दृढं पण्डितमान्यज्ञ: स्तब्धोऽस्यस्मदुपेक्षया ।
मच्छासनातिगो यस्त्वमचिराद्भ्रश्यसे श्रिय: ॥ १५ ॥
अनुवाद
यद्यपि तुम्हारे पास कोई ज्ञान नहीं है, फिर भी तुम अपने आपको विद्वान व्यक्ति कहलाते हो और इसलिए तुम मेरे आदेश की अवहेलना करने का साहस कर रहे हो। मेरी आज्ञा का उल्लंघन करने के कारण तुम शीघ्र ही अपने सारे वैभव से वंचित हो जाओगे।