सत्त्वेन प्रतिलभ्याय नैष्कर्म्येण विपश्चिता ।
नम: कैवल्यनाथाय निर्वाणसुखसंविदे ॥ ११ ॥
 
अनुवाद
 
  अनुभव करते हैं तत्व साधक, भक्तियोग में कर्मरत।
अकलुषित सुख के दाता वो, हर्षित करते भरत।
दिव्यलोक के स्वामी वो, निशदिन रखते धरा संभाल।
अतएव मेरा शत-शत नमन, स्तुति करूँ मैं सत्काल।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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