श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 7: भगवद्-विज्ञान  »  अध्याय 3: हिरण्यकशिपु की अमर बनने की योजना  »  श्लोक 11
 
 
श्लोक  7.3.11 
 
 
अन्यथेदं विधास्येऽहमयथा पूर्वमोजसा ।
किमन्यै: कालनिर्धूतै: कल्पान्ते वैष्णवादिभि: ॥ ११ ॥
 
अनुवाद
 
  "अपनी कड़ी तपस्या के बल पर मैं पुण्य और पाप कर्मों के परिणामों को उलट दूँगा। इस संसार की सभी स्थापित परंपराओं को मैं बदल दूँगा। कल्प के अंत में ध्रुवलोक भी नष्ट हो जाएगा। इसलिए, इसका क्या लाभ है? मैं तो ब्रह्मा के पद पर बने रहना ही पसंद करूँगा।"
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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